SaleHardback
VAH HANSI BHUT KUCHH KEHATI THI
₹370 ₹333
Save: 10%
JAISE AMROOD KI KUSHBOO
₹650 ₹520
Save: 20%
UPASTHITI KA ARTH
Publisher:
SETU PRAKASHAN
| Author:
GYANRANJAN
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
SETU PRAKASHAN
Author:
GYANRANJAN
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹440 ₹396
Save: 10%
In stock
Ships within:
3-5 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789389830224
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
192
यह तय करना अक्सर कठिन रहा है कि ज्ञानरंजन की रचनाओं में कथ्य ज्यादा विलक्षण है या उसकी भाषा। दोनों इस क़दर आपस में गँथे हैं कि उन्हें अलगाना प्याज के छिलके उतारने की तरह होगा। उनकी कहानियों ने पिछली सदी के सत्तर के दशक में मध्यवर्ग के व्यवहारों का जो बेमिसाल संधान जैसी तोड़-फोड़ करती और नया विन्यास रचती भाषा में किया था, उसकी स्मृति हिंदी साहित्य के कैनवस पर अमिट है और एक प्रचलित मुहावरे में कहें, तो ज्ञान भारतीय साहित्य के निर्माता’ का दर्जा पा चुके हैं। उनके संपादन में ‘पहल’ आज तक ‘इस महाद्वीप की जरूरी किताब’ बनी हुई है। उनका यह जादू कहानी से इतर संस्मरण, साक्षात्कार, व्याख्यान और वक्तव्य जैसी विधाओं में भी वही जगमगाहट लिये हुए होता है। वे जितने अनोखे ढंग से सोचते हैं उतने ही सम्मोहक और अप्रचलित रूप में उसे दर्ज़ भी करते हैं। पिछला गद्य संग्रह ‘कबाड़खाना’ इसका अप्रतिम नमूना था और अब ‘उपस्थिति का अर्थ’ में उनके व्याख्यान, बातचीत और संस्मरण फिर से बताते हैं कि उनके ‘तापमान’ में कोई कमी नहीं आयी है, वे अपने सभी मोर्चों पर पहले जैसे सजग और तैनात हैं और साहित्य के भीतर की कारगुजारियों के साथ-साथ आज के उस फासिज़्म पर भी पैनी निगाह रखे हुए हैं जो ‘इस वक़्त जितने बर्बर रूप में है, ऐसा मध्य युग में भी नहीं था।’ राजनीतिक प्रतिबद्धता और विश्व-दृष्टि के धुंधले पड़ने के इस दौर में ज्ञानरंजन के लिए लिखना एक राजनीतिक कर्म है और वे जब विकास की अवधारणाओं, पूँजी और बाज़ारवाद और संचार क्रांति से जुड़े सांघातिक मसलों पर बात करते हैं तो हमें एक गंभीर समाजशास्त्रीय मस्तिष्क नज़र आता है। पुस्तक से यह भी ज़ाहिर होता है कि कहानी और कविता में परस्पर बढ़ा दी गयी नक़ली दूरियों के बीच वे कितने अपनापे से कविता के भीतर पैठते हैं। मुक्तिबोध और उनकी कविता ‘अँधेरे में’ और मराठी कवि श्रीपाद भालचंद्र जोशी पर उनके व्याख्यान एक बड़े कहानीकार की गहरी काव्य-दृष्टि का पता देते हैं। ज्ञानरंजन के निजी जीवन की वैचारिकी की कुछ झलक भी इस संचयन की उपलब्धि है। दरअसल ज्ञानरंजन के व्यक्तित्व, तमतमाहट भरे सवाल करने वाले नागरिक, ‘पहल’ के संपादन की अंतर्दृष्टि और अवांगार्द रचना-कर्म की आश्चर्यजनक गुरुत्व-शक्ति के बारे में जितने सवाल किये जाते हैं, उनके जवाब बड़ी हद तक इस किताब की रचनाओं में सुलभ हुए हैं।
Be the first to review “UPASTHITI KA ARTH” Cancel reply
Description
