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Varchasva
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Rajesh Pandey
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Rajesh Pandey
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
Category: Biography & Memoir
Page Extent:
296
नब्बे के ही दशक में जब राजनेताओं के दिन-दहाड़े सरेआम मर्डर होने लगे तो ज़ाहिर है कि नेताओं के मन में ख़ौफ़ बैठ जाना ही था और नई पीढ़ी के वह लोग, जो देश के लिए राजनीति के सहारे कुछ करने की वाक़ई चाह रखते थे, उन्होंने इस राह पर चलने के अपने इरादों पर लगाम लगा दी। राजनीति को अपराधियों, हत्यारों, डकैतों और बलात्कारियों के हाथों में जाने देने का यह यथार्थ बड़ा भयावह था। बस, यही वह समय था जब बड़े-बड़े ख़ूँख़्वार अपराधियों के लिए राजनीति के प्रवेश द्वार पर स्वागत के लिए फूल मालाएँ लेकर ख़ुशी-ख़ुशी लोग नज़र आने लगे। राजनीति के अपराधीकरण या अपराध के राजनीतिकरण की यह शुरुआत धमाकेदार थी, उसमें ग्लैमर था, धन-दौलत थी और आधुनिक हथियारों को निहारने का मज़ा भी और जलवा अलग से। इन सियासी माफ़ियाओं की गाड़ियों का क़ाफ़िला जिधर से गुज़र जाता, सड़कें अपने आप ख़ाली हो जाया करती थीं। उन्हीं दिनों की पैदावार एक ऐसा अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला था जिसके आतंक ने यूपी और बिहार में सबकी नींदें उड़ा दी थीं। उसे किसी का भय नहीं था। आँखों में किसी तरह की मुरौवत नहीं थी। वह ऐसा बेदर्द इनसान था जिसने गोरखपुर में केबल के धंधे में पैर ज़माने के लिए एक हफ़्ते में ही एक-एक कर दर्जन भर लोगों को मार डाला था। श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे दुर्दान्त अपराधी को यूपी पुलिस की एसटीएफ़ ने दिल्ली से सटे ग़ाज़ियाबाद में मार गिराया।…इसी इनकाउंटर के इर्द-गिर्द घूम रही है इस किताब की पूरी स्क्रिप्ट… श्रीप्रकाश शुक्ला के इनकाउंटर की पूरी कहानी इसमें मौजूद है। यह किताब इस बेहद चर्चित मुठभेड़ की पूरी दास्तान बयान करती है।
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Description
नब्बे के ही दशक में जब राजनेताओं के दिन-दहाड़े सरेआम मर्डर होने लगे तो ज़ाहिर है कि नेताओं के मन में ख़ौफ़ बैठ जाना ही था और नई पीढ़ी के वह लोग, जो देश के लिए राजनीति के सहारे कुछ करने की वाक़ई चाह रखते थे, उन्होंने इस राह पर चलने के अपने इरादों पर लगाम लगा दी। राजनीति को अपराधियों, हत्यारों, डकैतों और बलात्कारियों के हाथों में जाने देने का यह यथार्थ बड़ा भयावह था। बस, यही वह समय था जब बड़े-बड़े ख़ूँख़्वार अपराधियों के लिए राजनीति के प्रवेश द्वार पर स्वागत के लिए फूल मालाएँ लेकर ख़ुशी-ख़ुशी लोग नज़र आने लगे। राजनीति के अपराधीकरण या अपराध के राजनीतिकरण की यह शुरुआत धमाकेदार थी, उसमें ग्लैमर था, धन-दौलत थी और आधुनिक हथियारों को निहारने का मज़ा भी और जलवा अलग से। इन सियासी माफ़ियाओं की गाड़ियों का क़ाफ़िला जिधर से गुज़र जाता, सड़कें अपने आप ख़ाली हो जाया करती थीं। उन्हीं दिनों की पैदावार एक ऐसा अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला था जिसके आतंक ने यूपी और बिहार में सबकी नींदें उड़ा दी थीं। उसे किसी का भय नहीं था। आँखों में किसी तरह की मुरौवत नहीं थी। वह ऐसा बेदर्द इनसान था जिसने गोरखपुर में केबल के धंधे में पैर ज़माने के लिए एक हफ़्ते में ही एक-एक कर दर्जन भर लोगों को मार डाला था। श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे दुर्दान्त अपराधी को यूपी पुलिस की एसटीएफ़ ने दिल्ली से सटे ग़ाज़ियाबाद में मार गिराया।…इसी इनकाउंटर के इर्द-गिर्द घूम रही है इस किताब की पूरी स्क्रिप्ट… श्रीप्रकाश शुक्ला के इनकाउंटर की पूरी कहानी इसमें मौजूद है। यह किताब इस बेहद चर्चित मुठभेड़ की पूरी दास्तान बयान करती है।
About Author
राजेश पाण्डेय का जन्म 15 जून, 1961 को लालापुर, प्रयागराज में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वनस्पति शास्त्र में एम.एस-सी. की डिग्री प्राप्त की। वनस्पति शास्त्र में जेआरएफ़ एवं एसआरएफ़। यूपी पुलिस प्रान्तीय सेवा (1986 बैच) में चुने गए। 2003 बैच के आईपीएस बने।
30 जून, 2021 में सेवानिवृत्त हुए।
वे लखनऊ समेत छह जिलों के एसपी और पाँच जिलों के एसएसपी रहे। बरेली पुलिस रेंज के डीआईजी फिर आईजी ज़ोन रहे। डीजीपी मुख्यालय पर आईजी इलेक्शन के रूप में भी अपनी सेवाएँ दीं। अयोध्या में 5 जुलाई, 2005 को हुए बम धमाके की विशेष जाँच टीम में शामिल रहे। यूपी एसटीएफ़ और एटीएस के संस्थापक सदस्यों में शामिल। 2016 में एसपी एटीएस के रूप में भी तैनात रहे। 2008-2009 में युनाइटेड नेशंस की पीस कीपिंग फ़ोर्स में डेपुटेशन के दौरान डीजी बॉर्डर एंड बाउंड्री पुलिस के सलाहकार के रूप में कोसोव पुलिस के साथ कार्य किया। 2010 में राॅयल इंस्टीटयूट ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, लन्दन में ट्रेनिंग प्राप्त की।
1999 से 2016 के बीच उन्हें चार बार राष्ट्रपति का ‘पुलिस वीरता मेडल’ प्रदान किया गया। उन्हें राष्ट्रपति के ‘सराहनीय सेवा मेडल’ (2005), ‘युनाइटेड नेशंस मेडल फ़ॉर पीस कीपिंग इन कोसोव’ (2008), ‘सिल्वर कमेंडेशन डिस्क’ (2018), ‘गोल्ड कमेंडेशन डिस्क’ (2020), ‘प्लेटिनम डिस्क’ (2021) से भी सम्मानित किया जा चुका है। युनाइटेड नेशंस में डेपुटेशन के दौरान यूरोप के कई देशों जर्मनी, कोसोव, ग्रीस और सर्बिया की यात्राएँ कीं।
वर्तमान में 2021 से पूर्वांचल एवं बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, यूपीडा में नोडल अफ़सर।
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