Aadha Gaon

Publisher:
RajKamal
| Author:
Rahi Masoom Raza
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
RajKamal
Author:
Rahi Masoom Raza
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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344

धा
गाँव, यानी गंगौली। ज़िला ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)। काल-परिप्रेक्ष्य–1947,
स्वाधीनता के समय होनेवाला देश-विभाजन। गंगौली मुस्लिम-बहुल गाँव है और यह
उपन्यास है–इस गाँव के मुसलमानों का बेपर्द जीवन-यथार्थ। पूरी तरह सच, बेबाक और
धारदार। पाकिस्तान बनते समय मुसलमानों की विविध मन:स्थितियों, हिन्दुओं के साथ
उनके सहज आत्मीय संबंधों तथा द्वंद्वमूलक अनुभवों का अविस्मरणीय शब्दांकन।
सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ एक ऐसा सृजनात्मक प्रहार, जो दुनिया में कहीं भी
राष्ट्रीयता ही के हक़ में जाता है।

लेखकीय चिंता सार्वजनीन है कि गंगौली में अगर गंगौलीवाले कम तथा सुन्नी और
शिया और हिन्दू ज़्यादा दिखाई देने लगें, तो गंगौली का क्या होगा?…दूसरे शब्दों
में, गंगौली को यदि भारत मान लिया जाए तो भारत का क्या होगा? भारतीय कौन
होंगे?…अपनी वस्तुगत चिंताओं, गतिशील रचनाशिल्प, आंचलिक भाषा-सौंदर्य और
सांस्कृतिक परिवेश के चित्रण की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण उपन्यास–हिन्दी
कथा-साहित्य की बहुचर्चित और निर्विवाद उपलब्धि। इस कृति की सबसे बड़ी ख़ासियत
है–संयमहीनता। इसके सभी पात्र बिना लगाम के हैं और उनकी अभिव्यक्ति सहज, सटीक और
दो टूक है, गालियों की हद तक।

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Description

धा
गाँव, यानी गंगौली। ज़िला ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)। काल-परिप्रेक्ष्य–1947,
स्वाधीनता के समय होनेवाला देश-विभाजन। गंगौली मुस्लिम-बहुल गाँव है और यह
उपन्यास है–इस गाँव के मुसलमानों का बेपर्द जीवन-यथार्थ। पूरी तरह सच, बेबाक और
धारदार। पाकिस्तान बनते समय मुसलमानों की विविध मन:स्थितियों, हिन्दुओं के साथ
उनके सहज आत्मीय संबंधों तथा द्वंद्वमूलक अनुभवों का अविस्मरणीय शब्दांकन।
सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ एक ऐसा सृजनात्मक प्रहार, जो दुनिया में कहीं भी
राष्ट्रीयता ही के हक़ में जाता है।

लेखकीय चिंता सार्वजनीन है कि गंगौली में अगर गंगौलीवाले कम तथा सुन्नी और
शिया और हिन्दू ज़्यादा दिखाई देने लगें, तो गंगौली का क्या होगा?…दूसरे शब्दों
में, गंगौली को यदि भारत मान लिया जाए तो भारत का क्या होगा? भारतीय कौन
होंगे?…अपनी वस्तुगत चिंताओं, गतिशील रचनाशिल्प, आंचलिक भाषा-सौंदर्य और
सांस्कृतिक परिवेश के चित्रण की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण उपन्यास–हिन्दी
कथा-साहित्य की बहुचर्चित और निर्विवाद उपलब्धि। इस कृति की सबसे बड़ी ख़ासियत
है–संयमहीनता। इसके सभी पात्र बिना लगाम के हैं और उनकी अभिव्यक्ति सहज, सटीक और
दो टूक है, गालियों की हद तक।

About Author

जन्म : 1 सितम्बर, 1925। जन्मस्थान : गाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)। प्रारम्भिक शिक्षा वहीं, परवर्ती अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से ही 'उर्दू साहित्य के भारतीय व्यक्तित्व’ पर पी-एच.डी.। अध्ययन समाप्त करने के बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में अध्यापन-कार्य से जीविकोपार्जन की शुरुआत। कई वर्षों तक उर्दू-साहित्य पढ़ाते रहे। बाद में फिल्म-लेखन के लिए बम्बई गए। जीने की जी-तोड़ कोशिशें और आंशिक सफलता। फिल्मों में लिखने के साथ-साथ हिन्दी-उर्दू में समान रूप से सृजनात्मक लेखन। फिल्म-लेखन को बहुत से लेखकों की तरह 'घटिया काम’ नहीं, बल्कि 'सेमी क्रिएटिव’ काम मानते थे। बी.आर. चोपड़ा के निर्देशन में बने महत्त्वपूर्ण दूरदर्शन धारावाहिक 'महाभारत’ के पटकथा और संवाद-लेखक के रूप में प्रशंसित। एक ऐसे कवि-कथाकार, जिनके लिए भारतीयता आदमीयत का पर्याय रही। प्रकाशित पुस्तकें : आधा गाँव, टोपी शुक्ला, हिम्मत जौनपुरी, ओस की बूँद, दिल एक सादा काग़ज़, कटरा बी आज़ूर्, असन्तोष के दिन, नीम का पेड़, कारोबारे तमन्ना, क़यामत (हिन्दी उपन्यास); मुहब्बत के सिवा (उर्दू उपन्यास); मैं एक फेरीवाला (हिन्दी कविता-संग्रह); नया साल, मौजे-गुल : मौजे सबा, रक्से-मय, अजनबी शहर : अजनबी रास्ते (उर्दू कविता-संग्रह); अट्ठारह सौ सत्तावन (हिन्दी-उर्दू महाकाव्य) तथा छोटे आदमी की बड़ी कहानी (जीवनी)।

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