SaleSold outHardback
Brhat Visva Sukti Kosa-II
₹1,000 ₹700
Save: 30%
Samsamayik Nibandh
₹400 ₹280
Save: 30%
101 Laghukathayen
Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
| Author:
Vijay Agrawal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Author:
Vijay Agrawal
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹350 ₹245
Save: 30%
Out of stock
Receive in-stock notifications for this.
Ships within:
1-4 Days
Out of stock
ISBN:
SKU
9788177212563
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
172
प्रतिष्ठित लेखक डॉ. विजय अग्रवाल की ये लघुकथाएँ स्वयं पर लगाए जानेवाले इस आरोप को झुठलाती हैं कि लघुकथाएँ लघु तो होती हैं, लेकिन उनमें कथा नहीं होती। इस संग्रह की लघुकथाओं में कथा तो है ही, साथ ही उन्हें कहने के ढंग में भी ‘कहन’ की शैली है। इसलिए ये छोटी-छोटी रचनाएँ पाठक के अंतर्मन में घुसकर वहाँ बैठ जाने का सामर्थ्य रखती हैं। ये लघुकथाएँ मानव के मन और मस्तिष्क के द्वंद्वों तथा उनके विरोधाभासों को जिंदगी की रोजमर्रा की घटनाओं और व्यवहारों के माध्यम से हमारे सामने लाती हैं। इनमें जहाँ भावुक मन की तिलमिलाती हुई तरंगें मिलेंगी, वहीं कहीं-कहीं तल में मौजूद विचारों के मोती भी। पाठक इसमें मन और विचारों के एक ऐसे मेले की सैर कर सकता है, जहाँ बहुत सी चीजें हैं—और तरीके एवं सलीके से भी हैं। इस संग्रह की विशेषता है— सपाटबयानी की बजाय किस्सागोई। निश्चय ही ये लघुकथाएँ सुधी पाठकों को कुरेदेंगी, गुदगुदाएँगी और सोचने पर विवश करेंगी।.
Be the first to review “101 Laghukathayen” Cancel reply
Description
प्रतिष्ठित लेखक डॉ. विजय अग्रवाल की ये लघुकथाएँ स्वयं पर लगाए जानेवाले इस आरोप को झुठलाती हैं कि लघुकथाएँ लघु तो होती हैं, लेकिन उनमें कथा नहीं होती। इस संग्रह की लघुकथाओं में कथा तो है ही, साथ ही उन्हें कहने के ढंग में भी ‘कहन’ की शैली है। इसलिए ये छोटी-छोटी रचनाएँ पाठक के अंतर्मन में घुसकर वहाँ बैठ जाने का सामर्थ्य रखती हैं। ये लघुकथाएँ मानव के मन और मस्तिष्क के द्वंद्वों तथा उनके विरोधाभासों को जिंदगी की रोजमर्रा की घटनाओं और व्यवहारों के माध्यम से हमारे सामने लाती हैं। इनमें जहाँ भावुक मन की तिलमिलाती हुई तरंगें मिलेंगी, वहीं कहीं-कहीं तल में मौजूद विचारों के मोती भी। पाठक इसमें मन और विचारों के एक ऐसे मेले की सैर कर सकता है, जहाँ बहुत सी चीजें हैं—और तरीके एवं सलीके से भी हैं। इस संग्रह की विशेषता है— सपाटबयानी की बजाय किस्सागोई। निश्चय ही ये लघुकथाएँ सुधी पाठकों को कुरेदेंगी, गुदगुदाएँगी और सोचने पर विवश करेंगी।.
About Author
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “101 Laghukathayen” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.