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Andhera Samudra
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
परितोष चक्रवर्ती
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
परितोष चक्रवर्ती
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9788126318865
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
124
अँधेरा समुद्र
मूलतः कवि संवेदना के कथाकार परितोष चक्रवर्ती का चौथा कहानी-संग्रह है- ‘अँधेरा समुद्र’। परितोष हमारे समय के एक जरूरी कहानीकार हैं जो खण्ड खण्ड अस्मिताओं को गूँथकर भारत के एक वृहत्तर सामाजिक आख्यान को रचते हैं। ‘अँधेरा समुद्र’ का अँधेरा नब्बे के दशक के बाद भारतीय समाज में छाया बाज़ारवाद, मुक्त अर्थव्यवस्था की हिंस्रता, आवारा पूँजी और काले धन का असीमित विस्तार, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की घातक प्रतिस्पर्धा, चमकीले विज्ञापनों का ‘अँधेरा’ है, जिसमें आम आदमी कई कठिन पाटों के बीच बुरी तरह पिस रहा है। विडम्बना ही है कि यह ‘अँधेरा’ जगमगाती और चौंधिया देनेवाली रोशनियों से भरपूर है। परितोष इस अँधेरे समुद्र की सम्यक् और संयत पड़ताल करते हैं- बिना कोई अतिवादी निष्कर्ष पर पहुँचे। इस मायने में परितोष का कथात्मक धैर्य क़ाबिलेतारीफ़ है।
परितोष के मित्रों का कहना है कि वे सम्बन्धों के कथाकार हैं। सम्बन्धों में वे डूबते हैं और भँवर के बीच भी चले जाते हैं और सामाजिक यथार्थ के सहारे उबरकर उस गहराई को पाठक तक सम्प्रेषित कर देते हैं।
संक्षेप में, ‘अँधेरा समुद्र’ समग्रता में स्टिरियोटाइप पाठकीय चेतना को ध्वस्त कर उसे रिइन्वेंट करनेवाली कहानियों का एक अनूठा संग्रह है।
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Description
अँधेरा समुद्र
मूलतः कवि संवेदना के कथाकार परितोष चक्रवर्ती का चौथा कहानी-संग्रह है- ‘अँधेरा समुद्र’। परितोष हमारे समय के एक जरूरी कहानीकार हैं जो खण्ड खण्ड अस्मिताओं को गूँथकर भारत के एक वृहत्तर सामाजिक आख्यान को रचते हैं। ‘अँधेरा समुद्र’ का अँधेरा नब्बे के दशक के बाद भारतीय समाज में छाया बाज़ारवाद, मुक्त अर्थव्यवस्था की हिंस्रता, आवारा पूँजी और काले धन का असीमित विस्तार, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की घातक प्रतिस्पर्धा, चमकीले विज्ञापनों का ‘अँधेरा’ है, जिसमें आम आदमी कई कठिन पाटों के बीच बुरी तरह पिस रहा है। विडम्बना ही है कि यह ‘अँधेरा’ जगमगाती और चौंधिया देनेवाली रोशनियों से भरपूर है। परितोष इस अँधेरे समुद्र की सम्यक् और संयत पड़ताल करते हैं- बिना कोई अतिवादी निष्कर्ष पर पहुँचे। इस मायने में परितोष का कथात्मक धैर्य क़ाबिलेतारीफ़ है।
परितोष के मित्रों का कहना है कि वे सम्बन्धों के कथाकार हैं। सम्बन्धों में वे डूबते हैं और भँवर के बीच भी चले जाते हैं और सामाजिक यथार्थ के सहारे उबरकर उस गहराई को पाठक तक सम्प्रेषित कर देते हैं।
संक्षेप में, ‘अँधेरा समुद्र’ समग्रता में स्टिरियोटाइप पाठकीय चेतना को ध्वस्त कर उसे रिइन्वेंट करनेवाली कहानियों का एक अनूठा संग्रह है।
About Author
परितोष चक्रवर्ती
जन्म : 1951, सक्ती (छत्तीसगढ़)।
शिक्षा : एम.ए., बी.जे. ।
अठारह बरस तक सरकारी नौकरियाँ कीं और लगभग इतने ही बरस पत्रकारिता में गुजारे।
कृतियाँ : 'सड़क नंबर तीस', 'घर बुनते हुए' तथा 'कोई नाम न दो' (कहानी-संग्रह); 'अक्षरों की नाव', 'ऊँचाइयों वाला बौनापन' (कविता-संग्रह); 'मुखौटे' (नाटक); 'अभिशप्त दाम्पत्य' (लघु उपन्यास) तथा 'आ जा मेरी गाड़ी में बैठ जा' (व्यंग्य संग्रह ) प्रकाशित। छत्तीसगढ़ तथा नक्सलवाद पर दो पुस्तिकाएँ भी। कुछ रचनाओं का आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारण।
मति नंदी के उपन्यास 'स्ट्राइकर', 'स्टॉपर', 'कोनी', गौतम कुमार झा के कविता-संग्रह 'हरी घास पर नंगे पाँव' और ए. के. गुप्ता की किताब 'मदर टेरेसा' का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद प्रकाशित।
दैनिक 'जनसत्ता' (रायपुर) और राष्ट्रीय पत्रिका 'लोकायत' (दिल्ली) के सम्पादन से मुक्त होकर वर्तमान में स्वतन्त्र पत्रकारिता, लेखन, मीडिया एवं जन-सम्पर्क सलाहकार ।
सम्पर्क : आकृति, सी-29, सेक्टर-3, देवेन्द्र नगर, रायपुर - 492009 (छत्तीसगढ़)
ए-133, पॉकेट बी, मयूर विहार फेज-2, दिल्ली -1100911
मो. 0922925901, 09810633370
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