AAKASH DHARTI KO KHATKHATAATA HAIN (PB)

Publisher:
Rajkamal Prakashan
| Author:
Vinod Kumar Shukla
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal Prakashan
Author:
Vinod Kumar Shukla
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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विनोद कुमार शुक्ल समकालीन कविता के संसार में उन थोड़े से ऐसे कवियों में शुमार हैं जिन्होंने समकालीन कविता की दिशा और दृष्टि को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया है। उनकी इस हैसियत को हिन्दी में लगभग सभी कवियों ने स्वीकार किया है।

काव्याभिव्यक्ति में मित कथनों का जितना सार्थक प्रयोग वे करते हैं, उतना शमशेर ही कर पाते थे। शब्दों को कम से कम ख़र्च करके कैसे अर्थ के भंडार को समेटा जाए इसे सीखने के लिए विनोद कुमार शुक्ल की कविता काम की चीज़ है।

उनकी कविता नितांत समसामयिक होकर भी समयातीत लगती है। वह पीछे भी देखती है और आगे भी, पर उल्लेखनीय बात यह है कि वह अपने समय में धँसी होने के बावजूद अपने समय में फँसती नहीं है। उनके काव्यबोध में जो अचूक क़िस्म की पारदर्शी सूक्ष्मता है, वह कई लोगों को जटिलता, रूपवाद, कलावाद का अवतार लगती है लेकिन रूपवादी कविता है नहीं। काव्य-प्रयोगों के लिए उनसे बड़ा कवि आज कम से कम हिन्दी में दिखाई नहीं देता

वे विचारधारा के पुल से होकर रास्ता तय करने वाले कवि नहीं हैं, बल्कि वे कविता की नदी को ख़ुद तैर कर पार करने वाले कवि हैं। कम से कम उनके लम्बे कवि-कर्म का संघर्ष यही प्रतिमान हमारे सामने रखता है। वे हिन्दी कविता के संसार में उन थोड़े से कवियों में हैं जिन्होंने चालू मुहावरे को तोड़कर अपनी कविता में संवेदना और काव्य-शिल्प के लिए अनोखा आयाम चुना है। अपनी काव्यभाषा के चुनाव में वे जितने विरल, संयमी और जागरूक कवि हैं, उतने कम ही कवि रहे हैं। यह उनकी चुनिन्दा कविताओं का संकलन है।

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विनोद कुमार शुक्ल समकालीन कविता के संसार में उन थोड़े से ऐसे कवियों में शुमार हैं जिन्होंने समकालीन कविता की दिशा और दृष्टि को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया है। उनकी इस हैसियत को हिन्दी में लगभग सभी कवियों ने स्वीकार किया है।

काव्याभिव्यक्ति में मित कथनों का जितना सार्थक प्रयोग वे करते हैं, उतना शमशेर ही कर पाते थे। शब्दों को कम से कम ख़र्च करके कैसे अर्थ के भंडार को समेटा जाए इसे सीखने के लिए विनोद कुमार शुक्ल की कविता काम की चीज़ है।

उनकी कविता नितांत समसामयिक होकर भी समयातीत लगती है। वह पीछे भी देखती है और आगे भी, पर उल्लेखनीय बात यह है कि वह अपने समय में धँसी होने के बावजूद अपने समय में फँसती नहीं है। उनके काव्यबोध में जो अचूक क़िस्म की पारदर्शी सूक्ष्मता है, वह कई लोगों को जटिलता, रूपवाद, कलावाद का अवतार लगती है लेकिन रूपवादी कविता है नहीं। काव्य-प्रयोगों के लिए उनसे बड़ा कवि आज कम से कम हिन्दी में दिखाई नहीं देता

वे विचारधारा के पुल से होकर रास्ता तय करने वाले कवि नहीं हैं, बल्कि वे कविता की नदी को ख़ुद तैर कर पार करने वाले कवि हैं। कम से कम उनके लम्बे कवि-कर्म का संघर्ष यही प्रतिमान हमारे सामने रखता है। वे हिन्दी कविता के संसार में उन थोड़े से कवियों में हैं जिन्होंने चालू मुहावरे को तोड़कर अपनी कविता में संवेदना और काव्य-शिल्प के लिए अनोखा आयाम चुना है। अपनी काव्यभाषा के चुनाव में वे जितने विरल, संयमी और जागरूक कवि हैं, उतने कम ही कवि रहे हैं। यह उनकी चुनिन्दा कविताओं का संकलन है।

About Author

विनोद कुमार शुक्ल जन्म : 1 जनवरी, 1937 को राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) में। प्रमुख कृतियाँ : पहला कविता-संग्रह 1971 में ‘लगभग जयहिन्द’ (‘पहल’ सीरीज़ के अन्तर्गत), ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’ (1981), ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ (1992), ‘अतिरिक्त नहीं’ (2000), ‘कविता से लम्बी कविता’ (2001), ‘कभी के बाद अभी’ (सभी कविता-संग्रह); 1988 में ‘पेड़ पर कमरा’ (‘पूर्वग्रह’ सीरीज़ के अन्तर्गत) तथा 1996 में ‘महाविद्यालय’ (कहानी-संग्रह); ‘नौकर की कमीज़’ (1979), ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’ (सभी उपन्यास)। मेरियोला आफ्रीदी द्वारा इतालवी में अनुवादित एक कविता-पुस्तक का इटली में प्रकाशन, इतालवी में ही पेड़ पर कमरा का भी अनुवाद। इसके अलावा कुछ रचनाओं का मराठी, मलयालम, अंग्रेज़ी तथा जर्मन भाषाओं में अनुवाद। मणि कौल द्वारा 1999 में ‘नौकर की कमीज़’ पर फ़िल्म का निर्माण। ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ पर फ़िल्म-निर्माण का कार्य अधूरा। ‘आदमी की औरत’ और ‘पेड़ पर कमरा’ सहित कुछ कहानियों पर बनी फ़िल्म ‘आदमी की औरत’ (निर्देशक—अमित) को वेनिस फ़िल्म फ़ेस्टिवल के 66वें समारोह 2009 में ‘स्पेशल इवेंट पुरस्कार’। दो वर्ष के लिए निराला सृजनपीठ में अतिथि साहित्यकार रहे (1994-1996)। सम्मान : ‘गजानन माधव मुक्तिबोध फ़ेलोशिप’, ‘रज़ा पुरस्कार’, ‘दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान’, ‘रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ आदि। इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में कृषि-विस्तार के सह-प्राध्यापक पद से 1996 में सेवानिवृत्त, अब स्वतंत्र लेखन।

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