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Sundarban Mein Saat Saal
Publisher:
Sahitya Vimarsh
| Author:
Bibhuti Bhushan Bandopadhyay | Jaydeep Shekhar (Translator)
| Language:
HIndi
| Format:
Paperback
Publisher:
Sahitya Vimarsh
Author:
Bibhuti Bhushan Bandopadhyay | Jaydeep Shekhar (Translator)
Language:
HIndi
Format:
Paperback
₹165 ₹164
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In stock
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3-5 Days
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Book Type |
---|
Page Extent:
126
सुंदरबन में सात साल – मेरी राय में, ऐसी रचनाएँ परीकथा या डिटेक्टिव कहानियों के मुकाबले हितकर होती हैं, क्योंकि इन्हें पढ़ने से मन में साहस का संचार होता है और कुछ ज्ञान लाभ भी होता है। साहसिक अभियान या विपत्तिसंकुल घटनावलियों के लिए अफ्रीका या चाँद पर जाने की जरूरत मैं नहीं देखता, हमारे आस-पास जो है, उन्हीं का वर्णन वास्तविकता के नजदीक होता है और यह स्वाभाविक भी जान पड़ता है। सुन्दरबन एक रहस्यमयी स्थान है, निसर्गशोभा नदियाँ, समुद्र, नाना प्रकार की वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु, संकट की आशंका- सब यहाँ मौजूद हैं। इन सबके वर्णन एवं चित्रांकन ने आपकी पुस्तक को चित्ताकर्षक बना डाला है।
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Description
सुंदरबन में सात साल – मेरी राय में, ऐसी रचनाएँ परीकथा या डिटेक्टिव कहानियों के मुकाबले हितकर होती हैं, क्योंकि इन्हें पढ़ने से मन में साहस का संचार होता है और कुछ ज्ञान लाभ भी होता है। साहसिक अभियान या विपत्तिसंकुल घटनावलियों के लिए अफ्रीका या चाँद पर जाने की जरूरत मैं नहीं देखता, हमारे आस-पास जो है, उन्हीं का वर्णन वास्तविकता के नजदीक होता है और यह स्वाभाविक भी जान पड़ता है। सुन्दरबन एक रहस्यमयी स्थान है, निसर्गशोभा नदियाँ, समुद्र, नाना प्रकार की वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु, संकट की आशंका- सब यहाँ मौजूद हैं। इन सबके वर्णन एवं चित्रांकन ने आपकी पुस्तक को चित्ताकर्षक बना डाला है।
About Author
जन्म- 24 अक्तूबर, 1894 ई., घोषपाड़ा-मुरतीपुर गाँव, अब नदिया जिला,
पुरस्कार- रवीन्द्र पुरस्कार (मरणोपरान्त), 1951
सहधर्मिणी- गौरी देवी (जिनका देहान्त कॉलेरा से हो गया था) और रमा चट्टोपाध्याय
शुरुआती जीवन
विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय का जन्म उनके ननिहाल में हुआ था और उनका बचपन बैरकपुर में बीता, जहाँ उनके परदादा बशीरहाट से आकर बस गये थे। उनके पिता महानन्द वन्द्योपाध्याय संस्कृत के विद्वान थे और पेशे से कथावाचक थे। उनकी माता मृणालिनी देवी थीं। पाँच भाई-बहनों में विभूतिभूषण सबसे बड़े थे।
एक मेधावी छात्र के रुप में उन्होंने बनगाँव हाई स्कूल से एण्ट्रेन्स एवं इण्टर की पढ़ाई की; सुरेन्द्रनाथ कॉलेज (तत्कालीन रिपन कॉलेज) से स्नातक बने, मगर कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई वे अर्थाभाव के कारण पूरी नहीं कर पाये और जंगीपाड़ा (हुगली) में वे शिक्षण के पेशे से जुड़ गये। आजीविका एवं परिवार की जिम्मेवारी निभाने के लिए वे और भी कई पेशों से जुड़े रहे।
लेखन- विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय के रचना-संसार की पृष्ठभूमि बँगाल का ग्राम्य-जीवन रहा है, वहीं से उन्होंने सारे पात्र लिये हैं। उन दिनों ‘प्रवासी’ बँगाल की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका हुआ करती थी, जिसमें उनकी पहली कहानी ‘उपेक्षिता’ सन् 1921 ईस्वी में प्रकाशित हुई। 1925 में भागलपुर (बिहार) में कार्यरत रहने के दौरान उन्होंने ‘पथेर पाँचाली’ लिखना शुरु किया, जो 1928 में पूरा हुआ। उसी वर्ष यह रचना ‘प्रवासी’ में धारावाहिक रुप से प्रकाशित हुई और उन्हें प्रसिद्धि मिलनी शुरु हो गयी। अगले साल यह रचना पुस्तक के रुप में प्रकाशित हुई। आज बँगला साहित्य में शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय के बाद उन्हीं का स्थान माना जाता है।
पुरस्कार- रवीन्द्र पुरस्कार (मरणोपरान्त), 1951
सहधर्मिणी- गौरी देवी (जिनका देहान्त कॉलेरा से हो गया था) और रमा चट्टोपाध्याय
शुरुआती जीवन
विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय का जन्म उनके ननिहाल में हुआ था और उनका बचपन बैरकपुर में बीता, जहाँ उनके परदादा बशीरहाट से आकर बस गये थे। उनके पिता महानन्द वन्द्योपाध्याय संस्कृत के विद्वान थे और पेशे से कथावाचक थे। उनकी माता मृणालिनी देवी थीं। पाँच भाई-बहनों में विभूतिभूषण सबसे बड़े थे।
एक मेधावी छात्र के रुप में उन्होंने बनगाँव हाई स्कूल से एण्ट्रेन्स एवं इण्टर की पढ़ाई की; सुरेन्द्रनाथ कॉलेज (तत्कालीन रिपन कॉलेज) से स्नातक बने, मगर कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई वे अर्थाभाव के कारण पूरी नहीं कर पाये और जंगीपाड़ा (हुगली) में वे शिक्षण के पेशे से जुड़ गये। आजीविका एवं परिवार की जिम्मेवारी निभाने के लिए वे और भी कई पेशों से जुड़े रहे।
लेखन- विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय के रचना-संसार की पृष्ठभूमि बँगाल का ग्राम्य-जीवन रहा है, वहीं से उन्होंने सारे पात्र लिये हैं। उन दिनों ‘प्रवासी’ बँगाल की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका हुआ करती थी, जिसमें उनकी पहली कहानी ‘उपेक्षिता’ सन् 1921 ईस्वी में प्रकाशित हुई। 1925 में भागलपुर (बिहार) में कार्यरत रहने के दौरान उन्होंने ‘पथेर पाँचाली’ लिखना शुरु किया, जो 1928 में पूरा हुआ। उसी वर्ष यह रचना ‘प्रवासी’ में धारावाहिक रुप से प्रकाशित हुई और उन्हें प्रसिद्धि मिलनी शुरु हो गयी। अगले साल यह रचना पुस्तक के रुप में प्रकाशित हुई। आज बँगला साहित्य में शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय के बाद उन्हीं का स्थान माना जाता है।
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