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Sarhad Ke Aar-Paar Ki Shayari – Azhar Farag Aur Ahmad Kamal Parvazi
Publisher:
Rajpal and Sons
| Author:
Chaturvedi, Tufail
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajpal and Sons
Author:
Chaturvedi, Tufail
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹265 ₹239
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ISBN:
SKU
9789386534958
Category Uncategorized
Category: Uncategorized
Page Extent:
192
एक साथ पहली बार एक किताब में एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर की ग़ज़लें
इस किताब में जो एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर एक साथ शामिल किए गए हैं उनकी ख़ासियत है कि वो अपनी ग़ज़लों में बिलकुल अलग क़िस्म और अनछुए मुद्दों को उठाते हैं।
पाकिस्तान के शायर अज़हर फ़राग़ की शायरी की विशेषता उनके ताज़ा और अछूते विषय हैं। वे अपनी ग़ज़लों में कभी ख़्वाब देखते हैं, कभी ख़्वाबों को जीते हैं तो कभी ख़्वाबों से निकलकर हक़ीक़त का सामना करते हुए चराग़ लेकर हवा से मुक़ाबला करने निकल पड़ते हैं। वो अपने अन्दर और बाहर दोनों जगह बराबर नज़र जमाये हुए रहते हैं और ख़ुदकलामी नहीं वक़्त से रू-ब-रू होकर कलाम करते हैं। लेकिन कहीं भी ग़ज़ल की रूह को वो ठेस नहीं पहुँचाते और अपनी बात सलीक़े से कहने में कामयाब हो जाते हैं।
हिन्दुस्तान के शायर, अहमद कमाल परवाज़ी, की शायरी जैसे ज़िन्दगी की मुश्किलों से होड़ लेती हुई, तीखे तन्ज़ कसती हुई सबको होशियार, ख़बरदार करती हुई आगे बढ़ती है। परवाज़ी रवायतों को तोड़ते और अपनी ग़ज़ल में ऐसे-ऐसे विषय पिरोते हैं जो शायद पहली बार उर्दू ग़ज़ल का हिस्सा बने हैं जैसे – रबी और खरीफ़ की फ़सल, बच्चों के स्कूल की फ़ीस, सियासत के दाँव-पेच, गाँव की ज़िन्दगी… और इन सब पर ग़ज़ल में गहरा चिंतन।
इन दोनों शायरों की ग़ज़लें अभी तक उर्दू में ही हैं
अब पहली बार इनकी ग़ज़लें देवनागरी में
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Description
एक साथ पहली बार एक किताब में एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर की ग़ज़लें
इस किताब में जो एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर एक साथ शामिल किए गए हैं उनकी ख़ासियत है कि वो अपनी ग़ज़लों में बिलकुल अलग क़िस्म और अनछुए मुद्दों को उठाते हैं।
पाकिस्तान के शायर अज़हर फ़राग़ की शायरी की विशेषता उनके ताज़ा और अछूते विषय हैं। वे अपनी ग़ज़लों में कभी ख़्वाब देखते हैं, कभी ख़्वाबों को जीते हैं तो कभी ख़्वाबों से निकलकर हक़ीक़त का सामना करते हुए चराग़ लेकर हवा से मुक़ाबला करने निकल पड़ते हैं। वो अपने अन्दर और बाहर दोनों जगह बराबर नज़र जमाये हुए रहते हैं और ख़ुदकलामी नहीं वक़्त से रू-ब-रू होकर कलाम करते हैं। लेकिन कहीं भी ग़ज़ल की रूह को वो ठेस नहीं पहुँचाते और अपनी बात सलीक़े से कहने में कामयाब हो जाते हैं।
हिन्दुस्तान के शायर, अहमद कमाल परवाज़ी, की शायरी जैसे ज़िन्दगी की मुश्किलों से होड़ लेती हुई, तीखे तन्ज़ कसती हुई सबको होशियार, ख़बरदार करती हुई आगे बढ़ती है। परवाज़ी रवायतों को तोड़ते और अपनी ग़ज़ल में ऐसे-ऐसे विषय पिरोते हैं जो शायद पहली बार उर्दू ग़ज़ल का हिस्सा बने हैं जैसे – रबी और खरीफ़ की फ़सल, बच्चों के स्कूल की फ़ीस, सियासत के दाँव-पेच, गाँव की ज़िन्दगी… और इन सब पर ग़ज़ल में गहरा चिंतन।
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