Avadhi Vachik Katha Lok : Abhipray Chintan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. Vidya Vindu Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
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Dr. Vidya Vindu Singh
Language:
Hindi
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Hardback

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प्रातिभ साहित्य और वाचिक साहित्य दोनों में कथा अभिप्राय अपनी गूढ़ व्यंजना के कारण विशेष महत्त्व रखते हैं। लोककथाओं की वाचिक परंपरा में व्यक्त इन अभिप्रायों का अध्ययन करके लोक साहित्य का मूलभाव लोकमंगल की अवधारणा को समझा जा सकता है। इसलिए लोककथाओं, लोक सुभाषितों में व्यक्त अभिप्रायों को उनके संदर्भों से जोड़कर लोक में प्रस्तुत करने से कथा का उद्देश्य स्पष्ट होता है। इस पुस्तक में अभिप्राय चिंतन की पृष्ठभूमि कुछ उदाहरणों के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। अभिप्रायों के अध्ययन, उनकी उपयोगिता, उनकी व्यंजना तथा उनके प्रभाव रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। अलग-अलग निबंधों के माध्यम से लोक-संस्कृति, लोककथाओं और उनमें व्यक्त कथानक रूढि़यों, अभिप्रायों को व्यक्त किया गया है। विविध व्रत-पर्व-त्योहारों की कथाएँ तथा अन्य प्रचलित कथाएँ दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर उनमें व्यक्त अभिप्राय पहचानने की दृष्टि स्वयं मिल सकती है। इन अभिप्रायों में प्रकृति के प्रति गहरी संवेदना, कृतज्ञता और परस्पर अन्योन्याश्रितता के भाव पाठक स्वयं अनुभव कर सकते हैं। आधुनिक समाज की संवेदन शून्यता, जो प्रकृति और मानव जीवन को असह्य और असहज बनाती जा रही है, उसे लोककथाओं की गहरी संवेदना का स्पर्श मिलेगा तो सकारात्मक सोच के प्रति हम आश्वस्त हो सकेंगे। —इसी पुस्तक से.

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Description

प्रातिभ साहित्य और वाचिक साहित्य दोनों में कथा अभिप्राय अपनी गूढ़ व्यंजना के कारण विशेष महत्त्व रखते हैं। लोककथाओं की वाचिक परंपरा में व्यक्त इन अभिप्रायों का अध्ययन करके लोक साहित्य का मूलभाव लोकमंगल की अवधारणा को समझा जा सकता है। इसलिए लोककथाओं, लोक सुभाषितों में व्यक्त अभिप्रायों को उनके संदर्भों से जोड़कर लोक में प्रस्तुत करने से कथा का उद्देश्य स्पष्ट होता है। इस पुस्तक में अभिप्राय चिंतन की पृष्ठभूमि कुछ उदाहरणों के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। अभिप्रायों के अध्ययन, उनकी उपयोगिता, उनकी व्यंजना तथा उनके प्रभाव रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। अलग-अलग निबंधों के माध्यम से लोक-संस्कृति, लोककथाओं और उनमें व्यक्त कथानक रूढि़यों, अभिप्रायों को व्यक्त किया गया है। विविध व्रत-पर्व-त्योहारों की कथाएँ तथा अन्य प्रचलित कथाएँ दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर उनमें व्यक्त अभिप्राय पहचानने की दृष्टि स्वयं मिल सकती है। इन अभिप्रायों में प्रकृति के प्रति गहरी संवेदना, कृतज्ञता और परस्पर अन्योन्याश्रितता के भाव पाठक स्वयं अनुभव कर सकते हैं। आधुनिक समाज की संवेदन शून्यता, जो प्रकृति और मानव जीवन को असह्य और असहज बनाती जा रही है, उसे लोककथाओं की गहरी संवेदना का स्पर्श मिलेगा तो सकारात्मक सोच के प्रति हम आश्वस्त हो सकेंगे। —इसी पुस्तक से.

About Author

डॉ. विद्या विंदु सिंह कुल 109 कृतियाँ प्रकाशित एवं 24 कृतियाँ प्रकाशनार्थ। 9 उपन्यास, 11 कहानी-संग्रह, 10 कविता-संग्रह, 28 लोक-साहित्य, 5 नाटक, 8 निबंध-संग्रह, 20 नवसाक्षर एवं बाल-साहित्य, 18 संपादित। अन्य अनेक पुस्तकों और पत्रिकाओं का संपादन। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से निरंतर प्रसारण। देश व विदेश की संस्थाओं व विश्वविद्यालयों से संबद्ध। कृतित्व पर अनेक शोध कार्य: लखनऊ वि.वि., गढ़वाल वि.वि. श्रीनगर, कानपुर वि.वि., पुणे वि.वि., उच्च शिक्षा और शोध संस्थान दक्षिण भारत, चेन्नई द्वारा। अनुवाद: ‘सच के पाँव’ (कविता-संग्रह) का नेपाली में अनुवाद साहित्य अकादेमी दिल्ली द्वारा पुरस्कृत। मलयालम, मराठी, कश्मीरी, तेलुगु, बांग्ला, ओडि़या, जापानी, अंग्रेजी भाषा में अनुवाद। विदेश यात्राएँ: विभिन्न साहित्यिक आयोजनों में देश-विदेश में सक्रिय भागीदारी। सम्मान: देश-विदेश की 100 संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ में संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त।.

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