Ek Farishta Aisa Dekha | “एक फरिश्ता ऐसा देखा”
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नव जन्मना जिज्ञासु है। बाल्यावस्थामा से लेकर वृद्धावस्था तक जिज्ञासा का प्रकार एवं उसकी तीव्रता भिन्न-भिन्न हो सकती है। यह जिज्ञासा लौकिक एवं पारलौकिक दोनों ही विषयों को लेकर होती है। हम प्रायः लौकिक विषयों की जिज्ञासा का समाधान भौतिक जगत् में एवं पारलौकिक विषयों की जिज्ञासा का समाधान जगत् के पार ढूँढ़ते हैं। जब हम आत्मा, परमात्मा, हमारे अस्तित्व आदि प्रश्नों की तात्त्विक मीमांसा करते हैं, तब हमें ज्ञात होता है कि हमारा अस्तित्व इस संसार में इसलिए है, क्योंकि हमारे कोई माता- पिता हैं । जब हम आध्यात्मिक विषयों की जिज्ञासा का समाधान ढूँढ़ते हैं, तब पाते हैं कि तर्क हमारी मदद नहीं करते ।
इस पुस्तक में लिपिबद्ध विचार अधिकांश माता-पिता एवं बच्चों का मार्गदर्शन करेंगे, क्योंकि माता-पिता एवं बच्चों में किस तरह से संवादशीलता रहनी चाहिए, यही इस पुस्तक में दरशाया गया है।
पारिवारिक संबंधों, संस्कारों और पारस्परिक प्रेम, स्नेह, साहचर्य के महत्त्व को रेखांकित करती अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
नव जन्मना जिज्ञासु है। बाल्यावस्थामा से लेकर वृद्धावस्था तक जिज्ञासा का प्रकार एवं उसकी तीव्रता भिन्न-भिन्न हो सकती है। यह जिज्ञासा लौकिक एवं पारलौकिक दोनों ही विषयों को लेकर होती है। हम प्रायः लौकिक विषयों की जिज्ञासा का समाधान भौतिक जगत् में एवं पारलौकिक विषयों की जिज्ञासा का समाधान जगत् के पार ढूँढ़ते हैं। जब हम आत्मा, परमात्मा, हमारे अस्तित्व आदि प्रश्नों की तात्त्विक मीमांसा करते हैं, तब हमें ज्ञात होता है कि हमारा अस्तित्व इस संसार में इसलिए है, क्योंकि हमारे कोई माता- पिता हैं । जब हम आध्यात्मिक विषयों की जिज्ञासा का समाधान ढूँढ़ते हैं, तब पाते हैं कि तर्क हमारी मदद नहीं करते ।
इस पुस्तक में लिपिबद्ध विचार अधिकांश माता-पिता एवं बच्चों का मार्गदर्शन करेंगे, क्योंकि माता-पिता एवं बच्चों में किस तरह से संवादशीलता रहनी चाहिए, यही इस पुस्तक में दरशाया गया है।
पारिवारिक संबंधों, संस्कारों और पारस्परिक प्रेम, स्नेह, साहचर्य के महत्त्व को रेखांकित करती अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
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