Aadhunik Hindi Gadya Sahitya Ka Vikas Aur Vishleshan

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
विजय मोहन सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
विजय मोहन सिंह
Language:
Hindi
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Hardback

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आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण –
प्रख्यात आलोचक विजय मोहन सिंह की पुस्तक ‘आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण’ में आधुनिकता को नये सिरे से परिभाषित और विश्लेषित करने की पहल है। काल विभाजन की पद्धति भी बदली, सटीक और बहुत वैज्ञानिक दिखलाई देगी।
साहित्य के विकासात्मक विश्लेषण की भी लेखक की दृष्टि और पद्धति भिन्न है। इसीलिए हम इस पुस्तक को आलोचना की रचनात्मक प्रस्तुति कह सकते हैं।
पुस्तक में आलोचना के विकास क्रम को उसके ऊपर जाते ग्राफ़ से ही नहीं आँका गया है। युगपरिवर्तन के साथ विकास का ग्राफ़ कभी नीचे भी जाता है। लेखक का कहना है कि इसे भी तो विकास ही कहा जायेगा।
लेखक ने आलोचना के पुराने स्थापित मानदण्डों को स्वीकार न करते हुए बहुत-सी स्थापित पुस्तकों को विस्थापित किया है। वहीं बहुत-सी विस्थापित पुस्तकों का पुनर्मूल्यांकन कर उन्हें उनका उचित स्थान दिलाया है।
पुस्तक में ऐतिहासिक उपन्यासों और महिला लेखिकाओं के अलग-अलग अध्याय हैं। क्योंकि जहाँ ऐतिहासिक उपन्यास प्रायः इतिहास की समकालीनता सिद्ध करते हैं, वहीं महिला लेखिकाओं का जीवन की समस्याओं और सवालों को देखने तथा उनसे जूझने का नज़रिया पुरुष लेखकों से भिन्न दिखलाई पड़ता है। समय बदल रहा है। बदल गया है। आज की महिला पहले की महिलाओं की तरह पुरुष की दासी नहीं है। वह जीवन में कन्धे से कन्धा मिलाकर चलनेवाली आधुनिक महिला है। वह पीड़ित और प्रताड़ित है तो जुझारू, लड़ाकू और प्रतिरोधक जीवन शक्ति से संचारित भी है।

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Description

आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण –
प्रख्यात आलोचक विजय मोहन सिंह की पुस्तक ‘आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण’ में आधुनिकता को नये सिरे से परिभाषित और विश्लेषित करने की पहल है। काल विभाजन की पद्धति भी बदली, सटीक और बहुत वैज्ञानिक दिखलाई देगी।
साहित्य के विकासात्मक विश्लेषण की भी लेखक की दृष्टि और पद्धति भिन्न है। इसीलिए हम इस पुस्तक को आलोचना की रचनात्मक प्रस्तुति कह सकते हैं।
पुस्तक में आलोचना के विकास क्रम को उसके ऊपर जाते ग्राफ़ से ही नहीं आँका गया है। युगपरिवर्तन के साथ विकास का ग्राफ़ कभी नीचे भी जाता है। लेखक का कहना है कि इसे भी तो विकास ही कहा जायेगा।
लेखक ने आलोचना के पुराने स्थापित मानदण्डों को स्वीकार न करते हुए बहुत-सी स्थापित पुस्तकों को विस्थापित किया है। वहीं बहुत-सी विस्थापित पुस्तकों का पुनर्मूल्यांकन कर उन्हें उनका उचित स्थान दिलाया है।
पुस्तक में ऐतिहासिक उपन्यासों और महिला लेखिकाओं के अलग-अलग अध्याय हैं। क्योंकि जहाँ ऐतिहासिक उपन्यास प्रायः इतिहास की समकालीनता सिद्ध करते हैं, वहीं महिला लेखिकाओं का जीवन की समस्याओं और सवालों को देखने तथा उनसे जूझने का नज़रिया पुरुष लेखकों से भिन्न दिखलाई पड़ता है। समय बदल रहा है। बदल गया है। आज की महिला पहले की महिलाओं की तरह पुरुष की दासी नहीं है। वह जीवन में कन्धे से कन्धा मिलाकर चलनेवाली आधुनिक महिला है। वह पीड़ित और प्रताड़ित है तो जुझारू, लड़ाकू और प्रतिरोधक जीवन शक्ति से संचारित भी है।

About Author

विजय मोहन सिंह - जन्म: 1 जनवरी, 1936, शाहाबाद (बिहार) में। शिक्षा: एम.ए., पीएच.डी.। कार्यक्षेत्र की दृष्टि से 1960 से 1969 तक आरा (बिहार) के डिग्री कॉलेज में अध्यापन। अप्रैल, 1973 से 1975 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनन्द महाविद्यालय में अध्यापन। अप्रैल, 1975 से 1982 तक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में सहायक प्रोफ़ेसर। 1983 से 1990 तक भारत भवन, भोपाल में 'वागर्थ' का संचालन। 1991 से 1994 तक हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव। 1964 से 1968 तक पटना से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'नई धारा' का सम्पादन। नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित यूनेस्को कूरियर के कुछ महत्त्वपूर्ण अंकों तथा एन.सी.ई.आर.टी. के लिए राजा राममोहन राय की जीवनी का हिन्दी अनुवाद। प्रकाशन: पाँच आलोचना की पुस्तकें। 'टट्टू सवार', 'एक बंगला बने न्यारा', 'ग़मे हस्ती का हो किससे...!' तीन कहानी-संग्रह। 'कोई वीरानी-सी वीरानी है...' उपन्यास। 1960 के बाद की कहानियों का एक चयन और उसका सम्पादन। हिन्दी की प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में 100 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।

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