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Gheranda Sanhita (in Hindi)
Publisher:
Bihar School of Yoga
| Author:
Swami Niranjanananda Saraswati
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Bihar School of Yoga
Author:
Swami Niranjanananda Saraswati
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹599 ₹598
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In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9788186336359
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
394
इस पुस्तक में महर्षि घेरण्ड प्रणीत घेरण्ड संहिता की स्वामी निरंजानन्द सरस्वती द्वारा विशद व्याख्या की गयी है। इसमें सप्तांग योग की व्यावाहारिक शिक्षा दी गयी है। शरीर शुद्धि की क्रियाओं, जैसे, नेति, धौति, वस्ति, नौलि, कपालभाति और त्राटक से आरंभ कर आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधि के अभ्यासों का सरल भाषा में सचित्र वर्णन किया गया है।
महर्षि घेरण्ड के घटस्थ योग के नाम से प्रसिद्ध ये अभ्यास आत्माज्ञान प्राप्त करने के लिए शरीर को माध्यम बनाकर मानसिक और भावनात्मक स्तरों को नियंत्रित करते हुए आध्यात्मिक अनुभूति को जाग्रत करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यह पुस्तक प्रारंभिक से लेकर उच्च योगाभ्यासियों के लिए अत्यंत उपयोगी, ज्ञानवर्द्धक एवं संग्रहणीय है।
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Description
इस पुस्तक में महर्षि घेरण्ड प्रणीत घेरण्ड संहिता की स्वामी निरंजानन्द सरस्वती द्वारा विशद व्याख्या की गयी है। इसमें सप्तांग योग की व्यावाहारिक शिक्षा दी गयी है। शरीर शुद्धि की क्रियाओं, जैसे, नेति, धौति, वस्ति, नौलि, कपालभाति और त्राटक से आरंभ कर आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधि के अभ्यासों का सरल भाषा में सचित्र वर्णन किया गया है।
महर्षि घेरण्ड के घटस्थ योग के नाम से प्रसिद्ध ये अभ्यास आत्माज्ञान प्राप्त करने के लिए शरीर को माध्यम बनाकर मानसिक और भावनात्मक स्तरों को नियंत्रित करते हुए आध्यात्मिक अनुभूति को जाग्रत करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यह पुस्तक प्रारंभिक से लेकर उच्च योगाभ्यासियों के लिए अत्यंत उपयोगी, ज्ञानवर्द्धक एवं संग्रहणीय है।
About Author
स्वामी निरंजनानन्द का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनाँदगाँव में सन् 1960 में हुआ । जन्म से ही उनकी जीवन दिशा उनके गुरु, स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा निर्देशित रही । चार वर्ष की अवस्था में वे गुरु सात्रिध्य में रहने बिहार योग विद्यालय आये, जहाँ उनके गुरु ने योग निद्रा के माध्यम से उन्हें योग एवं अध्यात्म का गहन प्रशिक्षण प्रदान किया । सर 1971 में वे दशनामी संन्यास परम्परा में दीक्षित हुए, तत्पश्चात् 11 वर्षों तक विभिन्न देशों की यात्राएँ कर उन्होंने अनेक कलाओं में दक्षता अर्जित की और विभिन्न संस्कृतियों के सम्पर्क में रहकर उनकी गहरी समझ प्राप्त की तथा यूरोप, ऑस्ट्रेलिया उत्तर एवं दक्षिण अमरीका में अनेक सत्यानन्द योग केन्द्रों एवं आश्रमों की स्थापना की ।
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