Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Rachnatmak Ananyata

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
डॉ. रणजीत साहा
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
डॉ. रणजीत साहा
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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आधुनिक भारतीय चित्राकला की रचनात्मक अनन्यता –
आधुनिक भारतीय कला-परिदृश्य को बहुधा भारतीय पुनर्जागरण या प्रबोधन के सन्दर्भ में पारिभाषित किया जाता रहा है। आशय स्पष्ट है अन्यथा या आरोपित बन्धनों, पूर्वरूढ़ियों, अन्ध रीतियों से मुक्ति और व्यक्ति-सत्ता की प्रतिष्ठा।
बीसवीं सदी के आगमन के साथ, आधुनिक भारतीय कला-दृष्टि सम्पन्न, सजग और संघर्षरत कला सर्जक विषय-वस्तु, माध्यम, उपकरण आदि के साथ अपनी भूमिका को सार्थक करने में जुट गये। रवि वर्मा (1848-1906) के बाद, आधुनिकता के संस्पर्श से कला-सृजन के क्षेत्रा में गुणात्मक परिवर्तन आया, जिसे अवनीन्द्रनाथ ठाकुर, नन्दलाल बसु, रवीन्द्रनाथ, अमृता शेरगिल, जामिनी राय और उन परवर्ती चित्राकारों में लक्ष्य किया जा सकता है, जिन्होंने प्राच्य और पाश्चात्य कलादर्शों से अलग हटकर, अपनी राह अन्वेषित की और रचनात्मक पहचान स्थापित की। विभिन्न कलान्दोलनों और चित्राण शैली से गुज़रती हुई, भारतीय कला ने बीसवीं सदी के चालीस-पचास दशक तक अपना एक मुकषम तय कर लिया था। इन कलाकारों की रचनात्मक अनन्यता इस अर्थ में भी महत्त्वपूर्ण है कि सार्वदेशिक, सार्वकालिक और सार्वजनीन होने का कोई दावा न करते हुए, इन्होंने अपनी कृतियों या निर्मितियों को ही ‘स्व’ का विस्तार माना। पाश्चात्य कलान्दोलनों और प्राच्य कला पद्धतियों से सम्बद्ध- असम्बद्ध चित्राकारोंµयथा, सूज़ा, रज़ा, हुसेन, कृशन खन्ना, गायतोंडे, रामकुमार, अकबर पदमसी, तैयब मेहता, परितोष सेन, गणेश पाइन, लालू प्रसाद शॉ, विकास भट्टाचार्य, अंजली इला मेनन, अर्पिता सिंह, यूसुफ़ अरक्कल, जय झरोटियाµइन सबकी कलात्मक अनन्यता का समुचित आकलन एवं विश्लेषण हिन्दी के सुपरिचित लेखक, आलोचक और कला-चिन्तक डॉ. रणजीत साहा ने अत्यन्त श्रमपूर्वक किया है।
कला-प्रेमियों और कला-अध्येताओं को, सम्बन्धित कलाकारों द्वारा उकेरे गये चित्रों से सुसज्जित प्रस्तुत कृति पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी जान पड़ेगी।

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आधुनिक भारतीय चित्राकला की रचनात्मक अनन्यता –
आधुनिक भारतीय कला-परिदृश्य को बहुधा भारतीय पुनर्जागरण या प्रबोधन के सन्दर्भ में पारिभाषित किया जाता रहा है। आशय स्पष्ट है अन्यथा या आरोपित बन्धनों, पूर्वरूढ़ियों, अन्ध रीतियों से मुक्ति और व्यक्ति-सत्ता की प्रतिष्ठा।
बीसवीं सदी के आगमन के साथ, आधुनिक भारतीय कला-दृष्टि सम्पन्न, सजग और संघर्षरत कला सर्जक विषय-वस्तु, माध्यम, उपकरण आदि के साथ अपनी भूमिका को सार्थक करने में जुट गये। रवि वर्मा (1848-1906) के बाद, आधुनिकता के संस्पर्श से कला-सृजन के क्षेत्रा में गुणात्मक परिवर्तन आया, जिसे अवनीन्द्रनाथ ठाकुर, नन्दलाल बसु, रवीन्द्रनाथ, अमृता शेरगिल, जामिनी राय और उन परवर्ती चित्राकारों में लक्ष्य किया जा सकता है, जिन्होंने प्राच्य और पाश्चात्य कलादर्शों से अलग हटकर, अपनी राह अन्वेषित की और रचनात्मक पहचान स्थापित की। विभिन्न कलान्दोलनों और चित्राण शैली से गुज़रती हुई, भारतीय कला ने बीसवीं सदी के चालीस-पचास दशक तक अपना एक मुकषम तय कर लिया था। इन कलाकारों की रचनात्मक अनन्यता इस अर्थ में भी महत्त्वपूर्ण है कि सार्वदेशिक, सार्वकालिक और सार्वजनीन होने का कोई दावा न करते हुए, इन्होंने अपनी कृतियों या निर्मितियों को ही ‘स्व’ का विस्तार माना। पाश्चात्य कलान्दोलनों और प्राच्य कला पद्धतियों से सम्बद्ध- असम्बद्ध चित्राकारोंµयथा, सूज़ा, रज़ा, हुसेन, कृशन खन्ना, गायतोंडे, रामकुमार, अकबर पदमसी, तैयब मेहता, परितोष सेन, गणेश पाइन, लालू प्रसाद शॉ, विकास भट्टाचार्य, अंजली इला मेनन, अर्पिता सिंह, यूसुफ़ अरक्कल, जय झरोटियाµइन सबकी कलात्मक अनन्यता का समुचित आकलन एवं विश्लेषण हिन्दी के सुपरिचित लेखक, आलोचक और कला-चिन्तक डॉ. रणजीत साहा ने अत्यन्त श्रमपूर्वक किया है।
कला-प्रेमियों और कला-अध्येताओं को, सम्बन्धित कलाकारों द्वारा उकेरे गये चित्रों से सुसज्जित प्रस्तुत कृति पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी जान पड़ेगी।

