Inquilab

Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
| Author:
Mrinalini Joshi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Author:
Mrinalini Joshi
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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544

फर्न बड़ी मुश्‍क‌िल से उठा और आगे बढ़ने लगा। तभी भगतसिंहने पीछे मुड़कर उसपर गोली दाग दी। फर्न गोली से नहीं; डर के मारे जमीन पर गिर पड़ा । साहब को ‌देखकर उसके साथी सिपाही वहीं-के-वहीं खड़े रह गए ।
दूसरी गोली दागने के इरादे से भगतसिंह पीछे मुड़़ने ही वाला या कि आजाद ने हुक्‍म दिया-‘ ‘ चलो!”
सुनते ही राजगुरु और भगतस‌िंह दोनों भागकर कॉजेज के अहाते में घुस गए ।
लेकिन फिर भी एक कांस्टेबल उनका पीछा कर रहा था । उसका नाम था चंदनसिह । साहब की मौत से वह राजभक्‍त नौकर भड़क उठा था । गोलियों की बौछार करते हुए जान की बाजी लगाकर वह पीछा कर रहा था ।
” खबरदार! पीछे हटो । ” आजाद ने अपना माउजर पिस्तौल उसपर राइफल की तरह तानकर उसे धमकाया ।
लेकिन वह न रुका; न पीछे हटा ।
भगतसिंह सबसे आगे था और उसके पीछे था राजगुरु-तथा उसके पीछे चंदनसिंह था । लेकिन दौड़कर राजगुरु को पीछे छोड़कर चंदनसिंह आगे बढ़ गया । पता नहीं उसने राजगुरु को क्यों नहीं दबोचा । लेकिन उसका पूरा ध्यान भगतसिंह पर केंद्रित हुआ था ।
बड़ी अजीब तरह की दौड़ थी। आगे भगतसिंह। उसे दबोचने की कोशिश करनेवाला चंदनसिंह और चंदनसिंह को दबोचकर भगतसिंह को बचाने को तत्पर राजगुरु । साक्षात् जीवन-मृत्यु एक-दूसरे का पीछा कर रहे थे । किसकी जीत होगी? किसकी हार होगी?
चंदनस‌िंह काफी लंबा और मजबूत था । जान की बाजी लगाकर वह पीछा कर रहा था । आखिर वह सफल होने जा रहा था । भगतसिंह के बिलकुल पास पहुंच गया था ।
अब उसे दबोचने ही वाला था कि ‘ साँय- साँय ‘ करती एक गोली आकर सीधे उसके पेट में घुस गई। चीखकर धड़ाम से वह जमीन पर गिर पड़ा।
भगतसिंह समझ चुका था कि यह गोली आजादजी की पिस्तौल से चली है; क्योंकि इस प्रकार तीन लोग जब इस तरह से तेज दौड़ रहे हों तब ठीक अपने दुश्‍‍मन का ही निशाना साधना सिर्फ उन्हींके वश की बात है।
-इसी पुस्तक से

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Description

फर्न बड़ी मुश्‍क‌िल से उठा और आगे बढ़ने लगा। तभी भगतसिंहने पीछे मुड़कर उसपर गोली दाग दी। फर्न गोली से नहीं; डर के मारे जमीन पर गिर पड़ा । साहब को ‌देखकर उसके साथी सिपाही वहीं-के-वहीं खड़े रह गए ।
दूसरी गोली दागने के इरादे से भगतसिंह पीछे मुड़़ने ही वाला या कि आजाद ने हुक्‍म दिया-‘ ‘ चलो!”
सुनते ही राजगुरु और भगतस‌िंह दोनों भागकर कॉजेज के अहाते में घुस गए ।
लेकिन फिर भी एक कांस्टेबल उनका पीछा कर रहा था । उसका नाम था चंदनसिह । साहब की मौत से वह राजभक्‍त नौकर भड़क उठा था । गोलियों की बौछार करते हुए जान की बाजी लगाकर वह पीछा कर रहा था ।
” खबरदार! पीछे हटो । ” आजाद ने अपना माउजर पिस्तौल उसपर राइफल की तरह तानकर उसे धमकाया ।
लेकिन वह न रुका; न पीछे हटा ।
भगतसिंह सबसे आगे था और उसके पीछे था राजगुरु-तथा उसके पीछे चंदनसिंह था । लेकिन दौड़कर राजगुरु को पीछे छोड़कर चंदनसिंह आगे बढ़ गया । पता नहीं उसने राजगुरु को क्यों नहीं दबोचा । लेकिन उसका पूरा ध्यान भगतसिंह पर केंद्रित हुआ था ।
बड़ी अजीब तरह की दौड़ थी। आगे भगतसिंह। उसे दबोचने की कोशिश करनेवाला चंदनसिंह और चंदनसिंह को दबोचकर भगतसिंह को बचाने को तत्पर राजगुरु । साक्षात् जीवन-मृत्यु एक-दूसरे का पीछा कर रहे थे । किसकी जीत होगी? किसकी हार होगी?
चंदनस‌िंह काफी लंबा और मजबूत था । जान की बाजी लगाकर वह पीछा कर रहा था । आखिर वह सफल होने जा रहा था । भगतसिंह के बिलकुल पास पहुंच गया था ।
अब उसे दबोचने ही वाला था कि ‘ साँय- साँय ‘ करती एक गोली आकर सीधे उसके पेट में घुस गई। चीखकर धड़ाम से वह जमीन पर गिर पड़ा।
भगतसिंह समझ चुका था कि यह गोली आजादजी की पिस्तौल से चली है; क्योंकि इस प्रकार तीन लोग जब इस तरह से तेज दौड़ रहे हों तब ठीक अपने दुश्‍‍मन का ही निशाना साधना सिर्फ उन्हींके वश की बात है।
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