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Putli Ne Akash Churaya
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पुतली ने आकाश चुराया’ प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा की एक कविता से उद्धृत पंक्ति है जिसका आशय है कि हर युग में स्त्रियों का एक अपना संसार, अस्तित्व और आकाश होता है। ऐसा अपने ‘आकाश’ वाली अनेक सशक्त स्त्री पात्र हमें भारत के मध्यकालीन युग में भी मिलती हैं। इस पुस्तक में उस मध्यकालीन युग की ऐसी आठ कथा-आख्यान परंपरा की रचनाओं का हिन्दी कथा रूपांतर प्रस्तुत है, जिनमें मुख्य पात्र एक स्त्री है। ये आठ स्त्रियाँ अपनी प्रकृति में एकरूप और एकरैखिक नहीं हैं – इनकी अपनी अलग आकांक्षाएँ, इच्छाएँ, संकल्प और कार्य-व्यवहार हैं और वे खुलकर अपने सुख-दुःख, इच्छाओं और भावनाओं को व्यक्त करती हैं। इतनी भिन्नता होने के बावजूद इन सब में एक समानता है कि प्रत्येक कथा में उनकी भूमिका केन्द्रीय और निर्णायक है।
पुतली ने आकाश चुराया में संकलित कथा-रूपांतर आठवीं से सत्रहवीं सदी के बीच रचित अलग-अलग भारतीय भाषाओं के दुर्लभ आख्यानों में से है। यह रूपांतर उस समय के समाज में स्त्री-संसार का एक जीवंत चित्रण भी प्रस्तुत करता है। इसे पढ़ते हुए पाठक इन स्त्री पात्रों पर मुग्ध भी होता है और उनसे प्रेरित भी।
पुस्तक के लेखक माधव हाड़ा माध्यकालीन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् हैं। उन्होंने मध्यकालीन साहित्य को समकालीन साहित्यिक विमर्श के केन्द्र में लाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उनके मीरां, पद्मिनी और मध्यकालीन संत-भक्तों संबंधी कार्य निरंतर चर्चा में रहे हैं। उनकी इस संबंध में पुस्तकें और शताधिक लेख प्रकाशित हैं।
पुतली ने आकाश चुराया’ प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा की एक कविता से उद्धृत पंक्ति है जिसका आशय है कि हर युग में स्त्रियों का एक अपना संसार, अस्तित्व और आकाश होता है। ऐसा अपने ‘आकाश’ वाली अनेक सशक्त स्त्री पात्र हमें भारत के मध्यकालीन युग में भी मिलती हैं। इस पुस्तक में उस मध्यकालीन युग की ऐसी आठ कथा-आख्यान परंपरा की रचनाओं का हिन्दी कथा रूपांतर प्रस्तुत है, जिनमें मुख्य पात्र एक स्त्री है। ये आठ स्त्रियाँ अपनी प्रकृति में एकरूप और एकरैखिक नहीं हैं – इनकी अपनी अलग आकांक्षाएँ, इच्छाएँ, संकल्प और कार्य-व्यवहार हैं और वे खुलकर अपने सुख-दुःख, इच्छाओं और भावनाओं को व्यक्त करती हैं। इतनी भिन्नता होने के बावजूद इन सब में एक समानता है कि प्रत्येक कथा में उनकी भूमिका केन्द्रीय और निर्णायक है।
पुतली ने आकाश चुराया में संकलित कथा-रूपांतर आठवीं से सत्रहवीं सदी के बीच रचित अलग-अलग भारतीय भाषाओं के दुर्लभ आख्यानों में से है। यह रूपांतर उस समय के समाज में स्त्री-संसार का एक जीवंत चित्रण भी प्रस्तुत करता है। इसे पढ़ते हुए पाठक इन स्त्री पात्रों पर मुग्ध भी होता है और उनसे प्रेरित भी।
पुस्तक के लेखक माधव हाड़ा माध्यकालीन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् हैं। उन्होंने मध्यकालीन साहित्य को समकालीन साहित्यिक विमर्श के केन्द्र में लाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उनके मीरां, पद्मिनी और मध्यकालीन संत-भक्तों संबंधी कार्य निरंतर चर्चा में रहे हैं। उनकी इस संबंध में पुस्तकें और शताधिक लेख प्रकाशित हैं।