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Bhale Bhooton Ki Kahaniyan
Publisher:
Sahitya Vimarsh
| Author:
Samir Ganguly
| Language:
HIndi
| Format:
Paperback
Publisher:
Sahitya Vimarsh
Author:
Samir Ganguly
Language:
HIndi
Format:
Paperback
₹149 ₹148
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In stock
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3-5 Days
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Book Type |
---|
Page Extent:
94
मुझे यह जानकर ‘थोड़ी खुशी, थोड़ा गम’ हुआ है कि हमारे बारे में बच्चों के लिए कहानी की एक किताब लिखी जा रही है। उम्मीद है ये कहानियाँ झूठ-मूठ में बच्चों को डराने के लिए नहीं होंगी, बल्कि इन्सानों के साथ हमारा एक दोस्ताना रिश्ता बनाएँगी। हम बेवजह किसी से उलझते नहीं हैं। अरे भाई हमें भी तुम्हारी तरह कई चीजों से डर लगता है। कुछ चीजें अच्छी भी लगती हैं, जैसे कि गन्ने का रस। और ये बिलकुल झूठ है कि हम खून पीते हैं। अब इस लेखक की बात पर भी आँख मूँद कर भरोसा मत करना। आँख बंद कर लेने से तुम्हारे दिमाग में वही तस्वीर उभर आती है जो तम देखना चाहते हो। और यहाँ तो ‘न तुम हमें जानो, न हम तुम्हें जानें’ वाला मामला है। वैसे इन कहानियों को पढ़कर मुझे बहुत मजा आया। मैंने अपने कुछ साथियों को भी सुनाई, मगर कुछ भूत बड़े गुस्सा हो गए, और मुझसे लेखक का पता मााँगने लगे। मगर मैंने नहीं दिया, क्योंकि मुझे भूतों की सुरक्षा का डर था और लेखकों की ताकत को कभी कम नहीं समझना चाहिए, वे कुछ भी कर सकते हैं- अपनी कहानियों में। लेखक भाई से अभी तक मेरी मुलाकात नहीं हुई है। इन्होंने मिलने से मना कर दिया। सुना है लेखक काफी डरपोक है। मगर आप तो बहादुर हैं ना, तभी तो ये किताब खरीदी है। तो क्या मुझसे मिलना चाहोगे? अगर हाँ, तो रात को किताब पढ़ने के बाद अपने सिरहाने के नीचे रखकर सोना। अगर भत सच्ची-मुच्ची होते हैं तो मिलने आऊँगा किसी दिन।
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Description
मुझे यह जानकर ‘थोड़ी खुशी, थोड़ा गम’ हुआ है कि हमारे बारे में बच्चों के लिए कहानी की एक किताब लिखी जा रही है। उम्मीद है ये कहानियाँ झूठ-मूठ में बच्चों को डराने के लिए नहीं होंगी, बल्कि इन्सानों के साथ हमारा एक दोस्ताना रिश्ता बनाएँगी। हम बेवजह किसी से उलझते नहीं हैं। अरे भाई हमें भी तुम्हारी तरह कई चीजों से डर लगता है। कुछ चीजें अच्छी भी लगती हैं, जैसे कि गन्ने का रस। और ये बिलकुल झूठ है कि हम खून पीते हैं। अब इस लेखक की बात पर भी आँख मूँद कर भरोसा मत करना। आँख बंद कर लेने से तुम्हारे दिमाग में वही तस्वीर उभर आती है जो तम देखना चाहते हो। और यहाँ तो ‘न तुम हमें जानो, न हम तुम्हें जानें’ वाला मामला है। वैसे इन कहानियों को पढ़कर मुझे बहुत मजा आया। मैंने अपने कुछ साथियों को भी सुनाई, मगर कुछ भूत बड़े गुस्सा हो गए, और मुझसे लेखक का पता मााँगने लगे। मगर मैंने नहीं दिया, क्योंकि मुझे भूतों की सुरक्षा का डर था और लेखकों की ताकत को कभी कम नहीं समझना चाहिए, वे कुछ भी कर सकते हैं- अपनी कहानियों में। लेखक भाई से अभी तक मेरी मुलाकात नहीं हुई है। इन्होंने मिलने से मना कर दिया। सुना है लेखक काफी डरपोक है। मगर आप तो बहादुर हैं ना, तभी तो ये किताब खरीदी है। तो क्या मुझसे मिलना चाहोगे? अगर हाँ, तो रात को किताब पढ़ने के बाद अपने सिरहाने के नीचे रखकर सोना। अगर भत सच्ची-मुच्ची होते हैं तो मिलने आऊँगा किसी दिन।
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