यह तय करना अक्सर कठिन रहा है कि ज्ञानरंजन की रचनाओं में कथ्य ज्यादा विलक्षण है या उसकी भाषा। दोनों इस क़दर आपस में गँथे हैं कि उन्हें अलगाना प्याज के छिलके उतारने की तरह होगा। उनकी कहानियों ने पिछली सदी के सत्तर के दशक में मध्यवर्ग के व्यवहारों का जो बेमिसाल संधान जैसी तोड़-फोड़ करती और नया विन्यास रचती भाषा में किया था, उसकी स्मृति हिंदी साहित्य के कैनवस पर अमिट है और एक प्रचलित मुहावरे में कहें, तो ज्ञान भारतीय साहित्य के निर्माता’ का दर्जा पा चुके हैं। उनके संपादन में ‘पहल’ आज तक ‘इस महाद्वीप की जरूरी किताब’ बनी हुई है। उनका यह जादू कहानी से इतर संस्मरण, साक्षात्कार, व्याख्यान और वक्तव्य जैसी विधाओं में भी वही जगमगाहट लिये हुए होता है। वे जितने अनोखे ढंग से सोचते हैं उतने ही सम्मोहक और अप्रचलित रूप में उसे दर्ज़ भी करते हैं। पिछला गद्य संग्रह ‘कबाड़खाना’ इसका अप्रतिम नमूना था और अब ‘उपस्थिति का अर्थ’ में उनके व्याख्यान, बातचीत और संस्मरण फिर से बताते हैं कि उनके ‘तापमान’ में कोई कमी नहीं आयी है, वे अपने सभी मोर्चों पर पहले जैसे सजग और तैनात हैं और साहित्य के भीतर की कारगुजारियों के साथ-साथ आज के उस फासिज़्म पर भी पैनी निगाह रखे हुए हैं जो ‘इस वक़्त जितने बर्बर रूप में है, ऐसा मध्य युग में भी नहीं था।’ राजनीतिक प्रतिबद्धता और विश्व-दृष्टि के धुंधले पड़ने के इस दौर में ज्ञानरंजन के लिए लिखना एक राजनीतिक कर्म है और वे जब विकास की अवधारणाओं, पूँजी और बाज़ारवाद और संचार क्रांति से जुड़े सांघातिक मसलों पर बात करते हैं तो हमें एक गंभीर समाजशास्त्रीय मस्तिष्क नज़र आता है। पुस्तक से यह भी ज़ाहिर होता है कि कहानी और कविता में परस्पर बढ़ा दी गयी नक़ली दूरियों के बीच वे कितने अपनापे से कविता के भीतर पैठते हैं। मुक्तिबोध और उनकी कविता ‘अँधेरे में’ और मराठी कवि श्रीपाद भालचंद्र जोशी पर उनके व्याख्यान एक बड़े कहानीकार की गहरी काव्य-दृष्टि का पता देते हैं। ज्ञानरंजन के निजी जीवन की वैचारिकी की कुछ झलक भी इस संचयन की उपलब्धि है। दरअसल ज्ञानरंजन के व्यक्तित्व, तमतमाहट भरे सवाल करने वाले नागरिक, ‘पहल’ के संपादन की अंतर्दृष्टि और अवांगार्द रचना-कर्म की आश्चर्यजनक गुरुत्व-शक्ति के बारे में जितने सवाल किये जाते हैं, उनके जवाब बड़ी हद तक इस किताब की रचनाओं में सुलभ हुए हैं।
About Author
जन्म : 21 नवंबर, 1936 को महाराष्ट्र के अकोला में। शिक्षा : बचपन और किशोरावस्था का अधिकांश समय अजमेर, दिल्ली एवं बनारस में तथा उच्च शिक्षा इलाहाबाद में संपन्न हुई। प्रकाशन : छह कहानी-संग्रह प्रकाशित। कहानियाँ भारतीय भाषाओं तथा अनेक विदेशी भाषाओं में अनूदित। अनेक देशी-विदेशी विश्वविद्यालयों के अध्ययन केंद्रों के पाठ्यक्रमों में कहानियाँ शामिल। लंदन पेंग्विस की भारतीय साहित्य की एंथुलाजी में कहानी सम्मिलित। गार्डन सी टोडरमल, चार्ल्स डेंट, अरविन्द कृष्ण मेहरोत्रा और गिरधर राठी द्वारा कहानियों के अंग्रेजी अनुवाद। अमेरिका में विलेज वायस द्वारा फिल्म निर्माण। दूरदर्शन द्वारा भी दो फिल्मों का निर्माण। सम्मान : सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान, अनिल कुमार और सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार और मध्य प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग का शिखर सम्मान। 2001-02 का राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, आकाशदीप सम्मान। संप्रति : हिंदी की प्रतिष्ठित और बहुचर्चित पत्रिका ‘पहल’ का विगत लगभग 45 वर्षों से संपादन और प्रकाशन।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “UPASTHITI KA ARTH” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.