Anand Karaj (PB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
BALWANT SINGH
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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BALWANT SINGH
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बलवन्‍त सिंह सरीखे अनुभवी कथाकार से ही मुमकिन था कि किसी बहुत पुरानी कहानी को भी नए–नवेले, अनूठे और समसामयिक अन्‍दाज़ में पाठकों के सामने ले आए। कहानी ‘दंड’ में बिना कहे प्रेमिका के दर्द को समझनेवाला प्रेमी हो या प्रेमिका के लिखे आखिरी ख़त को खोलकर न देखनेवाला प्रेमी, जिसने दृढ़निश्चय किया था कि वह अपनी प्रेम-कहानी को अन्‍त तक कभी नहीं पहुँचाने देगा—जीवनपर्यन्त। दोनों ही कहानियों में निहित प्रेम की भिन्न परिभाषाएँ नितान्‍त एकान्‍त पल में हद के भीतर इस प्रकार के प्रेमी को पाने की आकांक्षा जाग्रत करती हैं। इंसानी रिश्तों की जिन बारीकियों को बलवन्‍त जी ने भाषा की सरलता में उतार दिया है वह अद्भुत है। आज की इस भागती-दौड़ती ज़ि‍न्‍दगी में फ़ुर्सत के इतने निजी पल असम्‍भव से लगते हैं। लेकिन बलवन्‍त सिंह की कहानियाँ आशा के उस दीप की तरह हैं जो अपनी बेहद सीधी और सरल भाषा में हमें बताती हैं कि जीवन की असली ख़ुशियाँ उन छोटे-छोटे पलों में ही छिपी हैं जो रोज़ हमारे आस-पास से गुज़रती रहती हैं। बलवन्‍त जी की कहानियों के पात्र वही पुराने हैं, पर उन्हें देखने, आँकने टाँकने का अन्‍दाज़ बिलकुल नया है। हमारे आस-पास की घटनाओं का बयान करती ये कहानियाँ समकालीन जीवन-छवियों से जोड़ने का एक सफल प्रयास करती हैं।

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बलवन्‍त सिंह सरीखे अनुभवी कथाकार से ही मुमकिन था कि किसी बहुत पुरानी कहानी को भी नए–नवेले, अनूठे और समसामयिक अन्‍दाज़ में पाठकों के सामने ले आए। कहानी ‘दंड’ में बिना कहे प्रेमिका के दर्द को समझनेवाला प्रेमी हो या प्रेमिका के लिखे आखिरी ख़त को खोलकर न देखनेवाला प्रेमी, जिसने दृढ़निश्चय किया था कि वह अपनी प्रेम-कहानी को अन्‍त तक कभी नहीं पहुँचाने देगा—जीवनपर्यन्त। दोनों ही कहानियों में निहित प्रेम की भिन्न परिभाषाएँ नितान्‍त एकान्‍त पल में हद के भीतर इस प्रकार के प्रेमी को पाने की आकांक्षा जाग्रत करती हैं। इंसानी रिश्तों की जिन बारीकियों को बलवन्‍त जी ने भाषा की सरलता में उतार दिया है वह अद्भुत है। आज की इस भागती-दौड़ती ज़ि‍न्‍दगी में फ़ुर्सत के इतने निजी पल असम्‍भव से लगते हैं। लेकिन बलवन्‍त सिंह की कहानियाँ आशा के उस दीप की तरह हैं जो अपनी बेहद सीधी और सरल भाषा में हमें बताती हैं कि जीवन की असली ख़ुशियाँ उन छोटे-छोटे पलों में ही छिपी हैं जो रोज़ हमारे आस-पास से गुज़रती रहती हैं। बलवन्‍त जी की कहानियों के पात्र वही पुराने हैं, पर उन्हें देखने, आँकने टाँकने का अन्‍दाज़ बिलकुल नया है। हमारे आस-पास की घटनाओं का बयान करती ये कहानियाँ समकालीन जीवन-छवियों से जोड़ने का एक सफल प्रयास करती हैं।

About Author

बलवन्‍त सिंह

जन्म : 1925;  गुजराँवाला, पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) ।

शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक।

हिन्‍दी कथा-साहित्य में अकेले ऐसे कृतिकार जिन्होंने पंजाब के ऐतिहासिक काल से लेकर आधुनिक मनोभूमि के विराट चित्र अपनी कृतियों में प्रस्तुत किए हैं। इनकी कितनी ही औपन्यासिक कृतियों को महाकाव्य कहा जा सकता है। जनजीवन के सामाजिक यथार्थ की ऐसी विश्वसनीयता हिन्‍दी साहित्य में प्रायः विरल है। परिवेश ऐतिहासिक हो या समसामयिक—उनकी रचनाओं में संवेदना का तरल प्रवाह विद्यमान है। 12-13 वर्ष की आयु में पहली गद्य रचना। 1964 तक व्यवसाय।

प्रमुख कृतियाँ : ‘रात, चोर और चाँद’, ‘काले कोस’, ‘रावी पार’, ‘सूना आसमान’, ‘साहिबे-आलम’, ‘राका की मंज़िल’, ‘चकपीराँ का जस्सा’, ‘दो अकालगढ़’, ‘एक मामूली लड़की’, ‘औरत और आबशार’, ‘आग की कलियाँ’, ‘बासी फूल’ (उपन्यास); ‘पहला पत्थर’, ‘चिलमन’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानियाँ); ‘अमृता प्रीतम’ (आलोचना)।

निधन: 27 मई, 1986

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