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HINDI KAVITA AUR NAKSALVAD
Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
POONAM SINGH
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Setu Prakashan
Author:
POONAM SINGH
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹550 ₹440
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ISBN:
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9789380441832
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
320
नक्सलबाड़ी आन्दोलन ने भारतीय राजनीति में जितनी उद्दाम लहर पैदा की, उससे कहीं अधिक कला, साहित्य, संस्कृति को इसने प्रभावित किया। यह एक नया मुक्ति-संग्राम था जो स्वाधीन भारत के ठीक बीस वर्ष बाद एक छोटे से स्थान से निकलकर देश के विविध हिस्सों में जा गूँजा और फैला। नक्सलबाड़ी आन्दोलन ने एक नये देश का स्वप्न देखा, उसके लिए संघर्ष किया। संस्कृति की परिभाषा बदली। साहित्य ने अपनी दिशा बदली और कविता में क्रान्ति के स्वर गूँजने लगे । इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक के आरम्भ में भी अब तक अस्मिता विमर्श जारी है। विश्वविद्यालयों में स्त्री-अध्ययन के विभाग खोले जा रहे हैं। स्त्री-विमर्श के इस दौर में एक लेखिका का हिन्दी कविता और नक्सलवाद का अध्ययन-चिन्तन, विवेचन- विश्लेषण अधिक सार्थक और मूल्यवान है क्योंकि अब वर्गीय दृष्टि के तहत सोचने- विचारने वाले बहुत कम हैं। पूनम सिंह का यह अध्ययन-चिन्तन एक प्रकाश-रश्मि की तरह भी है। कविता के जरिये इस आन्दोलन को देखने-समझने की आज अधिक जरूरत इसलिए भी है कि छिटपुट ही सही देश के विभिन्न हिस्सों में सामाजिक-नागरिक आन्दोलन जारी और जीवित हैं, जहाँ हम आन्दोलनधर्मी कविताओं को लहराते और गूँजते हुए देखते हैं।
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Description
नक्सलबाड़ी आन्दोलन ने भारतीय राजनीति में जितनी उद्दाम लहर पैदा की, उससे कहीं अधिक कला, साहित्य, संस्कृति को इसने प्रभावित किया। यह एक नया मुक्ति-संग्राम था जो स्वाधीन भारत के ठीक बीस वर्ष बाद एक छोटे से स्थान से निकलकर देश के विविध हिस्सों में जा गूँजा और फैला। नक्सलबाड़ी आन्दोलन ने एक नये देश का स्वप्न देखा, उसके लिए संघर्ष किया। संस्कृति की परिभाषा बदली। साहित्य ने अपनी दिशा बदली और कविता में क्रान्ति के स्वर गूँजने लगे । इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक के आरम्भ में भी अब तक अस्मिता विमर्श जारी है। विश्वविद्यालयों में स्त्री-अध्ययन के विभाग खोले जा रहे हैं। स्त्री-विमर्श के इस दौर में एक लेखिका का हिन्दी कविता और नक्सलवाद का अध्ययन-चिन्तन, विवेचन- विश्लेषण अधिक सार्थक और मूल्यवान है क्योंकि अब वर्गीय दृष्टि के तहत सोचने- विचारने वाले बहुत कम हैं। पूनम सिंह का यह अध्ययन-चिन्तन एक प्रकाश-रश्मि की तरह भी है। कविता के जरिये इस आन्दोलन को देखने-समझने की आज अधिक जरूरत इसलिए भी है कि छिटपुट ही सही देश के विभिन्न हिस्सों में सामाजिक-नागरिक आन्दोलन जारी और जीवित हैं, जहाँ हम आन्दोलनधर्मी कविताओं को लहराते और गूँजते हुए देखते हैं।
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