SETU VICHAR JAIPRAKASH NARAYAN

Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
SHIVDAYAL
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Setu Prakashan
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SHIVDAYAL
Language:
Hindi
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Paperback

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गांधी जी के बाद जयप्रकाश नारायण देश में सबसे बड़े सत्ता विरक्त जन नेता थे। लोकतन्त्र को मूल्य और व्यवस्था के रूप में वास्तविक बनाने, उसे मानव मुक्ति का सुलभ साधन बनाने के लिए उन्होंने अपना जीवन लगा दिया। लोकतन्त्र को लेकर जितनी भी संकल्पनाएँ हो सकती हैं, उन सब पर उन्होंने विचार किया है। गांधी जी ने 1940 में कहा था-मार्क्सवाद के विषय में जो जयप्रकाश नहीं जानते उसे भारत में दूसरा कोई नहीं जानता। यही बात लोकतन्त्र के विषय में भी कही जा सकती है-जयप्रकाश लोकतन्त्र के बारे में जितना जानते हैं और समझते हैं, जिस गहनता और व्यापकता से उन्होंने इस पर विचार किया है, वह अन्यतम और अतुलनीय है। वे कहते हैं-‘ लोकतन्त्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें अधिकतम लोग अपना अधिकतम शासन कर सकें।’ इस छोटी सी, किन्तु सारगर्भित परिभाषा में लोकतन्त्र के मूल्य, उद्देश्य और लक्ष्य एक ही साथ स्पष्ट हो जाते हैं। इसी लक्ष्य के लिए वे वैचारिक रूप से, चिन्तन के स्तर पर तथा कर्म के स्तर पर भी जीवन के अन्तिम क्षणों तक सक्रिय और समर्पित रहे। भारत के अतीत, परम्पराओं तथा वर्तमान की वास्तविकताओं के अनुरूप लोकतान्त्रिक शासन के वैकल्पिक मॉडल की खोज में लगे रहे।

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गांधी जी के बाद जयप्रकाश नारायण देश में सबसे बड़े सत्ता विरक्त जन नेता थे। लोकतन्त्र को मूल्य और व्यवस्था के रूप में वास्तविक बनाने, उसे मानव मुक्ति का सुलभ साधन बनाने के लिए उन्होंने अपना जीवन लगा दिया। लोकतन्त्र को लेकर जितनी भी संकल्पनाएँ हो सकती हैं, उन सब पर उन्होंने विचार किया है। गांधी जी ने 1940 में कहा था-मार्क्सवाद के विषय में जो जयप्रकाश नहीं जानते उसे भारत में दूसरा कोई नहीं जानता। यही बात लोकतन्त्र के विषय में भी कही जा सकती है-जयप्रकाश लोकतन्त्र के बारे में जितना जानते हैं और समझते हैं, जिस गहनता और व्यापकता से उन्होंने इस पर विचार किया है, वह अन्यतम और अतुलनीय है। वे कहते हैं-‘ लोकतन्त्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें अधिकतम लोग अपना अधिकतम शासन कर सकें।’ इस छोटी सी, किन्तु सारगर्भित परिभाषा में लोकतन्त्र के मूल्य, उद्देश्य और लक्ष्य एक ही साथ स्पष्ट हो जाते हैं। इसी लक्ष्य के लिए वे वैचारिक रूप से, चिन्तन के स्तर पर तथा कर्म के स्तर पर भी जीवन के अन्तिम क्षणों तक सक्रिय और समर्पित रहे। भारत के अतीत, परम्पराओं तथा वर्तमान की वास्तविकताओं के अनुरूप लोकतान्त्रिक शासन के वैकल्पिक मॉडल की खोज में लगे रहे।

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