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BACHPAN AUR BALSAHITYA KE SAROKAR
Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
OMPRAKASH KASHYAP
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Setu Prakashan
Author:
OMPRAKASH KASHYAP
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹525 ₹420
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ISBN:
SKU
9788119899852
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
560
बालक और उसके माता-पिता एक ही परिवेश में साथ-साथ रहते हैं। लेकिन परिवेश को देखने की दोनों की दृष्टि अलग-अलग होती है। बालक के लिए उसकी जिज्ञासा और कौतूहल महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसलिए वह परिवेश के प्रति बोधात्मक दृष्टि रखता है। सामने आयी हर चीज को कुरेद-कुरेदकर परखना चाहता है। उसकी उत्सुकता एक विद्यार्थी की उत्सुकता होती है। माता-पिता सहित परिवार के अन्य सदस्यों की दृष्टि बाह्य जगत् को उपयोगितावादी नजरिये से देखती है। वे वस्तुओं को जानने से ज्यादा उन्हें उपयोग के लिए अपने साथ रखते हैं। आसान शब्दों में कहें तो वस्तु जगत् के प्रति बालक और बड़ों की दृष्टि में दार्शनिक और व्यापारी जैसा अन्तर होता है। लोकप्रिय संस्कृति में दार्शनिक घाटे में रहता है। बाजी प्रायः व्यापारी के हाथ रहती है। उसका नुकसान ज्ञानार्जन के क्षेत्र में मौलिकता के अभाव के रूप में सामने आता है। धीरे-धीरे बालक माता-पिता के रंग में रंगने लगता है। इसे हम बालक का समझदार होना मान लेते हैं। दुनियादार होना ही उनकी दृष्टि में समझदार होना है।
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Description
बालक और उसके माता-पिता एक ही परिवेश में साथ-साथ रहते हैं। लेकिन परिवेश को देखने की दोनों की दृष्टि अलग-अलग होती है। बालक के लिए उसकी जिज्ञासा और कौतूहल महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसलिए वह परिवेश के प्रति बोधात्मक दृष्टि रखता है। सामने आयी हर चीज को कुरेद-कुरेदकर परखना चाहता है। उसकी उत्सुकता एक विद्यार्थी की उत्सुकता होती है। माता-पिता सहित परिवार के अन्य सदस्यों की दृष्टि बाह्य जगत् को उपयोगितावादी नजरिये से देखती है। वे वस्तुओं को जानने से ज्यादा उन्हें उपयोग के लिए अपने साथ रखते हैं। आसान शब्दों में कहें तो वस्तु जगत् के प्रति बालक और बड़ों की दृष्टि में दार्शनिक और व्यापारी जैसा अन्तर होता है। लोकप्रिय संस्कृति में दार्शनिक घाटे में रहता है। बाजी प्रायः व्यापारी के हाथ रहती है। उसका नुकसान ज्ञानार्जन के क्षेत्र में मौलिकता के अभाव के रूप में सामने आता है। धीरे-धीरे बालक माता-पिता के रंग में रंगने लगता है। इसे हम बालक का समझदार होना मान लेते हैं। दुनियादार होना ही उनकी दृष्टि में समझदार होना है।
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