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Baba Daulatram Varni Ki Solah Rachanaen

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
देगम्बर आचार्य विशुद्धसागर
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
देगम्बर आचार्य विशुद्धसागर
Language:
Hindi
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Hardback

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Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789390659418 Category
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Page Extent:
152

बाबा दौलतराम वर्णी की सोलह रचनाएँ –
जैन तीर्थ नैनागिरि के सन्त बाबा दौलतराम वर्णी ने सन् 1902 में छन्दोदय तथा 1904 में इस पुस्तक में प्रकाशित नैनागिरि (रेशिंदिगिरि) पूजन प्रभृति 15 रचनाओं को जन्म दिया है। 116 वर्षों तक लुकी-छिपी इन रचनाओं को अनावृत कर भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली ने जैन दर्शन तथा संस्कृति को यह अनुपम भेंट प्रदान की है।
हिन्दी के सन्त साहित्यकार और जैन शास्त्रकार बाबाजी द्वारा प्रभावी शब्दों तथा लोकप्रिय और मधुर छन्दों में विरचित इन सभी रचनाओं में भगवान की अर्चना, आराधना और उपासना की गयी है। सभी सोलह रचनाएँ तीर्थंकरों और तीर्थों का गुणगान करती हैं। सोलहकारण भावनाओं की भाँति मोक्ष पथ पर आगे बढ़ने में सहायक हैं। न्यूनतम भोग और अल्पतम उपभोग की शिक्षा प्रदान करती हैं।
श्रम साध्य मौलिक सृजन और मूल रचना-कर्म से ओतप्रोत इन रचनाओं में जैन दर्शन के व्यावहारिक सिद्धान्त दर्पण की भाँति स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित होते हैं। इन रचनाओं में सर्वत्र अध्यात्मिक वर्णमाला बिखरी हुई है। इस वर्णमाला के स्वर, अक्षर तथा व्यंजन पारस्परिक रूप से मिल-जुलकर शब्द बनते हैं और आध्यात्मिक विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देते हैं तथा वर्तमान आध्यात्मिक संतों को चारित्रिक विकास के महत्वपूर्ण सूत्र प्रदान करते हैं। निश्चित ही वर्णी जी का यह आध्यात्मिक प्रदेय हम सबके लिए सुस्वादु पाथेय है।

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Description

बाबा दौलतराम वर्णी की सोलह रचनाएँ –
जैन तीर्थ नैनागिरि के सन्त बाबा दौलतराम वर्णी ने सन् 1902 में छन्दोदय तथा 1904 में इस पुस्तक में प्रकाशित नैनागिरि (रेशिंदिगिरि) पूजन प्रभृति 15 रचनाओं को जन्म दिया है। 116 वर्षों तक लुकी-छिपी इन रचनाओं को अनावृत कर भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली ने जैन दर्शन तथा संस्कृति को यह अनुपम भेंट प्रदान की है।
हिन्दी के सन्त साहित्यकार और जैन शास्त्रकार बाबाजी द्वारा प्रभावी शब्दों तथा लोकप्रिय और मधुर छन्दों में विरचित इन सभी रचनाओं में भगवान की अर्चना, आराधना और उपासना की गयी है। सभी सोलह रचनाएँ तीर्थंकरों और तीर्थों का गुणगान करती हैं। सोलहकारण भावनाओं की भाँति मोक्ष पथ पर आगे बढ़ने में सहायक हैं। न्यूनतम भोग और अल्पतम उपभोग की शिक्षा प्रदान करती हैं।
श्रम साध्य मौलिक सृजन और मूल रचना-कर्म से ओतप्रोत इन रचनाओं में जैन दर्शन के व्यावहारिक सिद्धान्त दर्पण की भाँति स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित होते हैं। इन रचनाओं में सर्वत्र अध्यात्मिक वर्णमाला बिखरी हुई है। इस वर्णमाला के स्वर, अक्षर तथा व्यंजन पारस्परिक रूप से मिल-जुलकर शब्द बनते हैं और आध्यात्मिक विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देते हैं तथा वर्तमान आध्यात्मिक संतों को चारित्रिक विकास के महत्वपूर्ण सूत्र प्रदान करते हैं। निश्चित ही वर्णी जी का यह आध्यात्मिक प्रदेय हम सबके लिए सुस्वादु पाथेय है।

About Author

प्रबन्ध सम्पादक - श्री सुरेश जैन (आई.ए.एस.) - जैन तीर्थ, नैनागिरि, ज़िला छतरपुर, म.प्र. में जन्मे श्री सुरेश जैन (आई.ए.एस) एम.कॉम. और एल.एल.बी. हैं। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हैं। जैनरत्न जैसी विभिन्न उपाधियों से विभूषित हैं। सेवानिवृत्ति के पश्चात् भारत सरकार के पर्यावरण मन्त्रालय में मध्य प्रदेश राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष के पद पर 6 वर्ष तक पदासीन रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार के वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर सुदीर्घ काल तक अपनी सेवाएँ प्रदान कर चुके हैं। सरकार के विभिन्न विभागों की विधि-संहिताओं के साथ-साथ आप 'बड़े भाई की पाती' के यशस्वी लेखक एवं भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 2018 में प्रकाशित छन्दोदय के प्रबन्ध सम्पादक हैं। आपने अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के अनेक सेमिनारों और ई-संगोष्ठियों में सहभागिता की है। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेकर शोध-पत्रों का वाचन किया है। आपके 100 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। व्यक्तित्व विकास एवं ज्वलन्त सामाजिक सन्दर्भों पर शताधिक लेख और निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। विभिन्न धार्मिक स्थलों और संस्थाओं के संरक्षण एवं विकास में आपने अत्यधिक सराहनीय सहयोग प्रदान किया है। दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र, नैनागिरि के अध्यक्ष एवं आचार्य विद्यासागर प्रबन्ध विज्ञान संस्थान, भोपाल के संस्थापक हैं। आपने संस्थापक और प्रबंध संचालक के रूप में इस संस्थान का 25 वर्षों तक सफल संचालन किया है। नैनागिरि और तिन्सी में स्थित जैन विद्यालयों के आप संस्थापक हैं। आपने अखिल भारतवर्षीय प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थान, जबलपुर, जीतो, मुम्बई और कामयाब, दिल्ली के संस्थापन में आधारभूत एवं सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया है। संघ लोक सेवा आयोग आदि की प्रतियोगिता परीक्षा देने वाले छात्रों को सतत मार्गदर्शन दे रहे हैं। सम्पादक - डॉ. प्रमोद जैन - शाहगढ़, ज़िला सागर, मध्य प्रदेश निवासी श्री हेमचन्द जैन के सुपुत्र डॉ. प्रमोद जैन टोडरमल स्मारक, जयपुर से गोल्ड मेडल के साथ शास्त्री (जैनदर्शन), शिक्षा शास्त्री, आचार्य (प्राकृत, अपभ्रंश एवं जैनागम), आचार्य (साहित्य), एम.ए. (संस्कृत), और एम.बी.ए. के अतिरिक्त नेट-सेट उत्तीर्ण हैं तथा 'गुणभद्रप्रणीतस्य जिनदत्तचरित्रस्य सम्पादनं काव्यशास्त्रीय समीक्षणं च' विषय पर पीएच.डी. (विद्यावारिधि) उपाधि से अलंकृत हैं। आपकी तीन पुस्तकें संस्कृतम्, संस्कृतशिक्षणविधयः और गोम्मटसार जीवकाण्ड छन्दोदय पूर्व में प्रकाशित हो चुकी हैं। 'संस्कृतम्' को तो राजस्थान सरकार ने प्रकाशित कर पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किया है। आपकी संस्कृत व हिन्दी में कविताएँ एवं अनेक शोध-पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। आप जैन न्याय जैसे सूक्ष्म विषय को आधुनिक पद्धति से समझाने में निपुण हैं। इस विषय पर आपके 100 से अधिक व्याख्यान 'जैन न्याय' यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं। आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, गुजराती, मारवाड़ी व बुन्देली भाषाओं में दक्ष हैं। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, त्रिचूर, केरल द्वारा 'साहित्य प्रतिभा अवार्ड' प्रदान किये जाने के अतिरिक्त आपको राजस्थान के राज्यपाल द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।

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