ANDHERE KI PAZEB

Publisher:
SETU PRAKASHAN
| Author:
NIDA NAWAZ
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
SETU PRAKASHAN
Author:
NIDA NAWAZ
Language:
Hindi
Format:
Hardback

480

Save: 20%

In stock

Ships within:
3-5 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788194047001 Category
Category:
Page Extent:
140

निदा नवाज़ अपना अता-पता एक कविता में इस तरह देते हैं : ‘मैं उस स्वर्ग में रहता हूँ। जहाँ घरों से निकलना ही होता है/ गायब हो जाना/ जहाँ हर ऊँचा होता सर/ तानाशाहों के आदेश पर/ काट लिया जाता है और ‘जहाँ लोग जनसंहारों की गणना और कब्रों की संख्या भूल गये हैं’। आग और आँसुओं से बने इस ‘स्वर्ग’ में महाराजा, तानाशाह, कोतवाल और आदमख़ोर हैं, बंकर, बंदूकें, बारूदी सुरंगें, धमाके, आतंकी, पैलेट गन हैं, रोटी और खून आपस में मिल गये हैं, और आत्मा का परिंदा’ रेजर वायर पर फँसा हुआ है। इस भयावह त्रासदी के बीच कवि अपनी भूमिका नहीं भूलता है : ‘मैं तुम्हारे बिखेरे रक्त के धब्बों को/ अपने आँसुओं से साफ़ करता रहूँगा’। इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है जैसे हम अपने दारुण समय की एक डॉक्यूमेंट्री देख रहे हों जिसमें कवि एक-एक दृश्य दर्ज़ कर रहा है। कविता की सच्चाई इस बात से भी जानी जाती है कि वह अनुभव के भीतर से उत्पन्न हुई हो।लंबे समय से कश्मीर घाटी के पुलवामा में निवास करते हुए निदा अपने अनुभवों के रक्त के बीच खड़े हुए अवाम की तरफ से आवाज़ उठाते हैं और समाज को क्षत-विक्षत करने वाली मनुष्य विरोधी ताकतों की शिनाख्त करते हैं। इसीलिए वे कश्मीर में सेना और उग्रवाद, दोनों को कठघरे में ले आते हैं। अनेक बार वे घटनाओं और लोगों पर सीधी, प्रत्यक्ष और रेटोरिक से भरी कविताएँ भी लिख देते हैं, भले ही कला के लिहाज से वे कुछ शर्ते पूरी न कर पाती हों। दरअसल, ज़्यादातर रचनाओं का कथ्य इतना ठोस, तीखा और मार्मिक है कि उनके शिल्प की ओर बाद में ध्यान जाता है। मुक्तिबोध ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘ब्रह्मराक्षस’ में ‘पिस गया वह/भीतरी औ बाहरी/दो कठिन पाटों बीच/ऐसी ट्रेजेडी है नीच’ कह कर निम्न-मध्यवर्गीय संवेदनशील मनुष्य की नियति को खंगाला था, निदा की कविताओं में फ़ौज और आतंकवाद दो भौतिक और भयावह कठिन पाट हैं, जिनके बीच सब कुछ फँसा हुआ है और पिस रहा है : रोज़मर्रा के कामों में लगे लोग, चिनार और अखरोट के पेड़, जाफ़रान के खेत, वितस्ता नदी और झील, नावें और परिंदे। कवि इन सभी के दर्द को देखता है, लेकिन उसके साथ ही धर्म के निर्मम हिंदूमुस्लिम धंधेबाज़ों, जन-विरोधी सियासी ताकतों और साम्राज्यवादियों की साज़िश को भी अनदेखा नहीं करता जो इन हालात के लिए जिम्मेदार हैं। कुछ समय पहले निदा नवाज़ की कश्मीर डायरी ‘सिसकियाँ लेता स्वर्ग’ प्रकाशित हुई थी जिसके जरिए हिंदी में पहली बार इतने संवेदनशील ढंग से सेना और उग्रवादियों के बीच, उनकी ‘क्रॉस फायरिंग’ में फँसे गरीब और निर्दोष कश्मीरी अवाम के भीतरी-बाहरी संकट सामने आए थे। उन मार्मिक इंदराज़ों ने पाठकों को विचलित किया था। ‘अँधेरे की पाज़ेब’ की कविताओं में उन अनुभवों की कुछ सार्थक अनुगूंजें सुनी जा सकती हैं, लेकिन वे डायरी के समाजशास्त्र से अलग नैतिक और मर्म छूने वाली अभिव्यक्तियाँ हैं। हमारे समय के एक-एक बड़े अँधेरे की पहचान करने के लिए यह कविता संग्रह बहुत हद तक मददगार होगा।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “ANDHERE KI PAZEB”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

