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Nobel Puraskrit Mahilayen
Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
| Author:
Smt. Asha Rani Vohra
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Author:
Smt. Asha Rani Vohra
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9789383110360
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
188
अल्फ्रेड नोबेल द्वारा सन् 1901 में स्थापित नोबेल पुरस्कार विश्व का सबसे अधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह अब तक संसार के लगभग छह सौ पचास प्रतिभावान् व्यक्तियों को दिया जा चुका है; जिनमें से सन् 2003 के अंत तक महिलाओं की संख्या उनतीस थी। नोबेल पुरस्कार लिंग; जाति; देश; वर्ग आदि के भेदभाव के बिना दुनिया के किसी भी नागरिक को दिया जा सकता है।
स्त्री परिवार की धुरी है। केंद्र में होने से परिवार उसकी प्राथमिकता है। पुरुषों की तरह वह सबकुछ छोड़-छाड़कर दिन-रात अनुसंधान में; लेखन में या शोध-कार्य में लगी नहीं रह सकती। घर-बच्चों की जिम्मेदारी के बाद कैरियर या अन्य क्षेत्रों के प्रति समर्पण उसके लिए द्वितीय स्थान पर है। इसीलिए कई बार प्रखर प्रतिभाएँ भी अपने विशेष क्षेत्रों में सामने न आकर एक अंतराल के बाद घर की चारदीवारी में ही दम तोड़ देती हैं। न तो सब मदर टेरेसा की तरह तपस्विनी हो सकती हैं; न म्याँमार की आंग सान सू की की तरह आजीवन क्रांति को समर्पित; न ही विज्ञान में नई खोजों में बड़ी उपलब्धियाँ प्राप्त करनेवाली बारबरा मैकलिनटाक; जरट्रड बी. इलियन; रीटा लेवी मांटेलिसिनी की तरह वैज्ञानिक अनुसंधान के अपने ध्येय की खातिर विवाह न करनेवाली। फिर भी वर्षों लंबी साधना या अनवरत संघर्ष के बाद नोबेल पुरस्कार जैसी बड़ी उपलब्धि प्राप्त करनेवाली इस अल्प संख्या पर भी हमें यों गर्व होना चाहिए कि अनेकानेक बाधाओं के बीच काम करते हुए ही कोई महिला इस उच्चतम शिखर तक पहुँच पाती है।
हिंदी में भी अब ज्ञान-विज्ञान के साहित्य की ओर पाठकों की रुचि बढ़ी है। फिर अपने-अपने ज्ञान-क्षेत्रों में सफलता के उच्चतम शिखरों को छूनेवाली नोबेल पुरस्कार विजेता महिलाओं की प्रतिभा; लगन व अनवरत साधना से प्राप्त उपलब्धियों को जानने; आँकने और उनसे प्रेरणा पाने की अभिलाषा किसे न होगी! विशेष रूप से इन क्षेत्रों में रुचि लेनेवाली महत्त्वाकांक्षी युवतियों एवं उभरती प्रतिभाओं के लिए यह पुस्तक अनेक दृष्टियों से उपयोगी सिद्ध होगी; ऐसा हमारा विश्वास है।
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Description
अल्फ्रेड नोबेल द्वारा सन् 1901 में स्थापित नोबेल पुरस्कार विश्व का सबसे अधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह अब तक संसार के लगभग छह सौ पचास प्रतिभावान् व्यक्तियों को दिया जा चुका है; जिनमें से सन् 2003 के अंत तक महिलाओं की संख्या उनतीस थी। नोबेल पुरस्कार लिंग; जाति; देश; वर्ग आदि के भेदभाव के बिना दुनिया के किसी भी नागरिक को दिया जा सकता है।
स्त्री परिवार की धुरी है। केंद्र में होने से परिवार उसकी प्राथमिकता है। पुरुषों की तरह वह सबकुछ छोड़-छाड़कर दिन-रात अनुसंधान में; लेखन में या शोध-कार्य में लगी नहीं रह सकती। घर-बच्चों की जिम्मेदारी के बाद कैरियर या अन्य क्षेत्रों के प्रति समर्पण उसके लिए द्वितीय स्थान पर है। इसीलिए कई बार प्रखर प्रतिभाएँ भी अपने विशेष क्षेत्रों में सामने न आकर एक अंतराल के बाद घर की चारदीवारी में ही दम तोड़ देती हैं। न तो सब मदर टेरेसा की तरह तपस्विनी हो सकती हैं; न म्याँमार की आंग सान सू की की तरह आजीवन क्रांति को समर्पित; न ही विज्ञान में नई खोजों में बड़ी उपलब्धियाँ प्राप्त करनेवाली बारबरा मैकलिनटाक; जरट्रड बी. इलियन; रीटा लेवी मांटेलिसिनी की तरह वैज्ञानिक अनुसंधान के अपने ध्येय की खातिर विवाह न करनेवाली। फिर भी वर्षों लंबी साधना या अनवरत संघर्ष के बाद नोबेल पुरस्कार जैसी बड़ी उपलब्धि प्राप्त करनेवाली इस अल्प संख्या पर भी हमें यों गर्व होना चाहिए कि अनेकानेक बाधाओं के बीच काम करते हुए ही कोई महिला इस उच्चतम शिखर तक पहुँच पाती है।
हिंदी में भी अब ज्ञान-विज्ञान के साहित्य की ओर पाठकों की रुचि बढ़ी है। फिर अपने-अपने ज्ञान-क्षेत्रों में सफलता के उच्चतम शिखरों को छूनेवाली नोबेल पुरस्कार विजेता महिलाओं की प्रतिभा; लगन व अनवरत साधना से प्राप्त उपलब्धियों को जानने; आँकने और उनसे प्रेरणा पाने की अभिलाषा किसे न होगी! विशेष रूप से इन क्षेत्रों में रुचि लेनेवाली महत्त्वाकांक्षी युवतियों एवं उभरती प्रतिभाओं के लिए यह पुस्तक अनेक दृष्टियों से उपयोगी सिद्ध होगी; ऐसा हमारा विश्वास है।
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