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Antasakara

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
भगतसिंह सोनी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
भगतसिंह सोनी
Language:
Hindi
Format:
Hardback

159

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SKU 9789326355544 Category Tag
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95

अन्तसकारा –
भगतसिंह सोनी उन कवियों में हैं जो बिना किसी शोरगुल, बड़बोलेपन और नारों से दूर छत्तीसगढ़ की स्थानिकता में अपनी कविता का ठौर-ठिकाना बनाये हुए हैं। अपने आस-पास के सजीव सन्दर्भों से ऊर्जा ग्रहण करते वे दुनिया को देखते हैं जिसमें अपनी धरती का इन्दराज है और सृष्टि के लिए चिन्ताएँ। पेड़-पौधों, नदी-पहाड़, आसमान और जनसामान्य के सरोकारों के रास्ते उनकी कविता समन्दर पार के मुद्दों पर विमर्श का सूक्ष्म पर्यावरण रचती है। पर्यावरण, जलसंकट, विस्थापन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, बाज़ारवाद जैसे मुद्दों की तरफ़ भी भगतसिंह सोनी की निगाह है किन्तु उनकी कविता स्थानिकता के मार्ग से आगे का रास्ता बनाती है। वे कहते हैं—’मैंने केवल/ समुद्र के जल में/ आसमान को उतरता देखा/ जल के चादर में देखा/ अपने चेहरे का पानी/ रोता देखा ख़ुद को यानी/’ कहना होगा यह रोता हुआ चेहरा उस सामान्य जन का है जिसे न अपना घर मिलता है, न अपना रोज़मर्रा का भोजन ठीक से न चाहा हुआ जीवन। मिलता है बस आजीवन संघर्ष।
भगतसिंह सोनी की कविताओं में भरोसा है तो सामान्य जन में कवि में और कविता में। उनकी कवि और कविता सर्वहारा के पक्ष में अपने होने में कवि और मनुष्य को केन्द्र में देखते हैं। दुनिया को बचाने के लिए कवि परमाणु बमों के ज़खीरों की बढ़ती चुनौती की तरफ़ भी सावधान करता है, जो उनके सचेत मानस को उजागर करती है।
भगतसिंह दरअसल उन कवियों में हैं जो कविताओं में आग बचाये रखने का काम अपनी स्थानिक पक्षधरता में चुपचाप कर रहे हैं। पाठकों को यह संग्रह पसन्द आयेगा, ऐसी आशा है।

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Description

अन्तसकारा –
भगतसिंह सोनी उन कवियों में हैं जो बिना किसी शोरगुल, बड़बोलेपन और नारों से दूर छत्तीसगढ़ की स्थानिकता में अपनी कविता का ठौर-ठिकाना बनाये हुए हैं। अपने आस-पास के सजीव सन्दर्भों से ऊर्जा ग्रहण करते वे दुनिया को देखते हैं जिसमें अपनी धरती का इन्दराज है और सृष्टि के लिए चिन्ताएँ। पेड़-पौधों, नदी-पहाड़, आसमान और जनसामान्य के सरोकारों के रास्ते उनकी कविता समन्दर पार के मुद्दों पर विमर्श का सूक्ष्म पर्यावरण रचती है। पर्यावरण, जलसंकट, विस्थापन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, बाज़ारवाद जैसे मुद्दों की तरफ़ भी भगतसिंह सोनी की निगाह है किन्तु उनकी कविता स्थानिकता के मार्ग से आगे का रास्ता बनाती है। वे कहते हैं—’मैंने केवल/ समुद्र के जल में/ आसमान को उतरता देखा/ जल के चादर में देखा/ अपने चेहरे का पानी/ रोता देखा ख़ुद को यानी/’ कहना होगा यह रोता हुआ चेहरा उस सामान्य जन का है जिसे न अपना घर मिलता है, न अपना रोज़मर्रा का भोजन ठीक से न चाहा हुआ जीवन। मिलता है बस आजीवन संघर्ष।
भगतसिंह सोनी की कविताओं में भरोसा है तो सामान्य जन में कवि में और कविता में। उनकी कवि और कविता सर्वहारा के पक्ष में अपने होने में कवि और मनुष्य को केन्द्र में देखते हैं। दुनिया को बचाने के लिए कवि परमाणु बमों के ज़खीरों की बढ़ती चुनौती की तरफ़ भी सावधान करता है, जो उनके सचेत मानस को उजागर करती है।
भगतसिंह दरअसल उन कवियों में हैं जो कविताओं में आग बचाये रखने का काम अपनी स्थानिक पक्षधरता में चुपचाप कर रहे हैं। पाठकों को यह संग्रह पसन्द आयेगा, ऐसी आशा है।

About Author

भगतसिंह सोनी - जन्म: 25 सितम्बर, 1947। शिक्षा: बी.एससी., एम.ए.। लेखन: सातवें दशक से कविता लेखन की शुरुआत। प्रकाशन: तीन कविता संग्रह 'नये स्वर', 'नहीं बनना चाहता था कवि' एवं ' पृथ्वी से क्या कहेंगे' प्रकाशित। कभी-कभार समीक्षा लेखन। देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं एवं संकलनों में कविताएँ प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताएँ प्रसारित। सम्पादन: 'जारी' कविता-पत्रिका का सम्पादन। पुरस्कार: कविता के लिए 'वागेश्वरी पुरस्कार'।

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