Anantim Maun Ke Beech

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
सुजाता
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
सुजाता
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9789326355865 Category
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128

अनन्तिम मौन के बीच –
सुजाता की कविताएँ हिन्दी कविता संसार की भाषिक, वैचारिक और भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण करती हुई इसके आयतन का सुखद विस्तार करती हैं। उनके पास एक सशक्त और समृद्ध भाषा है लेकिन स्त्री भाषा की तलाश में सघन जद्दोजहद भी है, पाँवों के नीचे स्त्रीवाद की एक सख़्त ज़मीन है लेकिन अपने और समाज के सन्दर्भ में उसकी सीमाओं की पहचान और नये आयामों को तलाशने का बेचैन धैर्य भी है, अपने कई पीढ़ी पुराने महाविस्थापन की पीड़ा के निशानात हैं तो महानगरीय नागरिकता को लेकर सहज गौरव का वह भाव भी जो उन्हें हिन्दी कविता में दिल्ली का स्थापित प्रतीक पलट देने का साहस प्रदान करता है। आसपास के वातावरण और रोज़मर्रा जीवन के विश्वसनीय तथा जीवन्त बिम्बों से अपना कविता संसार गढ़नेवाली सुजाता की कविताओं में पहाड़ और प्रकृति की एक सतत अभिव्यंजनात्मक उपस्थिति है, अपने उपस्थित लोक के समक्ष यह उनका एक अर्जित लोक है— एक चेतन स्त्री की दृष्टि से देखी गयी दुनिया।
वह हिन्दी के समकालीन स्त्री विमर्श के स्थापित रेटरिक को भाषा, शिल्प और विचार तीनों के स्तर पर चुनौती देती हैं और यह चुनौती नारों या शोर-शराबे के शक्ल में नहीं है बल्कि उस नागरिक के विद्रोह की तरह है जो सूट-बूट से सजे समारोह में सस्ती कमीज़ पर माँ का बुना स्वेटर पहनकर चला जाता है। वह आह-कराह के समकालीन शोर के बीच निजी दुखों को सार्वजनीन विस्तार देती हैं तो बृहत् सामाजिक-राजनीतिक आलोड़नों पर शाइस्तगी से टिप्पणी करते हुए उन्हें निजी पीड़ा के स्तर पर ले आती हैं। कविता से उनकी असन्तुष्टि कविता के मुहाविरे के भीतर है तो विमर्श के प्रचलित मुहाविरे से उनका संघर्ष विमर्श की व्यापक सैद्धान्तिक सीमाओं के भीतर नकार का नकार करते हुए। यह सतत द्वन्द्व उनकी कविताओं का केन्द्रीय स्वर है जो हिन्दी तथा विश्व कविता की परम्परा के सघन बोध की रौशनी में अपने समकाल का एक विश्वसनीय बयान दर्ज करता है और इसीलिए ये कविताएँ हमारे समय के स्त्री जीवन के आन्तरिक और बाह्य संसार की दुरूह यात्राओं के लिए आवश्यक पाथेय हैं।— अशोक कुमार पांडेय

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Description

अनन्तिम मौन के बीच –
सुजाता की कविताएँ हिन्दी कविता संसार की भाषिक, वैचारिक और भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण करती हुई इसके आयतन का सुखद विस्तार करती हैं। उनके पास एक सशक्त और समृद्ध भाषा है लेकिन स्त्री भाषा की तलाश में सघन जद्दोजहद भी है, पाँवों के नीचे स्त्रीवाद की एक सख़्त ज़मीन है लेकिन अपने और समाज के सन्दर्भ में उसकी सीमाओं की पहचान और नये आयामों को तलाशने का बेचैन धैर्य भी है, अपने कई पीढ़ी पुराने महाविस्थापन की पीड़ा के निशानात हैं तो महानगरीय नागरिकता को लेकर सहज गौरव का वह भाव भी जो उन्हें हिन्दी कविता में दिल्ली का स्थापित प्रतीक पलट देने का साहस प्रदान करता है। आसपास के वातावरण और रोज़मर्रा जीवन के विश्वसनीय तथा जीवन्त बिम्बों से अपना कविता संसार गढ़नेवाली सुजाता की कविताओं में पहाड़ और प्रकृति की एक सतत अभिव्यंजनात्मक उपस्थिति है, अपने उपस्थित लोक के समक्ष यह उनका एक अर्जित लोक है— एक चेतन स्त्री की दृष्टि से देखी गयी दुनिया।
वह हिन्दी के समकालीन स्त्री विमर्श के स्थापित रेटरिक को भाषा, शिल्प और विचार तीनों के स्तर पर चुनौती देती हैं और यह चुनौती नारों या शोर-शराबे के शक्ल में नहीं है बल्कि उस नागरिक के विद्रोह की तरह है जो सूट-बूट से सजे समारोह में सस्ती कमीज़ पर माँ का बुना स्वेटर पहनकर चला जाता है। वह आह-कराह के समकालीन शोर के बीच निजी दुखों को सार्वजनीन विस्तार देती हैं तो बृहत् सामाजिक-राजनीतिक आलोड़नों पर शाइस्तगी से टिप्पणी करते हुए उन्हें निजी पीड़ा के स्तर पर ले आती हैं। कविता से उनकी असन्तुष्टि कविता के मुहाविरे के भीतर है तो विमर्श के प्रचलित मुहाविरे से उनका संघर्ष विमर्श की व्यापक सैद्धान्तिक सीमाओं के भीतर नकार का नकार करते हुए। यह सतत द्वन्द्व उनकी कविताओं का केन्द्रीय स्वर है जो हिन्दी तथा विश्व कविता की परम्परा के सघन बोध की रौशनी में अपने समकाल का एक विश्वसनीय बयान दर्ज करता है और इसीलिए ये कविताएँ हमारे समय के स्त्री जीवन के आन्तरिक और बाह्य संसार की दुरूह यात्राओं के लिए आवश्यक पाथेय हैं।— अशोक कुमार पांडेय

About Author

सुजाता - जन्म: 9 फ़रवरी, 1978 को दिल्ली में। शिक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी और प्रथम स्थान से स्नातकोत्तर। 'हिन्दी कहानी में सीमान्तीय अस्मिताओं का प्रश्न (1970 से 2000 तक)' विषय पर शोध कार्य। प्रकाशन: नया ज्ञानोदय, पहल, तद्भव, हंस, वागर्थ, सदानीरा, पाखी, प्रगतिशील वसुधा, उम्मीद, समावर्तन, आउटलुक, समीक्षा, परिन्दे, जनसत्ता, स्त्रीकाल, असुविधा, जानकीपुल, समालोचन, अनुनाद आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और ई-पत्रिकाओं में कविताएँ और लेख प्रकाशित। अन्य: 'आग़ाज़' पत्रिका के स्त्री विशेषांक (मार्च, 2015) का सम्पादन, हिन्दी के पहले स्त्रीवादी ब्लॉग 'चोखेरबाली' का पिछले आठ वर्षों से संचालन। दैनिक 'प्रभात ख़बर' में स्त्री प्रश्न पर नियमित स्तम्भ लेखन। पुरस्कार हिन्दी अकादमी, दिल्ली से कविता और कहानियों के लिए क्रमश: 1994, 1997, 2000 में नवोदित लेखक पुरस्कार। लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई स्मृति सम्मान 2015। वेणुगोपाल स्मृति सम्मान, 2016।

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