Awadhi Lokgeet Virasat

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. Vidya Vindu Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Dr. Vidya Vindu Singh
Language:
Hindi
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Hardback

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512

वाचिक साहित्य अर्थात् लोक-साहित्य की सुदीर्घ परंपरा और उसके विश्वव्यापी विस्तार से आज बुद्धिजीवी वर्ग और साहित्यकार भी न केवल परिचित हुए हैं वरन् उसका महत्त्व भी स्वीकार करने लगे हैं। लोक-साहित्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी सुदीर्घ और समृद्ध है। इसके माध्यम से सांस्कृतिक विकास और सभ्यता के उत्थान-पतन का इतिहास समझा जा सकता है। मानवीय जीवन-मूल्यों के प्रति बदलती दृष्टियाँ और उसकी शाश्वत उपस्थिति सबका प्रामाणिक दस्तावेज भी इसमें सुरक्षित रहता है। अवधी की वाचिक परंपरा में लोकगीतों के रूप में पद्य विधा जितनी समृद्ध है, उतनी ही लोककथाओं के रूप में गद्य विधा भी है। गद्य-पद्य मिश्रित विधा लोकगाथाओं (फोक वैलेड्स), लोक सुभाषित, लोक मुहावरे और लोकोक्तियों की भी समृद्ध परंपरा अवधी में है। कुछ लोक विश्वास, रीति-रिवाज, व्रत-पर्व-त्योहारों की परंपरा भी वाचिक साहित्य के माध्यम से ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। अवधी लोक-साहित्य की वाचिक परंपरा में शास्त्र के वे सभी उद्देश्य समाहित हैं, जिन्हें ऋषि-मुनियों ने अपने ज्ञान के फल के रूप में अपने विचारों के माध्यम से जनहित में अभिव्यक्त किया है। वह ज्ञान लोक चेतना में संचरित होते हुए लोक व्यवहार में उतरता रहा है। उसकी वर्जनाएँ और स्वीकृति दोनों को अवधी लोक-साहित्य ने अभिव्यक्त किया है। अवधी लोकगीतों की यह विरासत पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है।.

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Description

वाचिक साहित्य अर्थात् लोक-साहित्य की सुदीर्घ परंपरा और उसके विश्वव्यापी विस्तार से आज बुद्धिजीवी वर्ग और साहित्यकार भी न केवल परिचित हुए हैं वरन् उसका महत्त्व भी स्वीकार करने लगे हैं। लोक-साहित्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी सुदीर्घ और समृद्ध है। इसके माध्यम से सांस्कृतिक विकास और सभ्यता के उत्थान-पतन का इतिहास समझा जा सकता है। मानवीय जीवन-मूल्यों के प्रति बदलती दृष्टियाँ और उसकी शाश्वत उपस्थिति सबका प्रामाणिक दस्तावेज भी इसमें सुरक्षित रहता है। अवधी की वाचिक परंपरा में लोकगीतों के रूप में पद्य विधा जितनी समृद्ध है, उतनी ही लोककथाओं के रूप में गद्य विधा भी है। गद्य-पद्य मिश्रित विधा लोकगाथाओं (फोक वैलेड्स), लोक सुभाषित, लोक मुहावरे और लोकोक्तियों की भी समृद्ध परंपरा अवधी में है। कुछ लोक विश्वास, रीति-रिवाज, व्रत-पर्व-त्योहारों की परंपरा भी वाचिक साहित्य के माध्यम से ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। अवधी लोक-साहित्य की वाचिक परंपरा में शास्त्र के वे सभी उद्देश्य समाहित हैं, जिन्हें ऋषि-मुनियों ने अपने ज्ञान के फल के रूप में अपने विचारों के माध्यम से जनहित में अभिव्यक्त किया है। वह ज्ञान लोक चेतना में संचरित होते हुए लोक व्यवहार में उतरता रहा है। उसकी वर्जनाएँ और स्वीकृति दोनों को अवधी लोक-साहित्य ने अभिव्यक्त किया है। अवधी लोकगीतों की यह विरासत पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है।.

About Author

कृतियाँ: 98 कृतियाँ प्रकाशित एवं 21 कृतियाँ प्रकाशनार्थ। उपन्यास (8), कहानी-संग्रह (9), कविता-संग्रह (10), लोक-साहित्य (23), नाटक (5), निबंध-संग्रह (8), नवसाक्षर एवं बाल-साहित्य (20), संपादित (20)। अन्य अनेक पुस्तकों और पत्रिकाओं का संपादन। अन्य: आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से निरंतर प्रसारण। देश व विदेश की संस्थाओं, विश्वविद्यालयों से संबद्ध। शोध-कार्य: लखनऊ वि.वि., गढ़वाल वि.वि श्रीनगर, कानपुर वि.वि., पुणे वि.वि., उच्च शिक्षा और शोध संस्थान दक्षिण भारत, चेन्नई द्वारा। अनुवाद: ‘सच के पाँव’ (कविता-संग्रह) का नेपाली भाषा में अनुवाद, साहित्य अकादेमी, दिल्ली द्वारा पुरस्कृत। मलयालम, मराठी, कश्मीरी, तेलुगू, बाँगला, उडि़या, जापानी, अंग्रेजी भाषा में अनुवाद। विदेश यात्राएँ: विभिन्न साहित्यिक आयोजनों में देश-विदेश में सक्रिय भागीदारी। सम्मान: 81 संस्थाओं द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ में संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त। संप्रति: साहित्य एवं समाज सेवा।

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