SaleHardback
Shahryar Suno…
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
चयन व सम्पादन गुलज़ार, मोहम्मद हादी रहबर द्वारा लिप्यंतरण
| Language:
Hindi | Urdu
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
चयन व सम्पादन गुलज़ार, मोहम्मद हादी रहबर द्वारा लिप्यंतरण
Language:
Hindi | Urdu
Format:
Hardback
₹595 ₹417
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ISBN:
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9789357757591
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
192
शहरयार सुनो…
हिन्दुस्तानी अदब में शहरयार वो नाम है जिसने छठे दशक की शुरुआत में शायरी के साथ उर्दू अदब की दुनिया में अपना सफ़र शुरू किया। शहरयार मानवीय मूल्यों को सबसे ऊपर मानते हैं। वे दो टूक लहजे में कहते हैं कि हिन्दी और उर्दू अदब के मक़सद अलग नहीं हो सकते। शहरयार को अपनी सभ्यता, इतिहास, भाषा और धर्म से बेहद लगाव है, लेकिन इनका धर्म संस्कृति को जानने का एक रास्ता है और संस्कृति व समाज की आत्मा को पहचाने बिना शायरी नहीं की जा सकती।
शहरयार की शायरी में एक अन्दरूनी सन्नाटा है। फ़ैज़ की साफ़बयानी और फ़िराक़ की गहरी तनक़ीदी और तहज़ीबी कोशिश को उनसे कतरा करके भी शहरयार ने उन्हीं की तरह, लेकिन उनसे अलग वो इशारे पैदा किये हैं जो कविता के इशारे होते हुए भी इनसान के बेचैन इशारे बन जाते हैं- ‘ग़मे जाना’ के साथ-साथ ‘ग़मे दौराँ’ के इशारे। शहरयार की ख़ूबी यही है कि उनकी रचना का चेहरा निहायत व्यक्तिगत है, लेकिन उसमें झाँकिए तो अपना और फिर धीरे-धीरे वक़्त का चेहरा झाँकने लगता है। शहरयार ने काल्पनिक सृजन-संसार की बजाय दुनिया की असलियत को ग़ज़लों के लिए चुना है। उनकी शायरी में आज के शहरी जीवन और औद्योगिक विकास के बीच गिरते इनसानी मूल्यों को लेकर बेहद चिन्ता है। शहरयार ग़ज़ल और नज़्म के आज बेहद लोकप्रिय और बुलन्दपाया शायर हैं। शहरयार ने तरह-तरह और नये से नये अन्दाज़ में अपनी बात कही है। शायर की इसी छटपटाहट के तहत उनकी शायरी ने जो करवटें बदली हैं, उसमें पुरानी सलवटें नहीं हैं।
– कमलेश्वर
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Description
शहरयार सुनो…
हिन्दुस्तानी अदब में शहरयार वो नाम है जिसने छठे दशक की शुरुआत में शायरी के साथ उर्दू अदब की दुनिया में अपना सफ़र शुरू किया। शहरयार मानवीय मूल्यों को सबसे ऊपर मानते हैं। वे दो टूक लहजे में कहते हैं कि हिन्दी और उर्दू अदब के मक़सद अलग नहीं हो सकते। शहरयार को अपनी सभ्यता, इतिहास, भाषा और धर्म से बेहद लगाव है, लेकिन इनका धर्म संस्कृति को जानने का एक रास्ता है और संस्कृति व समाज की आत्मा को पहचाने बिना शायरी नहीं की जा सकती।
शहरयार की शायरी में एक अन्दरूनी सन्नाटा है। फ़ैज़ की साफ़बयानी और फ़िराक़ की गहरी तनक़ीदी और तहज़ीबी कोशिश को उनसे कतरा करके भी शहरयार ने उन्हीं की तरह, लेकिन उनसे अलग वो इशारे पैदा किये हैं जो कविता के इशारे होते हुए भी इनसान के बेचैन इशारे बन जाते हैं- ‘ग़मे जाना’ के साथ-साथ ‘ग़मे दौराँ’ के इशारे। शहरयार की ख़ूबी यही है कि उनकी रचना का चेहरा निहायत व्यक्तिगत है, लेकिन उसमें झाँकिए तो अपना और फिर धीरे-धीरे वक़्त का चेहरा झाँकने लगता है। शहरयार ने काल्पनिक सृजन-संसार की बजाय दुनिया की असलियत को ग़ज़लों के लिए चुना है। उनकी शायरी में आज के शहरी जीवन और औद्योगिक विकास के बीच गिरते इनसानी मूल्यों को लेकर बेहद चिन्ता है। शहरयार ग़ज़ल और नज़्म के आज बेहद लोकप्रिय और बुलन्दपाया शायर हैं। शहरयार ने तरह-तरह और नये से नये अन्दाज़ में अपनी बात कही है। शायर की इसी छटपटाहट के तहत उनकी शायरी ने जो करवटें बदली हैं, उसमें पुरानी सलवटें नहीं हैं।
– कमलेश्वर
About Author
शहरयार -
16 जून, 1936 को आँवला, जिला बरेली (उ.प्र.) में जनमे 'शहरयार' का मूल नाम अख्लाक मोहम्मद ख़ान है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में प्रोफेसर तथा अध्यक्ष रहे। 1996 में सेवानिवृत्त। देश और विदेश की विभिन्न संस्थाओं और समितियों के अनेक पदों पर सुशोभित रहे हैं।
उर्दू में प्रकाशित प्रमुख काव्य-संग्रह : 'इस्म-ए- आज़म' (1965), 'सातवाँ दर' (1970), 'हिज्र के मौसम' (1978), 'ख़्वाब का दर बन्द है' (1985), 'नींद की किरचें' (1995), 'मेरे हिस्से की ज़मीन' (1999), 'हासिल-ए-सैर-ए-जहाँ' (2001), 'धुन्ध की रोशनी' (चयन 2003), 'शाम होने वाली है' (2004), 'कुलयात-ए-शहरयार' (पाकिस्तान से प्रकाशित रचनावली) । उर्दू में अन्य पुस्तकें : 'एन.एम. राशिद : शख़्सियत और फ़न', 'दुनिया की बेहतरीन कहानियाँ' (अनुवाद), 'मज़ामीन-ए-ख़लील-उर- रहमान आज़मी (दो खंड) ।
हिन्दी में प्रकाशित काव्य-संग्रह: 'मेरे हिस्से की ज़मीन', 'मिलता रहूँगा ख़्वाब में', 'कहीं कुछ कम है', 'शाम होने वाली है' आदि। अँग्रेज़ी अनुवाद सहित काव्य संग्रह : 'द गेटवे टु ड्रीम्स इज़ क्लोज़्ड', 'थ्रू द क्लोज़्ड डोर वे', 'सेलेक्टिड पोएट्री ऑफ शहरयार'। कुछ फ़िल्मों के लिए भी गीत लेखन ।
पुरस्कार/सम्मान : ज्ञानपीठ पुरस्कार (वर्ष 2008)। साथ ही, उ.प्र. उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, साहित्य मंच पुरस्कार, जालन्धर, अदबी संगम पुरस्कार, न्यूयॉर्क, उ. प्र. फ़िल्म समीक्षक पुरस्कार, दिल्ली उर्दू अकादमी बहादुरशाह ज़फ़र पुरस्कार, फ़िराक सम्मान, शरफुद्दीन याह्या पुरस्कार, बिहार, ग़ालिब इंस्टिट्यूट पुरस्कार, गंगाधर राष्ट्रीय पुरस्कार आदि।
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