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Aalochak Ka Aatmavlokan
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Aalochak Ka Aatmavlokan
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
गोपेश्वर सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
गोपेश्वर सिंह
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9789355183545
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
236
आलोचक का आत्मावलोकन वरिष्ठ आलोचक गोपेश्वर सिंह की नवीनतम आलोचना-पुस्तक है। आलोचना में आत्मावलोकन की ज़रूरत पर बल देने वाली इस पुस्तक के ज़रिये गोपेश्वर सिंह विचारधारा और आत्मावलोकन के द्वन्द् की माँग करते हैं। वे साहित्य को वैचारिक निबन्ध की तरह पढ़े जाने को जायज़ नहीं मानते। वे मानते हैं कि रचना में विचार-तत्त्व के साथ रचनाकार का आत्मानुभव भी जुड़ा होता है। इसलिए एक ही समय में एक ही विचारधारा के रचनाकारों में भेद होता है। इसी तरह का भेद आलोचना-लेखन में भी होता है। गोपेश्वर सिंह का कहना है : “इधर के वर्षों में साहित्य में आत्मावलोकन की प्रवृत्ति घटी है। जब से अस्मितावादी राजनीति का वर्चस्व बढ़ा है, रचना-आलोचना में आत्मावलोकन का भाव ज़रूरी नहीं रह गया है। बाइनरी में रचना-आलोचना को देखने का चलन ज़ोरों पर है। अपने विरोधी पर प्रहार और उसकी आलोचना का भाव जितना उग्र है, उतनी ही मन्द है आत्मावलोकन की प्रक्रिया। कुल मिलाकर साहित्यालोचन राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप का सहोदर होता गया है।” इस कारण साहित्य को पढ़ने का इकहरा प्रतिमान बनता जा रहा है। यह कहने के साथ गोपेश्वर सिंह राजनीति की आलोचना और साहित्य की आलोचना में अन्तर किये जाने की माँग करते हैं। हमारे समय के ज़रूरी सवाल को उठाती गोपेश्वर सिंह की यह नयी आलोचना-पुस्तक साहित्य पढ़ने की आदत बदलने पर ज़ोर देती है और आलोचना को प्रासंगिक बनाये जाने की माँग करती है।
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Description
आलोचक का आत्मावलोकन वरिष्ठ आलोचक गोपेश्वर सिंह की नवीनतम आलोचना-पुस्तक है। आलोचना में आत्मावलोकन की ज़रूरत पर बल देने वाली इस पुस्तक के ज़रिये गोपेश्वर सिंह विचारधारा और आत्मावलोकन के द्वन्द् की माँग करते हैं। वे साहित्य को वैचारिक निबन्ध की तरह पढ़े जाने को जायज़ नहीं मानते। वे मानते हैं कि रचना में विचार-तत्त्व के साथ रचनाकार का आत्मानुभव भी जुड़ा होता है। इसलिए एक ही समय में एक ही विचारधारा के रचनाकारों में भेद होता है। इसी तरह का भेद आलोचना-लेखन में भी होता है। गोपेश्वर सिंह का कहना है : “इधर के वर्षों में साहित्य में आत्मावलोकन की प्रवृत्ति घटी है। जब से अस्मितावादी राजनीति का वर्चस्व बढ़ा है, रचना-आलोचना में आत्मावलोकन का भाव ज़रूरी नहीं रह गया है। बाइनरी में रचना-आलोचना को देखने का चलन ज़ोरों पर है। अपने विरोधी पर प्रहार और उसकी आलोचना का भाव जितना उग्र है, उतनी ही मन्द है आत्मावलोकन की प्रक्रिया। कुल मिलाकर साहित्यालोचन राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप का सहोदर होता गया है।” इस कारण साहित्य को पढ़ने का इकहरा प्रतिमान बनता जा रहा है। यह कहने के साथ गोपेश्वर सिंह राजनीति की आलोचना और साहित्य की आलोचना में अन्तर किये जाने की माँग करते हैं। हमारे समय के ज़रूरी सवाल को उठाती गोपेश्वर सिंह की यह नयी आलोचना-पुस्तक साहित्य पढ़ने की आदत बदलने पर ज़ोर देती है और आलोचना को प्रासंगिक बनाये जाने की माँग करती है।
About Author
गोपेश्वर सिंह - जन्म : 24 नवम्बर 1955, ग्राम-बड़कागाँव पकड़ीयार, जनपद-गोपालगंज, बिहार में।
जेपी आन्दोलन में सक्रिय रहे। इस दौरान कई बार जेल यात्रा। 1983 से अध्यापन। पटना विश्वविद्यालय, पटना एवं सेंट्रल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में क़रीब दो दशक तक अध्यापन के बाद सितम्बर 2004 से दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन। 2010 से 2013 तक हिन्दी विभाग के अध्यक्ष। साहित्य के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर हिन्दी की प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर लेखन। नलिन विलोचन शर्मा (विनिबन्ध), साहित्य से संवाद, आलोचना का नया पाठ, भक्ति आन्दोलन और काव्य तथा आलोचना के परिसर के अतिरिक्त भक्ति आन्दोलन के सामाजिक आधार, नलिन विलोचन शर्मा : रचना-संचयन, विजयदेव नारायण साही : रचना-संचयन (सम्पादित) पुस्तकें प्रकाशित। आपको आचार्य परशुराम चतुर्वेदी सम्मान, रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान तथा कबीर विवेक आलोचना सम्मान प्राप्त हैं। सम्पर्क : सी-1203, अरुणिमा पैलेस, सेक्टर-4, वसुन्धरा, गाज़ियाबाद -201012 (उ.प्र.)
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