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Ishwar Nahin Nind Chahiye
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
अनुराधा सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
अनुराधा सिंह
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹325 ₹228
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In stock
ISBN:
SKU
9789355185075
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
120
ईश्वर नहीं नींद चाहिए –
अनुराधा सिंह ने अपने पहले ही संग्रह की इन कविताओं के मार्फत हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में एक सार्थक हस्तक्षेप किया है। दीप्त जीवनानुभव, संश्लिष्ट संवेदना और अभिव्यक्ति की सघनता के स्तर पर इन कविताओं में बहुत कुछ ऐसा है जो उनकी एक सार्थक और मौलिक पहचान बनाने में सहायक है। हिन्दी कविता में यह बहुत सारे सन्दर्भों के साथ रच बस कर अपने वजूद की समूची इंटेंसिटी के साथ एक लम्बे अरसे बाद सामने आया है-क्या स्त्री मन की ऐसी कोई काव्य अभिव्यक्ति हमें इस समय कहीं और दिखाई देती है जो इस कदर सघन हो इस कदर विह्वल, जिसमें रिफ्लेक्शंस भी हों, अभीप्साएँ भी, शिकायतें और ज़ख्म भी हों, कसक भी और सँभलने की आत्म सजगता भी। इन कविताओं में महज़ स्त्री अस्मिता की ज़मीन या पितृ-सत्तात्मक समाज से संवाद के ही सन्दर्भ नहीं है, ये कविताएँ उससे अधिक इतिहास और जटिल समय की अन्तः वेदना और बेकली की कविताएँ हैं।
वह स्त्री जो एकदम पास-पड़ोस की है और वे तमाम स्त्रियाँ जो क्यूबा, त्रिनिदाद, ओहायो, अफ्गानिस्तान, सीरिया या लीबिया में घिरी हुई हैं, उन सबके संसार यहाँ एक दूसरे में घुल मिल गये हैं। तमाम स्त्रियाँ जो ‘ग्लाज़त के प्रति सहनशील’ और ‘दुनिया के पिछवाड़े में बने घूरे सी विनम्र हैं’, ‘जो साँवली मछलियों सी रक्तहीन पाँवों से चलती आती हैं दुनिया की रेत पर’ और ‘अपनी कमनीय देह लिये दूसरों का स्वाद’ बन जाती हैं-यह उनका वह क्लेश है जो एक सार्वभौमिक समय को रच रहा है। ऐसी कम ही कविताएँ इस समय दृश्य में हैं जिनमें निरे तर्क की कसावट नहीं, केवल एक भंगिमा भर नहीं, बल्कि कुछ वह है जो लगातार शिफ्टिंग करता है, छवियों व अर्थबहुलता के संसार को रचता है और उन अबूझ इलाकों में ले जाता है जो केवल और केवल एक ‘जेनुइन’ कविता द्वारा ही सम्भव है। इस स्मार्ट, अभ्यासपरक, यान्त्रिक समझदारी से भरे समय में यह एक बड़ा और कारगर हस्तक्षेप होगा। हिन्दी की समकालीन कविता में यह एक ऐसी दुर्लभ सजगता है जहाँ हृदय विदारक क्रन्दन भी है और एक गज़ब का कलात्मक संयम भी। हिन्दी कविता की दुनिया में यह संग्रह बहुत कुछ नया जोड़ेगा यह उम्मीद की जानी चाहिए।
-विजय कुमार
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Description
ईश्वर नहीं नींद चाहिए –
अनुराधा सिंह ने अपने पहले ही संग्रह की इन कविताओं के मार्फत हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में एक सार्थक हस्तक्षेप किया है। दीप्त जीवनानुभव, संश्लिष्ट संवेदना और अभिव्यक्ति की सघनता के स्तर पर इन कविताओं में बहुत कुछ ऐसा है जो उनकी एक सार्थक और मौलिक पहचान बनाने में सहायक है। हिन्दी कविता में यह बहुत सारे सन्दर्भों के साथ रच बस कर अपने वजूद की समूची इंटेंसिटी के साथ एक लम्बे अरसे बाद सामने आया है-क्या स्त्री मन की ऐसी कोई काव्य अभिव्यक्ति हमें इस समय कहीं और दिखाई देती है जो इस कदर सघन हो इस कदर विह्वल, जिसमें रिफ्लेक्शंस भी हों, अभीप्साएँ भी, शिकायतें और ज़ख्म भी हों, कसक भी और सँभलने की आत्म सजगता भी। इन कविताओं में महज़ स्त्री अस्मिता की ज़मीन या पितृ-सत्तात्मक समाज से संवाद के ही सन्दर्भ नहीं है, ये कविताएँ उससे अधिक इतिहास और जटिल समय की अन्तः वेदना और बेकली की कविताएँ हैं।
वह स्त्री जो एकदम पास-पड़ोस की है और वे तमाम स्त्रियाँ जो क्यूबा, त्रिनिदाद, ओहायो, अफ्गानिस्तान, सीरिया या लीबिया में घिरी हुई हैं, उन सबके संसार यहाँ एक दूसरे में घुल मिल गये हैं। तमाम स्त्रियाँ जो ‘ग्लाज़त के प्रति सहनशील’ और ‘दुनिया के पिछवाड़े में बने घूरे सी विनम्र हैं’, ‘जो साँवली मछलियों सी रक्तहीन पाँवों से चलती आती हैं दुनिया की रेत पर’ और ‘अपनी कमनीय देह लिये दूसरों का स्वाद’ बन जाती हैं-यह उनका वह क्लेश है जो एक सार्वभौमिक समय को रच रहा है। ऐसी कम ही कविताएँ इस समय दृश्य में हैं जिनमें निरे तर्क की कसावट नहीं, केवल एक भंगिमा भर नहीं, बल्कि कुछ वह है जो लगातार शिफ्टिंग करता है, छवियों व अर्थबहुलता के संसार को रचता है और उन अबूझ इलाकों में ले जाता है जो केवल और केवल एक ‘जेनुइन’ कविता द्वारा ही सम्भव है। इस स्मार्ट, अभ्यासपरक, यान्त्रिक समझदारी से भरे समय में यह एक बड़ा और कारगर हस्तक्षेप होगा। हिन्दी की समकालीन कविता में यह एक ऐसी दुर्लभ सजगता है जहाँ हृदय विदारक क्रन्दन भी है और एक गज़ब का कलात्मक संयम भी। हिन्दी कविता की दुनिया में यह संग्रह बहुत कुछ नया जोड़ेगा यह उम्मीद की जानी चाहिए।
-विजय कुमार
About Author
अनुराधा सिंह -
अनुराधा सिंह समकालीन हिन्दी कविता का सुपरिचित चेहरा हैं। 2018 में प्रकाशित उनके कविता संग्रह ईश्वर नहीं नींद चाहिए को पिछले दशक के सर्वाधिक पठित व प्रशंसित संग्रहों में गिना जाता है, इसे शीला सिद्धान्तकर सम्मान (2019) और हेमन्त स्मृति सम्मान (2020) से सम्मानित किया गया है।
आगरा में पली-बढ़ीं एवं मुम्बई व बेंगलुरु की निवासी अनुराधा एक समर्थ अनुवादक, सम्पादक व गद्यकार हैं। ल्हासा का लहू और बचा रहे स्पर्श इनकी उल्लेखनीय गद्य पुस्तकें हैं।
फ़िलहाल ये मुम्बई में प्रबन्धन कक्षाओं में बिज़नेस कम्युनिकेशन का अध्यापन करती हैं।
ईमेल : anuradhadei@yahoo.co.in
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