About Author

डॉ. रणजीत साहा हिन्दी के सुपरिचित विद्वान डॉ. रणजीत साहा (जन्म : 21 जुलाई, 1946), हिन्दी में एम.ए. ( प्रथम श्रेणी), विश्वभारती, शान्तिनिकेतन से पीएच.डी. तथा तुलनात्मक साहित्य एवं ललित कला अधिकाय में भी उपाधियाँ प्राप्त हैं। भागलपुर, शान्तिनिकेतन एवं दिल्ली विश्वविद्यालयों में अध्ययन तथा शोध-सम्बन्धी परियोजनाओं से जुड़े रहने के उपरान्त आप दो दशकों तक साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली के उपसचिव पद पर कार्यरत रहे। शोध एवं अनुवाद के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य कर चुके डॉ. रणजीत साहा की लगभग तीन दर्जन पुस्तकें एवं कई शोधपूर्ण लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके द्वारा लिखित कृतियों में युगसन्धि के प्रतिमान, सहज सिद्ध : साधना एवं सर्जना, किरंतन, महामति प्राणनाथ: वाङ्मय विमर्श, सिद्ध साहित्य : साधन विमर्श तथा चर्यागीति विमर्श (समालोचना) अमृत राय, रवीन्द्र मनीषा एवं रवीन्द्रनाथ की कला-सृष्टि के अलावा गीतांजलि का हिन्दी अनुवाद सम्मिलित हैं। आपने बाङ्ला के कई शीर्षस्थ लेखकों के अलावा अंग्रेज़ी एवं गुजराती से भी कई कृतियों का अनुवाद किया है। समकालीन रोमानियाई कविता का विशिष्ट संकलन सच लेता है आकार (साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित) कविता के पाठकों द्वारा काफी सराहा गया है। वर्ष 2007 में रोमान कल्चरल इंस्टीट्यूट, रोमानिया से विज़िटिंग फ़ेलोशिप प्राप्त डॉ. साहा को रोमानिया दूतावास ने साहित्य के क्षेत्र में 'श्रेष्ठ प्रोत्साहक' (बेस्ट प्रोमोटर) का सम्मान प्रदान किया है। भारतीय भाषा केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू वि.वि. से सेवामुक्त डॉ.. रणजीत साहा की मौलिक लेखन के अलावा, अनुवाद के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान है। ललित कला, विशेषकर कला समीक्षा में आपकी गहरी रुचि है। रूस, अमरीका, इंग्लैंड, जापान, बुल्गारिया, मॉरीशस एवं नेपाल की विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके डॉ. साहा भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता के सेतुबन्ध पुरस्कार, अन्तर्राष्ट्रीय इंडो- रसियन लिटरेरी सम्मान, दिनकर रत्न सम्मान, उ.प्र. हिन्दी-उर्दू कमिटी अवार्ड, हिन्दी साहित्य-सेवी सम्मान (म.गां. अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.) तथा काकासाहेब कालेलकर अलंकरण से सम्मानित और कई साहित्यिक संस्थाओं से समादृत हैं। सम्प्रति : दिल्ली में रहते हुए आप साहित्य सृजन में व्यस्त हैं। सम्पर्क : एम.जी. 1/26, विकासपुरी, नयी दिल्ली-110018 मोबाइल : 9811262257

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