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AUOPANIVESHIK BHARAT KI JUNUNI MAHILAYEN
Publisher:
SETU PRAKASHAN
| Author:
RAJGOPAL SINGH VERMA
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
SETU PRAKASHAN
Author:
RAJGOPAL SINGH VERMA
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹850 ₹638
Save: 25%
In stock
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3-5 Days
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ISBN:
SKU
9788119127337
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
280
देश के हज़ारों वर्षों के गौरवशाली इतिहास के बाद भी यदि स्त्रियों के लिए तमाम क्षेत्रों में दख़ल, योगदान या रुचि लेना निषिद्ध, वर्जित और प्रतिबन्धित है, तो यह पीढ़ी दर पीढ़ी और वंशानुगत चलते षड्यन्त्रकारी पूर्वाग्रहों के अलावा और क्या है ? अपवादस्वरूप जो स्त्रियाँ पुरुषों के साथ खड़ी दिखाई देती हैं, वे इस परम्परा का इतना सूक्ष्म अंश हैं कि हम उन्हें नगण्य कह सकते हैं। यद्यपि स्त्री-पुरुष दोनों ही सृष्टि के महत्त्वपूर्ण घटक हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं, तथापि स्त्रियों को हमेशा निचले पायदान पर रखा गया। स्त्री मानव की कोमलतम भावनाओं की संरक्षक और संवर्धक है। स्त्रियों के बिना घरों का संचालन भी दूभर हो जाएगा। स्त्री के बिना इस सम्पूर्ण ग्रह पर रहने और बेहतर जीवन बिताने की कल्पना भी नहीं की जा सकती । दुखद यह भी था कि विदेशी शासकों के काल में भी भारतीय उच्चवर्ग यह समझने को तैयार नहीं था कि इस कठिन दौर में महिलाओं को साथ लेकर चलना, उन्हें राष्ट्रप्रेम और जीवन की मुख्यधारा में सम्मिलित करना समय की माँग थी। सदियों पुराने, दकियानूसी, अतार्किक परम्पराओं, टोटकों और सड़ी-गली मान्यताओं को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक कर एक नवसमाज की संरचना का समय था वह । लेकिन भारतीय समाज इसके लिए तत्पर न था।
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देश के हज़ारों वर्षों के गौरवशाली इतिहास के बाद भी यदि स्त्रियों के लिए तमाम क्षेत्रों में दख़ल, योगदान या रुचि लेना निषिद्ध, वर्जित और प्रतिबन्धित है, तो यह पीढ़ी दर पीढ़ी और वंशानुगत चलते षड्यन्त्रकारी पूर्वाग्रहों के अलावा और क्या है ? अपवादस्वरूप जो स्त्रियाँ पुरुषों के साथ खड़ी दिखाई देती हैं, वे इस परम्परा का इतना सूक्ष्म अंश हैं कि हम उन्हें नगण्य कह सकते हैं। यद्यपि स्त्री-पुरुष दोनों ही सृष्टि के महत्त्वपूर्ण घटक हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं, तथापि स्त्रियों को हमेशा निचले पायदान पर रखा गया। स्त्री मानव की कोमलतम भावनाओं की संरक्षक और संवर्धक है। स्त्रियों के बिना घरों का संचालन भी दूभर हो जाएगा। स्त्री के बिना इस सम्पूर्ण ग्रह पर रहने और बेहतर जीवन बिताने की कल्पना भी नहीं की जा सकती । दुखद यह भी था कि विदेशी शासकों के काल में भी भारतीय उच्चवर्ग यह समझने को तैयार नहीं था कि इस कठिन दौर में महिलाओं को साथ लेकर चलना, उन्हें राष्ट्रप्रेम और जीवन की मुख्यधारा में सम्मिलित करना समय की माँग थी। सदियों पुराने, दकियानूसी, अतार्किक परम्पराओं, टोटकों और सड़ी-गली मान्यताओं को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक कर एक नवसमाज की संरचना का समय था वह । लेकिन भारतीय समाज इसके लिए तत्पर न था।
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