निदा नवाज़ अपना अता-पता एक कविता में इस तरह देते हैं : ‘मैं उस स्वर्ग में रहता हूँ। जहाँ घरों से निकलना ही होता है/ गायब हो जाना/ जहाँ हर ऊँचा होता सर/ तानाशाहों के आदेश पर/ काट लिया जाता है और ‘जहाँ लोग जनसंहारों की गणना और कब्रों की संख्या भूल गये हैं’। आग और आँसुओं से बने इस ‘स्वर्ग’ में महाराजा, तानाशाह, कोतवाल और आदमख़ोर हैं, बंकर, बंदूकें, बारूदी सुरंगें, धमाके, आतंकी, पैलेट गन हैं, रोटी और खून आपस में मिल गये हैं, और आत्मा का परिंदा’ रेजर वायर पर फँसा हुआ है। इस भयावह त्रासदी के बीच कवि अपनी भूमिका नहीं भूलता है : ‘मैं तुम्हारे बिखेरे रक्त के धब्बों को/ अपने आँसुओं से साफ़ करता रहूँगा’। इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है जैसे हम अपने दारुण समय की एक डॉक्यूमेंट्री देख रहे हों जिसमें कवि एक-एक दृश्य दर्ज़ कर रहा है। कविता की सच्चाई इस बात से भी जानी जाती है कि वह अनुभव के भीतर से उत्पन्न हुई हो।लंबे समय से कश्मीर घाटी के पुलवामा में निवास करते हुए निदा अपने अनुभवों के रक्त के बीच खड़े हुए अवाम की तरफ से आवाज़ उठाते हैं और समाज को क्षत-विक्षत करने वाली मनुष्य विरोधी ताकतों की शिनाख्त करते हैं। इसीलिए वे कश्मीर में सेना और उग्रवाद, दोनों को कठघरे में ले आते हैं। अनेक बार वे घटनाओं और लोगों पर सीधी, प्रत्यक्ष और रेटोरिक से भरी कविताएँ भी लिख देते हैं, भले ही कला के लिहाज से वे कुछ शर्ते पूरी न कर पाती हों। दरअसल, ज़्यादातर रचनाओं का कथ्य इतना ठोस, तीखा और मार्मिक है कि उनके शिल्प की ओर बाद में ध्यान जाता है। मुक्तिबोध ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘ब्रह्मराक्षस’ में ‘पिस गया वह/भीतरी औ बाहरी/दो कठिन पाटों बीच/ऐसी ट्रेजेडी है नीच’ कह कर निम्न-मध्यवर्गीय संवेदनशील मनुष्य की नियति को खंगाला था, निदा की कविताओं में फ़ौज और आतंकवाद दो भौतिक और भयावह कठिन पाट हैं, जिनके बीच सब कुछ फँसा हुआ है और पिस रहा है : रोज़मर्रा के कामों में लगे लोग, चिनार और अखरोट के पेड़, जाफ़रान के खेत, वितस्ता नदी और झील, नावें और परिंदे। कवि इन सभी के दर्द को देखता है, लेकिन उसके साथ ही धर्म के निर्मम हिंदूमुस्लिम धंधेबाज़ों, जन-विरोधी सियासी ताकतों और साम्राज्यवादियों की साज़िश को भी अनदेखा नहीं करता जो इन हालात के लिए जिम्मेदार हैं। कुछ समय पहले निदा नवाज़ की कश्मीर डायरी ‘सिसकियाँ लेता स्वर्ग’ प्रकाशित हुई थी जिसके जरिए हिंदी में पहली बार इतने संवेदनशील ढंग से सेना और उग्रवादियों के बीच, उनकी ‘क्रॉस फायरिंग’ में फँसे गरीब और निर्दोष कश्मीरी अवाम के भीतरी-बाहरी संकट सामने आए थे। उन मार्मिक इंदराज़ों ने पाठकों को विचलित किया था। ‘अँधेरे की पाज़ेब’ की कविताओं में उन अनुभवों की कुछ सार्थक अनुगूंजें सुनी जा सकती हैं, लेकिन वे डायरी के समाजशास्त्र से अलग नैतिक और मर्म छूने वाली अभिव्यक्तियाँ हैं। हमारे समय के एक-एक बड़े अँधेरे की पहचान करने के लिए यह कविता संग्रह बहुत हद तक मददगार होगा।

About Author

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “ANDHERE KI PAZEB”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED