Ajnabi Jazeera (HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
NASIRA SHARMA
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
Author:
NASIRA SHARMA
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा के लेखन की सर्वोपरि विशेषता है सभ्यता, संस्कृति और मानवीय नियति के आत्मबल व अन्तःसंघर्ष का संवेदना-सम्पन्न चित्रण। उनके कथा साहित्य के सरोकार ग्लोबल हैं। उनका कथाकार सन्तप्त और उत्पीड़ित मनुष्यता के पक्ष में पूरी शक्ति के साथ निरन्तर सक्रिय रहा है। ‘अजनबी जज़ीरा’ नासिरा शर्मा का नया उपन्यास है।
‘अजनबी जज़ीरा’ में समीरा और उसकी पाँच बेटियों के माध्यम से इराक़ की बदहाली बयान की गई है। ग़ौरतलब है कि दुनिया में जहाँ कहीं ऐसी दारुण स्थितियाँ हैं, यह उपन्यास वहाँ का एक अक्स बन जाता है। छोटी-से-छोटी चीज़ को तरसते और उसके लिए विरासतों-धरोहरों-यादगारों को बाज़ार में बेचने को मजबूर होते लोग; ज़िन्दगी बचाने के लिए सबकुछ दाँव पर लगाती औरतें और विदेशी आक्रमणकारियों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष निगरानी में साँस लेते नागरिक—ऐसी अनेक स्थितियों-मनःस्थितियों को नासिरा शर्मा ने इस उपन्यास के पृष्ठों पर साकार कर दिया है।
पतिविहीना समीरा अपनी युवा होती बेटियों के वर्तमान और भविष्य को लेकर फ़‍िक्रमन्द है। बारूद, विध्वंस और विनाश के बीच समीरा ज़िन्दगी की रोशनी व ख़ुशबू बचाने के लिए जूझ रही है। उपन्यास समीरा को चाहनेवाले अंग्रेज़ फ़ौजी मार्क के पक्ष से क्षत-विक्षत इराक़ की एक मार्मिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। समीरा और मार्क की प्रेमकहानी अद्भुत है, जिसमें ज़‍िम्मेदारियों के हस्सास रंग शिद्दत से शामिल हैं। घृणा और प्रेम का सघन अन्तर्द्वन्द्व इसे अपूर्व बनाता है। लेखिका यह भी रेखांकित करती है कि ऐसे परिदृश्य में स्त्री-विमर्श के सारे निहितार्थ सिरे से बदल जाते हैं।
सभ्य कहे जानेवाले आधुनिक विश्व में विध्वंस का यह यथार्थ स्तब्ध कर देता है। विध्वंस की इस राजनीति में क्या-क्या नष्ट होता है, इसे नासिरा शर्मा की बेजोड़ रचनात्मक सामर्थ्य ने ‘अजनबी जज़ीरा’ में अभिव्यक्त किया है।
ज़रूरी वैश्विक प्रश्नों के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाता एक अद्भुत उपन्यास।

