SaleHardback
Aane Wale Kal Par
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
सुधांशु उपाध्याय
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
सुधांशु उपाध्याय
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹160 ₹159
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ISBN:
SKU
9788126330867
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
160
आने वाले कल पर –
सुधांशु उपाध्याय के गीतों का यह तीसरा संकलन है। इस संकलन के गीतों में अपने समय का जीवन अपने पूरे वैविध्य के साथ रूपायित है। इसमें स्वयं को नीलाम करता आदमी हैं, जंगल में लकड़ी की तरह टूट-टूट जाने वाली आदिवासी औरतें हैं, छत के कुंडे से लटक गयी छोटी सी लव स्टोरी है, उजाले को नोच-नोच कर खा रही एक लम्बी काली रात है। तहख़ाने में बैठा दिन है, छुरियों की नोक पर खड़े, सपनों का चिथड़ा सहेजते लोग हैं, मिथुन-मूर्तियों से सजे सत्ता के गलियारे हैं, रईसों के घर हैं। तात्पर्य यह कि इन गीतों में वह सब कुछ है जिसे हम आज के जीवन की लय कह सकते हैं।
…. वस्तुतः यह सम्पूर्ण जीवन विस्तार, जिसमें हम जी रहे हैं, एक मौन कविता है जिसे शब्द की ज़रूरत है। एक सन्नाटा है जो मुखर होना चाहता है। सुधांशु की सहानुभूति उन लोगों के साथ ज़्यादा गहरी है जो इतने विवश हैं कि ‘आह’ भी नहीं भर सकते। इस सन्दर्भ में ‘लड़की ज़िन्दा है’ और ‘अम्मा एक कथा-गीत’ शीर्षक कविताएँ उल्लेखनीय हैं।
सहजता में गहरी अर्थ सांकेतिकता सुधांशु की कविताओं की विशेषता है। आज सत्ता और पूँजी के रेशमी जाल में सामान्य जन-जीवन ज़्यादा जटिल संघर्ष चक्र में छटपटा रहा है, कवि की अपनी निजी वेदनाएँ भी हैं जिनके शब्द-चित्र उसके गीतों में मौजूद हैं, फिर भी वह अपने सपनों को सहेजे हुए चल रहा है। आने वाले कल पर उसका भरोसा है और रेत में भटके हुए काफ़िलों को वह सोचने के लिए प्रेरित करता है। यह भविष्य-दृष्टि न केवल उसके इन गीतों को शक्ति देगी बल्कि आगे भी उसे सर्जनारत रहने की प्रेरणा देती रहेगी।—डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
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Description
आने वाले कल पर –
सुधांशु उपाध्याय के गीतों का यह तीसरा संकलन है। इस संकलन के गीतों में अपने समय का जीवन अपने पूरे वैविध्य के साथ रूपायित है। इसमें स्वयं को नीलाम करता आदमी हैं, जंगल में लकड़ी की तरह टूट-टूट जाने वाली आदिवासी औरतें हैं, छत के कुंडे से लटक गयी छोटी सी लव स्टोरी है, उजाले को नोच-नोच कर खा रही एक लम्बी काली रात है। तहख़ाने में बैठा दिन है, छुरियों की नोक पर खड़े, सपनों का चिथड़ा सहेजते लोग हैं, मिथुन-मूर्तियों से सजे सत्ता के गलियारे हैं, रईसों के घर हैं। तात्पर्य यह कि इन गीतों में वह सब कुछ है जिसे हम आज के जीवन की लय कह सकते हैं।
…. वस्तुतः यह सम्पूर्ण जीवन विस्तार, जिसमें हम जी रहे हैं, एक मौन कविता है जिसे शब्द की ज़रूरत है। एक सन्नाटा है जो मुखर होना चाहता है। सुधांशु की सहानुभूति उन लोगों के साथ ज़्यादा गहरी है जो इतने विवश हैं कि ‘आह’ भी नहीं भर सकते। इस सन्दर्भ में ‘लड़की ज़िन्दा है’ और ‘अम्मा एक कथा-गीत’ शीर्षक कविताएँ उल्लेखनीय हैं।
सहजता में गहरी अर्थ सांकेतिकता सुधांशु की कविताओं की विशेषता है। आज सत्ता और पूँजी के रेशमी जाल में सामान्य जन-जीवन ज़्यादा जटिल संघर्ष चक्र में छटपटा रहा है, कवि की अपनी निजी वेदनाएँ भी हैं जिनके शब्द-चित्र उसके गीतों में मौजूद हैं, फिर भी वह अपने सपनों को सहेजे हुए चल रहा है। आने वाले कल पर उसका भरोसा है और रेत में भटके हुए काफ़िलों को वह सोचने के लिए प्रेरित करता है। यह भविष्य-दृष्टि न केवल उसके इन गीतों को शक्ति देगी बल्कि आगे भी उसे सर्जनारत रहने की प्रेरणा देती रहेगी।—डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
About Author
सुधांशु उपाध्याय -
गाज़ीपुर (उ.प्र.) के रामपुर गाँव में जन्म।
प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में, फिर वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. और पत्रकारिता मंम स्नातकोत्तर डिप्लोमा।
प्रारम्भ में अध्यापन। 1978 से सक्रिय पत्रकारिता।
प्रकाशन: 'समय की ज़रूरत है यह', 'पुल कभी ख़ाली नहीं मिलते' (नवगीत-संग्रह) तथा 'शब्द हैं साखी' (अख़बारी आलेख संग्रह) प्रकाशित। 'नवगीत दशक-3' तथा 'नवगीत अर्द्धशती' में रचनाएँ संकलित।
उ.प्र. हिन्दी संस्थान के 'निराला सम्मान' से सम्मानित।
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