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Un Aankhon Ki Katha
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रावूरि भरद्वाज, सम्पादक - भीमसेन ‘निर्मल’
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
रावूरि भरद्वाज, सम्पादक - भीमसेन ‘निर्मल’
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹475 ₹333
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ISBN:
SKU
9789355187413
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
192
उन आँखों की कथा –
तेलुगु के लब्धप्रतिष्ठ कहानीकार एवं उपन्यासकार रावूरि भरद्वाज जनमानस की गहराइयों को जनभाषा में सहज रूप से चित्रित करने में सिद्धहस्त हैं। उनके अक्षर निरक्षर हृदय को भी साक्षर बना देते हैं। उनकी लेखनी में एक ऐसी स्पर्शवेदिता है कि वहाँ तक पहुँचते ही कोई भी घटना अपनी कहानी इस प्रकार सुनाने लगती है कि वह किसी प्रसंग तक सीमित न रहकर हमेशा के लिए प्रासंगिक बन जाती है।
कथा-साहित्य में भरद्वाज ने अपने लिए एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। अपनी कहानियों में वे सामाजिक कुरीतियों, कुप्रथाओं पर व्यंग्य-प्रहार तो करते ही हैं, जीवन में अभावों और दारिद्रय के स्वयं भुक्तभोगी होने के कारण दलित, पीड़ित और शोषित लोगों की मानसिक वेदना की गहराइयों को भी पैनी दृष्टि से आँक सके हैं।
साथ ही, प्रस्तुत संकलन की कहानियों में माँ की ममता है, दिल की बात है, सत्य की कथा है और कड़वा सच भी है। चींटी, मच्छर और चूहे से लेकर डॉक्टर, नेता और यहाँ तक कि भगवान भी इनमें आ घुसते हैं और पाठकों के दिल में बस जाते हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ इस प्रकाशन को अपनी एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानता है।
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Description
उन आँखों की कथा –
तेलुगु के लब्धप्रतिष्ठ कहानीकार एवं उपन्यासकार रावूरि भरद्वाज जनमानस की गहराइयों को जनभाषा में सहज रूप से चित्रित करने में सिद्धहस्त हैं। उनके अक्षर निरक्षर हृदय को भी साक्षर बना देते हैं। उनकी लेखनी में एक ऐसी स्पर्शवेदिता है कि वहाँ तक पहुँचते ही कोई भी घटना अपनी कहानी इस प्रकार सुनाने लगती है कि वह किसी प्रसंग तक सीमित न रहकर हमेशा के लिए प्रासंगिक बन जाती है।
कथा-साहित्य में भरद्वाज ने अपने लिए एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। अपनी कहानियों में वे सामाजिक कुरीतियों, कुप्रथाओं पर व्यंग्य-प्रहार तो करते ही हैं, जीवन में अभावों और दारिद्रय के स्वयं भुक्तभोगी होने के कारण दलित, पीड़ित और शोषित लोगों की मानसिक वेदना की गहराइयों को भी पैनी दृष्टि से आँक सके हैं।
साथ ही, प्रस्तुत संकलन की कहानियों में माँ की ममता है, दिल की बात है, सत्य की कथा है और कड़वा सच भी है। चींटी, मच्छर और चूहे से लेकर डॉक्टर, नेता और यहाँ तक कि भगवान भी इनमें आ घुसते हैं और पाठकों के दिल में बस जाते हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ इस प्रकाशन को अपनी एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानता है।
About Author
रावूरि भरद्वाज -
जन्म : सन् 1927
सामान्य परिस्थितियों में जन्म लेकर, अभाव और दारिद्रय जैसे प्रतिकूल वातावरण में पलकर, अनेकानेक बाधाओं-कठिनाइयों का सामना कर, अनन्यतम स्तर तक पहुँचने वाले इने-गिने साहित्य-सर्जकों में कलाप्रपूर्ण डॉ. रावूरि भरद्वाज अग्रगण्य हैं।
उनकी विभिन्न विधाओं में कई कृतियाँ प्रकाशित हैं, तथापि कहानी और उपन्यास-रचना के क्षेत्र में उन्हें अद्वितीय सफलता मिली है। उनकी पहली कहानी 1943 में प्रकाशित हुई थी। तब से लेकर उन्होंने लगभग 500 कहानियाँ लिखीं जो उनकी अपनी विशिष्ट रचनाशैली और विचार-पद्धति का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनके अब तक 40 कहानी-संग्रह और 20 उपन्यास प्रकाशित हैं।
कई विश्वविद्यालयों और साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं ने उन्हें मानद उपाधियों से सम्मानित कर अपने आपको गौरवान्वित किया ।
निधन : 18 अक्टूबर 2013
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