Anand Path

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
राजेन्द्र मोहन भटनागर
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
राजेन्द्र मोहन भटनागर
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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कहो मित्र, कैसा रहा ‘नीलचन्द्र’ का अनुभव! मुझे मालूम था कि तुम उसके दूसरे भाग ‘आनन्द पथ’ से भी उससे बेहतर तरीके से गुज़रना चाहोगे। उसके लिए तुम्हें एक विश्वसनीय साथी भी मिल चुका है, जो बराबर चेताता है कि वह साथी कोई दूसरा नहीं, तुम्ही हो, कैसे? यही जानने के लिए है तुम्हारे हाथ में ‘आनन्द पथ’। आहिस्ता से उसे खोलो। उसे अपनी चेतना में तलाश करो। करते रहो। समय लग रहा है, लगने दो, क्योंकि तुम्हें अब अपने को जानना है। श्रीअरविन्द में से गुज़रते हुए तुम्हें अपने को पहचानना है। आवाज़ दो सन्नाटे में, देते रहो। इतनी ज़ोर से दो कि उसे तुम स्वयं भी नहीं सुन सको। स्मरण रहे, तुम किसी को बुला रहे हो। बिना उसके छटपटा रहे हो। तो प्यार से, दिल से, संगीत के स्वर में उसे आवाज़ दो। जब तुम आवाज़ दे-देकर, थक जाओगे, निराशा के अँधेरे में हाथ पर हाथ धरे बैठे सोचना बन्द कर दोगे, तब कुछ समय बाद एक महीन-मधुर आवाज़ सुनोगे। वह आवाज़ तुम्हारे सिर को सहला रही होगी, तुम्हारे दिल में उतरकर तुम्हें मना रही होगी। कह रही होगी, “जब दो प्यार करने वाले एक होने लगते हैं, तब ऐसा ही होता है-एक रूठता है तो दूसरा मनाता है। आओ, रेशमी डोरे से बँधे मेरे अनमोल प्यार, गुस्सा थूको, प्यार करें। इस दुनिया को भी प्यार का उपहार दें।”

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Description

कहो मित्र, कैसा रहा ‘नीलचन्द्र’ का अनुभव! मुझे मालूम था कि तुम उसके दूसरे भाग ‘आनन्द पथ’ से भी उससे बेहतर तरीके से गुज़रना चाहोगे। उसके लिए तुम्हें एक विश्वसनीय साथी भी मिल चुका है, जो बराबर चेताता है कि वह साथी कोई दूसरा नहीं, तुम्ही हो, कैसे? यही जानने के लिए है तुम्हारे हाथ में ‘आनन्द पथ’। आहिस्ता से उसे खोलो। उसे अपनी चेतना में तलाश करो। करते रहो। समय लग रहा है, लगने दो, क्योंकि तुम्हें अब अपने को जानना है। श्रीअरविन्द में से गुज़रते हुए तुम्हें अपने को पहचानना है। आवाज़ दो सन्नाटे में, देते रहो। इतनी ज़ोर से दो कि उसे तुम स्वयं भी नहीं सुन सको। स्मरण रहे, तुम किसी को बुला रहे हो। बिना उसके छटपटा रहे हो। तो प्यार से, दिल से, संगीत के स्वर में उसे आवाज़ दो। जब तुम आवाज़ दे-देकर, थक जाओगे, निराशा के अँधेरे में हाथ पर हाथ धरे बैठे सोचना बन्द कर दोगे, तब कुछ समय बाद एक महीन-मधुर आवाज़ सुनोगे। वह आवाज़ तुम्हारे सिर को सहला रही होगी, तुम्हारे दिल में उतरकर तुम्हें मना रही होगी। कह रही होगी, “जब दो प्यार करने वाले एक होने लगते हैं, तब ऐसा ही होता है-एक रूठता है तो दूसरा मनाता है। आओ, रेशमी डोरे से बँधे मेरे अनमोल प्यार, गुस्सा थूको, प्यार करें। इस दुनिया को भी प्यार का उपहार दें।”

About Author

जन्म : सन् 1938 अम्बाला (हरियाणा) में। रोहतक के ज़मींदार परिवार से। प्रकाशित वाङ्मय उपन्यास : दिल्ली चलो, गौरांग, दंश, नीले घोड़े का सवार, न गोपी : न राधा, स्वराज्य, कुली बैरिस्टर, राज राजेश्वर, सरदार, अन्तिम सत्याग्रही, रास्ता यह भी है, एक अन्तहीन युद्ध, रिवोल्ट, मोनालिसा, प्रेमदीवानी, युगपुरुष अंबेडकर, महाबानो, अमृत घट, ज़िन्दगी का एहसास, माटी की गन्ध, परिधि, माटी की पुकार, वैलेंटाइन डे, टूटे आकार, नया मसीहा, कायदे आजम, विवेकानन्द, तमसो मा ज्योतिर्गमय, सत्यमेव जयते, सर्वोदय, मंचनायक, अन्दर की आग, मन्ना बेगम, वसुधा, शुभप्रभात, वाग्देवी, जोगिन, अनन्त आकाश, खुदा गवाह है, श्याम प्रिया आदि 65 से अधिक उपन्यास। कहानी : बस्ती दर्द, मोम की उँगलियाँ, चाणक्य की हार, एक टुकड़ा धूप, माँग का सिन्दूर, थामली, गौरैया, अंजाम, सप्त किरण आदि 11 संग्रह। नाटक : माटी कहे कुम्हार से, मीरा, नायिका, सूर्यास्त का चोर, सारथिपुत्र, रक्तध्वज, सेनानी, दुरभिसंधि, शताब्दी पुरुष, ताम्रपत्र, सूर्याणी आदि 15 नाटक। आलोचना : आधुनिक हिन्दी कविता ग्रन्थ विचार, सामयिकी, महाकवि घनानन्द, सूरदास, कबीर, जैनेन्द्र और उनका समग्र साहित्य, जैनेन्द्र और निबन्ध साहित्य आदि बाईस ग्रन्थ। पुरस्कार : राजस्थान अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार, महाराणा कुम्भा पुरस्कार, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान, नाहर सम्मान पुरस्कार, घनश्याम दास सराफ सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार। अनुवाद : अंग्रेज़ी, फ्रेंच, उड़िया, मराठी, कन्नड़, गुजराती आदि भाषाओं में।

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