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Kotdwar : Dil Likhta Bhi Hai
Publisher:
Sahitya Vimarsh
| Author:
Parag Dimri
| Language:
HIndi
| Format:
Paperback
Publisher:
Sahitya Vimarsh
Author:
Parag Dimri
Language:
HIndi
Format:
Paperback
₹199 ₹198
Save: 1%
In stock
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3-5 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9789392829529
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
114
कोटद्वार पर लिखना कोटद्वार के अलावा, उस दौर पर लिखना भी था, जब ज़िंदा लोगों से ही नहीं निर्जीवों से भी गहरा रिश्ता हुआ करता था। जब सादगी थी, सड़कों के किनारे पेड़ हुआ करते थे। फल खरीदकर ही नहीं, पेड़ पर चोरी से चढ़ कर, पत्थर मारकर भी खा लिए जाते थे। रोज काफी लोगों से मिलना होता था। लोगों से उनके घर के अंदर घंटों बातें हुआ करती थी, फिर घर की चौखट, ड्योढ़ी पर भी आधे घंटे और बातें हो जाया करती थीं। लड़कपन घर के बाहर ही बीतता था। गर्मियों की छुट्टियाँ रिश्तेदारों के यहाँ कटती थीं, किसी हिल स्टेशन के होटल, रिसोर्ट में नहीं। फोटो खिंचवाते वक्त चेहरे पर असली भाव ही कायम रखते थे। न तो ज़िन्दगी में फ़िल्टर किया जाता था, और न ही फोटूओं में।
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Description
कोटद्वार पर लिखना कोटद्वार के अलावा, उस दौर पर लिखना भी था, जब ज़िंदा लोगों से ही नहीं निर्जीवों से भी गहरा रिश्ता हुआ करता था। जब सादगी थी, सड़कों के किनारे पेड़ हुआ करते थे। फल खरीदकर ही नहीं, पेड़ पर चोरी से चढ़ कर, पत्थर मारकर भी खा लिए जाते थे। रोज काफी लोगों से मिलना होता था। लोगों से उनके घर के अंदर घंटों बातें हुआ करती थी, फिर घर की चौखट, ड्योढ़ी पर भी आधे घंटे और बातें हो जाया करती थीं। लड़कपन घर के बाहर ही बीतता था। गर्मियों की छुट्टियाँ रिश्तेदारों के यहाँ कटती थीं, किसी हिल स्टेशन के होटल, रिसोर्ट में नहीं। फोटो खिंचवाते वक्त चेहरे पर असली भाव ही कायम रखते थे। न तो ज़िन्दगी में फ़िल्टर किया जाता था, और न ही फोटूओं में।
About Author
पराग डिमरी, वर्तमान में गाजियाबाद वासी।स्मृतियों में अभी भी बचपन के उत्तराखंड प्रदेश के छोटे से शहर कोटद्वार में ही अपनी जड़ों को महसूस करते हैं।जीविका के लिए दिल्ली स्थित एक निजी संस्थान में विपणन और व्यवसाय वृद्धि विभाग में कार्यरत।रोजगार के निर्वहन के अतिरिक्त काफी पढ़ना, कभी लिखना और मधुर संगीत को सुनना, बस इसके इर्द-गिर्द ही जीवन को सीमित कर रखा है। इस पुस्तक के लिए भी एक फिल्मी गीत की पंक्ति को उद्धृत करते रहते हैं:-…कोई अपनी पलकों पर यादों के दिए रखता है…
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