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Description

हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा के लेखन की सर्वोपरि विशेषता है सभ्यता, संस्कृति और मानवीय नियति के आत्मबल व अन्तःसंघर्ष का संवेदना-सम्पन्न चित्रण। उनके कथा साहित्य के सरोकार ग्लोबल हैं। उनका कथाकार सन्तप्त और उत्पीड़ित मनुष्यता के पक्ष में पूरी शक्ति के साथ निरन्तर सक्रिय रहा है। ‘अजनबी जज़ीरा’ नासिरा शर्मा का नया उपन्यास है।
‘अजनबी जज़ीरा’ में समीरा और उसकी पाँच बेटियों के माध्यम से इराक़ की बदहाली बयान की गई है। ग़ौरतलब है कि दुनिया में जहाँ कहीं ऐसी दारुण स्थितियाँ हैं, यह उपन्यास वहाँ का एक अक्स बन जाता है। छोटी-से-छोटी चीज़ को तरसते और उसके लिए विरासतों-धरोहरों-यादगारों को बाज़ार में बेचने को मजबूर होते लोग; ज़िन्दगी बचाने के लिए सबकुछ दाँव पर लगाती औरतें और विदेशी आक्रमणकारियों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष निगरानी में साँस लेते नागरिक—ऐसी अनेक स्थितियों-मनःस्थितियों को नासिरा शर्मा ने इस उपन्यास के पृष्ठों पर साकार कर दिया है।
पतिविहीना समीरा अपनी युवा होती बेटियों के वर्तमान और भविष्य को लेकर फ़‍िक्रमन्द है। बारूद, विध्वंस और विनाश के बीच समीरा ज़िन्दगी की रोशनी व ख़ुशबू बचाने के लिए जूझ रही है। उपन्यास समीरा को चाहनेवाले अंग्रेज़ फ़ौजी मार्क के पक्ष से क्षत-विक्षत इराक़ की एक मार्मिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। समीरा और मार्क की प्रेमकहानी अद्भुत है, जिसमें ज़‍िम्मेदारियों के हस्सास रंग शिद्दत से शामिल हैं। घृणा और प्रेम का सघन अन्तर्द्वन्द्व इसे अपूर्व बनाता है। लेखिका यह भी रेखांकित करती है कि ऐसे परिदृश्य में स्त्री-विमर्श के सारे निहितार्थ सिरे से बदल जाते हैं।
सभ्य कहे जानेवाले आधुनिक विश्व में विध्वंस का यह यथार्थ स्तब्ध कर देता है। विध्वंस की इस राजनीति में क्या-क्या नष्ट होता है, इसे नासिरा शर्मा की बेजोड़ रचनात्मक सामर्थ्य ने ‘अजनबी जज़ीरा’ में अभिव्यक्त किया है।
ज़रूरी वैश्विक प्रश्नों के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाता एक अद्भुत उपन्यास।

About Author

नासिरा शर्मा

नासिरा शर्मा का जन्म 22 अगस्त, 1948 को इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने फ़ारसी भाषा और साहित्य में एम.ए. किया। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, पश्तो एवं फ़ारसी भाषा पर उनकी गहरी पकड़ है। वह ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला व संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान व भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ उन्होंने साक्षात्कार किए, जो बहुचर्चित हुए। ईरानी युद्धबन्दियों पर जर्मन व फ़्रांसीसी दूरदर्शन के लिए बनी फ़िल्म में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सर्जनात्मक लेखन में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—बहिश्ते जहरा, शाल्मली, ठीकरे की मँगनी, ज़िन्दा मुहावरे, कुइयाँ जान, ज़ीरो रोड, अक्षयवट, अजनबी जज़ीरा, पारिजात, काग़ज़ की नाव, शब्द पखेरू, दूसरी जन्नत, अल्फ़ा-बीटा-गामा (उपन्यास); शामी काग़ज़, पत्थर गली, संगसार, इब्ने मरियम, सबीना के चालीस चोर, ख़ुदा की वापसी, बुतख़ाना, दूसरा ताजमहल, इनसानी नस्ल (कहानी-संग्रह); राष्ट्र और मुसलमान, औरत के लिए औरत, औरत की दुनिया, वो एक कुमारबाज़ थी (लेख-संग्रह), औरत की आवाज़ (साक्षात्कार); जहाँ फ़व्वारे लहू रोते हैं (रिपोर्ताज); यादों के गलियारे (संस्मरण); किताब के बहाने, सबसे पुराना दरख़्त (आलोचना); अफ़ग़ानिस्तान : बुज़कशी का मैदान, मरजीना का देश इराक़ (सम्पूर्ण अध्ययन व शोध); शहनामा-ए-फ़िरदौसी, ग़लिस्तान-ए-सादी, क़िस्सा जाम का, काली छोटी मछली, पोयम ऑफ़ प्रोटेस्ट, बर्निंग पायर, अदब में बायीं पसली (अनुवाद); जब समय बदल रहा हो इतिहास (विविध)

इनके अलावा बाल-साहित्य, दूरदर्शन और रेडियो के लिए भी विपुल लेखन।

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