PITA

Publisher:
SETU PRAKASHAN
| Author:
AUGAST STRINBURG
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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SETU PRAKASHAN
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AUGAST STRINBURG
Language:
Hindi
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Hardback

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पिता’ सहज पारिवारिक संबंधों की असहज स्थितियों का उद्घाटन करता है। पति-पत्नी के संबंधों पर आधारित इस नाटक के केंद्र में उनकी बेटी है। बेटी के भविष्य का निर्माण उन दोनों की चिंता और द्वंद्व का आधार है, जिसके पीछे ‘आपसी अविश्वास’ की एक लंबी श्रृंखला है। मेजर अर्जुनदेव मेहता अपनी बेटी ‘इरा’ को अपने जैसा विलक्षण उपलब्धियों से संपन्न व स्वावलंबी बनाना चाहता है, वहीं दमयंती उसे एक पेंटर बनाना चाहती है, क्योंकि किसी दूर के रिश्तेदार का ऐसा मानना है कि उसमें पेंटिंग संबंधी असाधारण प्रतिभा है । इसके अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्य भी ‘इरा’ के भविष्य का निर्धारण अपनी इच्छानुसार करना चाहते हैं। इस पूरी परिचर्चा में सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इरा से उसकी इच्छा जानने के बजाए सबने अपनी इच्छाओं को ही उस पर आरोपित करने का प्रयास किया। बेटी के भविष्य निर्माण की चिंता के पीछे जो मूल प्रश्न छिपा है, वह है-बेटी पर अधिकार का प्रश्न। बेटी पर सर्वप्रथम किसका अधिकार है, पिता का या माता का। अधिकार स्थापित करने का सबसे सरल तरीका है, दूसरे के अधिकार की वैधता पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया जाए या उसकी वैधता को ही समाप्त कर दिया जाए। इसी स्थिति में पराजित भाव से मेजर कहता है, “संतान के पिता का कोई विश्वसनीय सबूत नहीं होता। …आदमी की कोई संतान नहीं होती सिर्फ औरत की संतान होती है।” संपूर्ण नाटक व्यक्ति के अहं के टकराव को इंगित करता है। उसी अहं में अधिकार का प्रश्न भी समाहित है। स्त्री द्वारा सत्ता व अधिकार को हस्तगत करने की लालसा और वर्चस्ववादी पुरुष मानसिकता का संघर्ष किस प्रकार आपसी संबंधों में ‘अविश्वास’ को जन्म देता है, नाटक इस भाव को उभारता है। नाटक का प्रत्येक पात्र वास्तविकता से अलग खुद को एक भिन्न आवरण में समेटे रहता है। यह आवरण उसके छद्म, स्वार्थ, दुर्गुणों को दृश्यमान समाज के सामने प्रकट होने से बचाता है। नाटक का नायक मेजर अर्थात् इरा का पिता इस आवरण को भेद पाने में अक्षम रहता है और अंततः सामूहिक षड्यंत्र का शिकार होता है। यह नाटक एकसाथ कई स्तरों पर मानवीय भावनाओं को उजागर करता है। ये भावनाएँ अधिकार व स्वार्थ के चक्र से संचालित हैं जिसका सजीव चित्रण नाटक में किया गया है। नाटक अपने प्रवाह में भाषायी सहजता और मंचीय लयात्मकता लिये हुए है जो पाठक और दर्शक को अपलक बाँध लेने की क्षमता रखता है।

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पिता’ सहज पारिवारिक संबंधों की असहज स्थितियों का उद्घाटन करता है। पति-पत्नी के संबंधों पर आधारित इस नाटक के केंद्र में उनकी बेटी है। बेटी के भविष्य का निर्माण उन दोनों की चिंता और द्वंद्व का आधार है, जिसके पीछे ‘आपसी अविश्वास’ की एक लंबी श्रृंखला है। मेजर अर्जुनदेव मेहता अपनी बेटी ‘इरा’ को अपने जैसा विलक्षण उपलब्धियों से संपन्न व स्वावलंबी बनाना चाहता है, वहीं दमयंती उसे एक पेंटर बनाना चाहती है, क्योंकि किसी दूर के रिश्तेदार का ऐसा मानना है कि उसमें पेंटिंग संबंधी असाधारण प्रतिभा है । इसके अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्य भी ‘इरा’ के भविष्य का निर्धारण अपनी इच्छानुसार करना चाहते हैं। इस पूरी परिचर्चा में सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इरा से उसकी इच्छा जानने के बजाए सबने अपनी इच्छाओं को ही उस पर आरोपित करने का प्रयास किया। बेटी के भविष्य निर्माण की चिंता के पीछे जो मूल प्रश्न छिपा है, वह है-बेटी पर अधिकार का प्रश्न। बेटी पर सर्वप्रथम किसका अधिकार है, पिता का या माता का। अधिकार स्थापित करने का सबसे सरल तरीका है, दूसरे के अधिकार की वैधता पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया जाए या उसकी वैधता को ही समाप्त कर दिया जाए। इसी स्थिति में पराजित भाव से मेजर कहता है, “संतान के पिता का कोई विश्वसनीय सबूत नहीं होता। …आदमी की कोई संतान नहीं होती सिर्फ औरत की संतान होती है।” संपूर्ण नाटक व्यक्ति के अहं के टकराव को इंगित करता है। उसी अहं में अधिकार का प्रश्न भी समाहित है। स्त्री द्वारा सत्ता व अधिकार को हस्तगत करने की लालसा और वर्चस्ववादी पुरुष मानसिकता का संघर्ष किस प्रकार आपसी संबंधों में ‘अविश्वास’ को जन्म देता है, नाटक इस भाव को उभारता है। नाटक का प्रत्येक पात्र वास्तविकता से अलग खुद को एक भिन्न आवरण में समेटे रहता है। यह आवरण उसके छद्म, स्वार्थ, दुर्गुणों को दृश्यमान समाज के सामने प्रकट होने से बचाता है। नाटक का नायक मेजर अर्थात् इरा का पिता इस आवरण को भेद पाने में अक्षम रहता है और अंततः सामूहिक षड्यंत्र का शिकार होता है। यह नाटक एकसाथ कई स्तरों पर मानवीय भावनाओं को उजागर करता है। ये भावनाएँ अधिकार व स्वार्थ के चक्र से संचालित हैं जिसका सजीव चित्रण नाटक में किया गया है। नाटक अपने प्रवाह में भाषायी सहजता और मंचीय लयात्मकता लिये हुए है जो पाठक और दर्शक को अपलक बाँध लेने की क्षमता रखता है।

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