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Kshat Medini | क्षत मेदिनी
Publisher:
Sahitya Vimarsh
| Author:
Jyoti Verma
| Language:
HIndi
| Format:
Paperback
Publisher:
Sahitya Vimarsh
Author:
Jyoti Verma
Language:
HIndi
Format:
Paperback
₹190 ₹189
Save: 1%
In stock
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3-5 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9789392829475
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
156
क्षत मेदिनी, नाम ही कितना गंभीर और उत्कृष्ट जैसे कि इसका विषय। यूँ तो यह एक कथा संग्रह है, लेकिन बता यह भी दूँ कि इसे पढ़ते हुये मुझे उपन्यास जैसी फ़ीलिंग आती रही। कारण यही हो सकता है कि हर कहानी का कैनवास इतना बड़ा है कि पढ़ते हुये उपन्यास का ही आनन्द आता है। वैसे लेखन बड़ा गम्भीर विषय माना जाता है और ज्योति ने इस गंभीरता को कलम में उतारकर स्त्रियों की भावनात्मक मनोदशा की सही धार पर चोट की है। कहानियों की बात करें तो इस किताब में मौजूद कहानियाँ केवल परिस्थितियों और संवादों का मेल नहीं हैं, बल्कि हर संवाद के, भावनात्मक उतार-चढ़ाव के पीछे की स्त्री मनोदशा और सामाजिक मनोविज्ञान का लेखा-जोखा है। जैसे-जैसे हम किरदारों की ज़िन्दगी में शामिल होते हैं, शामिल होने का मतलब बारीकी से एक-एक गाँठ और जोड़ को खोलना होता है, वैसे-वैसे वे किरदार हमें असंख्य उपेक्षित और बेहद ज़रूरी सवालों के बीच खड़ा करते चले जाते हैं। अब तक ज़्यादातर रचनाओं में हमने पढ़ा कि स्त्रियाँ ‘कहूँ या न कहूँ’ के ऊहापोह से गुजरती रहती हैं। दो टूक तुरन्त कहने का साहस नहीं, मगर अब यह स्वाभाविक वृत्ति आज की स्त्री ने पैदा कर ली है, जिस से पुरुष के सारे तर्क निर्मूल हो जाते हैं।
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Description
क्षत मेदिनी, नाम ही कितना गंभीर और उत्कृष्ट जैसे कि इसका विषय। यूँ तो यह एक कथा संग्रह है, लेकिन बता यह भी दूँ कि इसे पढ़ते हुये मुझे उपन्यास जैसी फ़ीलिंग आती रही। कारण यही हो सकता है कि हर कहानी का कैनवास इतना बड़ा है कि पढ़ते हुये उपन्यास का ही आनन्द आता है। वैसे लेखन बड़ा गम्भीर विषय माना जाता है और ज्योति ने इस गंभीरता को कलम में उतारकर स्त्रियों की भावनात्मक मनोदशा की सही धार पर चोट की है। कहानियों की बात करें तो इस किताब में मौजूद कहानियाँ केवल परिस्थितियों और संवादों का मेल नहीं हैं, बल्कि हर संवाद के, भावनात्मक उतार-चढ़ाव के पीछे की स्त्री मनोदशा और सामाजिक मनोविज्ञान का लेखा-जोखा है। जैसे-जैसे हम किरदारों की ज़िन्दगी में शामिल होते हैं, शामिल होने का मतलब बारीकी से एक-एक गाँठ और जोड़ को खोलना होता है, वैसे-वैसे वे किरदार हमें असंख्य उपेक्षित और बेहद ज़रूरी सवालों के बीच खड़ा करते चले जाते हैं। अब तक ज़्यादातर रचनाओं में हमने पढ़ा कि स्त्रियाँ ‘कहूँ या न कहूँ’ के ऊहापोह से गुजरती रहती हैं। दो टूक तुरन्त कहने का साहस नहीं, मगर अब यह स्वाभाविक वृत्ति आज की स्त्री ने पैदा कर ली है, जिस से पुरुष के सारे तर्क निर्मूल हो जाते हैं।
About Author
झांसी (बुन्देलखण्ड -उत्तर प्रदेश) में एस्थेटीशियन, मेकअप आर्टिस्ट एवं स्किन काउंसलर के रूप में कार्यरत ज्योति वर्मा वीमेन वेलनेस संस्था फेमिनाईनली की संस्थापिका हैं। पिछले 5 साल से कई संस्थाओं के लिये लेखन कर रही हैं। वे कई साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों में सक्रिय हैं। इसके साथ ही कुछ समाजसेवी संस्थाओं के साथ भी काम कर रही हैं।
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