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Apabhransh Bhasha Aur Sahitya
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
राजमणि शर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
राजमणि शर्मा
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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Category: Hindi
Page Extent:
200
अपभ्रंश भाषा और साहित्य –
अपभ्रंश को आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की जननी कहा गया है। भारतीय इतिहास में यह एकमात्र भाषा ही नहीं, अपितु एक ऐसा सहज एवं गतिशील जन-आन्दोलन है जो किसी का संस्कार या वरदहस्त पाये बिना लगभग हज़ार वर्ष तक समस्त भारत को झंकृत करता रहा और हर आधुनिक भारतीय भाषा को नया रूप आकार देते हुए उसे संवर्द्धित करता रहा।
अपभ्रंश तथा परवर्ती अपभ्रंश भाषा के नये पहलुओं की खोज, सहज विश्लेषण, नाथ और सिद्ध साहित्य, राम-कृष्ण-काव्य, चरित-काव्य, प्रेमाख्यान/रहस्यवाद, श्रृंगार, वीर-काव्य जैसी विधाओं तथा महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक आदि काव्य-रूपों का विस्तृत विवेचन, साहित्य समीक्षा के लिए नये मानदण्डों की स्थापना एवं ‘कीर्तिलता’ के पाठ, अर्थ और भाषा की समस्या पर विभिन्न कोणों से किया गया परामर्श—सब मिल कर राजमणि शर्मा की यह पुस्तक भाषा के क्षेत्र में एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति करती है।
अपभ्रंश और हिन्दी भाषा साहित्य के अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी कृति।
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Description
अपभ्रंश भाषा और साहित्य –
अपभ्रंश को आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की जननी कहा गया है। भारतीय इतिहास में यह एकमात्र भाषा ही नहीं, अपितु एक ऐसा सहज एवं गतिशील जन-आन्दोलन है जो किसी का संस्कार या वरदहस्त पाये बिना लगभग हज़ार वर्ष तक समस्त भारत को झंकृत करता रहा और हर आधुनिक भारतीय भाषा को नया रूप आकार देते हुए उसे संवर्द्धित करता रहा।
अपभ्रंश तथा परवर्ती अपभ्रंश भाषा के नये पहलुओं की खोज, सहज विश्लेषण, नाथ और सिद्ध साहित्य, राम-कृष्ण-काव्य, चरित-काव्य, प्रेमाख्यान/रहस्यवाद, श्रृंगार, वीर-काव्य जैसी विधाओं तथा महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक आदि काव्य-रूपों का विस्तृत विवेचन, साहित्य समीक्षा के लिए नये मानदण्डों की स्थापना एवं ‘कीर्तिलता’ के पाठ, अर्थ और भाषा की समस्या पर विभिन्न कोणों से किया गया परामर्श—सब मिल कर राजमणि शर्मा की यह पुस्तक भाषा के क्षेत्र में एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति करती है।
अपभ्रंश और हिन्दी भाषा साहित्य के अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी कृति।
About Author
राजमणि शर्मा -
2 नवम्बर, 1940 को लम्भुआ गाँव, सुल्तानपुर (उ.प्र.) में जन्म। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी), भाषा विज्ञान में द्विवर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा एवं पीएच.डी. (हिन्दी)।
कृतकार्य आचार्य, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय। सम्प्रति स्वतन्त्र लेखन, व्याख्यान। आदिकालीन, आधुनिक तथा समकालीन हिन्दी साहित्य, भाषा-विज्ञान, बोली—अध्ययन, अनुवाद विज्ञान, कोश विज्ञान आदि में विशेष सक्रिय।
प्रकाशन: 'प्रसाद का गद्य-साहित्य', 'आधुनिक भाषा विज्ञान', 'हिन्दी भाषा : इतिहास और स्वरूप', 'भारतीय प्राणधारा का स्वाभाविक विकास : हिन्दी कविता', 'मेरो मन अनत कहाँ सुख पायो', दलित चेतना की कहानियाँ : बदलती परिभाषाएँ', 'काव्य-भाषा : रचनात्मक सरोकार', 'बलिया का विरवा : काशी की माटी', 'अनुवाद विज्ञान : प्रायोगिक सन्दर्भ', 'छायावाद और जयशंकर प्रसाद' और 'अपभ्रंश भाषा और साहित्य'।
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार से सम्मानित।
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