Itihas Mein Istri 315

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Itihas Mein Istri

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
सुमन राजे
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
सुमन राजे
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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SKU 9789355188915 Category
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190

इतिहास में स्त्री –

हिन्दी-साहित्येतिहास-लेखन के प्रारम्भ में ही उसके साथ दो दुर्घटनाएँ हो गयीं। एक का सम्बन्ध इतिहास-लेखन की प्रकृति से है और दूसरी का भाषायी इतिहास से । अन्ततः दोनों ही हमारे इतिहासबोध से जुड़े हुए हैं। कहा जा सकता है कि इतिहास की सामन्ती प्रकृति उसके लेखन में कम, सामग्री-चयन एवं वैचारिकी पर अधिक लागू होती है। इतिहास बताता है कि काल ने कितना छोड़ा है परन्तु इससे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अवशिष्ट में से भी हम कितना उपलब्ध कर पाते हैं या करना चाहते हैं। इसका अर्थ है कि हम क्या और कितना चुनते हैं। ज़रूरी नहीं कि हमेशा इतिहास बहुमत द्वारा बनाया जाता हो। यह तो काल का चुनाव है और कभी-कभी एक व्यक्ति भी काफ़ी होता है युग-परिवर्तन के लिए। साहित्येतिहास में यह सम्भावना सबसे अधिक होती है। मौखिक परम्पराओं द्वारा प्रवहणशील साहित्य कितना लुप्त हो गया, यह तो बाद की बात है, अब तो ये परम्पराएँ ही समाप्ति पर हैं। स्थिति यह है कि समकालीनता के दबाव में इस दिशा में खोज करने की हमारी रुचियाँ भी समाप्त हो गयी हैं, जो निरन्तर हमारे वर्तमान को इतिहास-हीनता की ओर खींच रही हैं।

यह सुखद है कि सुमन राजे इन संकल्पनाओं के प्रति अपने लेखन में प्रारम्भ से ही सतर्क और समर्पित रही हैं। इतिहास में स्त्री कृति काल एवं समाज के सापेक्ष स्त्री की उपस्थिति को अधिक विस्तार देती है। सुमन राजे के जीवन की यह अन्तिम कृति पाठकों को अवश्य पसन्द आयेगी और स्त्री-विमर्श को नये सन्दर्भ भी प्राप्त हो सकेंगे, ऐसी उम्मीद है।

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Description

इतिहास में स्त्री –

हिन्दी-साहित्येतिहास-लेखन के प्रारम्भ में ही उसके साथ दो दुर्घटनाएँ हो गयीं। एक का सम्बन्ध इतिहास-लेखन की प्रकृति से है और दूसरी का भाषायी इतिहास से । अन्ततः दोनों ही हमारे इतिहासबोध से जुड़े हुए हैं। कहा जा सकता है कि इतिहास की सामन्ती प्रकृति उसके लेखन में कम, सामग्री-चयन एवं वैचारिकी पर अधिक लागू होती है। इतिहास बताता है कि काल ने कितना छोड़ा है परन्तु इससे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अवशिष्ट में से भी हम कितना उपलब्ध कर पाते हैं या करना चाहते हैं। इसका अर्थ है कि हम क्या और कितना चुनते हैं। ज़रूरी नहीं कि हमेशा इतिहास बहुमत द्वारा बनाया जाता हो। यह तो काल का चुनाव है और कभी-कभी एक व्यक्ति भी काफ़ी होता है युग-परिवर्तन के लिए। साहित्येतिहास में यह सम्भावना सबसे अधिक होती है। मौखिक परम्पराओं द्वारा प्रवहणशील साहित्य कितना लुप्त हो गया, यह तो बाद की बात है, अब तो ये परम्पराएँ ही समाप्ति पर हैं। स्थिति यह है कि समकालीनता के दबाव में इस दिशा में खोज करने की हमारी रुचियाँ भी समाप्त हो गयी हैं, जो निरन्तर हमारे वर्तमान को इतिहास-हीनता की ओर खींच रही हैं।

यह सुखद है कि सुमन राजे इन संकल्पनाओं के प्रति अपने लेखन में प्रारम्भ से ही सतर्क और समर्पित रही हैं। इतिहास में स्त्री कृति काल एवं समाज के सापेक्ष स्त्री की उपस्थिति को अधिक विस्तार देती है। सुमन राजे के जीवन की यह अन्तिम कृति पाठकों को अवश्य पसन्द आयेगी और स्त्री-विमर्श को नये सन्दर्भ भी प्राप्त हो सकेंगे, ऐसी उम्मीद है।

About Author

सुमन राजे - जन्म : 23 अगस्त, 1938, उत्तर प्रदेश में। शिक्षा : लखनऊ विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. (स्वर्णपदक सहित), पीएच. डी.। कानपुर विश्वविद्यालय से डी.लिट्. । प्रकाशित रचनाएँ : हिन्दी साहित्य का आधा इतिहास, साहित्येतिहास : संरचना और स्वरूप, साहित्येतिहास : आदिकाल, काव्यरूप-संरचना : उद्भव और विकास, रचना की कार्यशाला आदि (आलोचना)। रेवातट, आदिकालीन काव्यधारा, अपभ्रंश पीठिका आदि (सम्पादित पाठ)। सपना और लाशघर, उगे हुए हाथों के जंगल, यात्रादंश, एरका, इक्कीसवीं सदी का गीत (कविता-संग्रह)। चौथा सप्तक की कवयित्री । इसके अतिरिक्त अनेक शोधपत्र, आलेख एवं नाट्य-रूपान्तर । पुरस्कार/सम्मान : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का 'तुलसी पुरस्कार' एवं 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' पुरस्कार। 'ऑल इंडिया इंटलेक्चुअल फोरम' द्वारा शिक्षा एवं साहित्य-जगत में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए अलंकरण । निधन : 26 दिसम्बर, 2008 ।

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