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Adhoore Manushya
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
डी. जयकान्तन , अनुवाद डॉ. के. ऐ. जमुना
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
डी. जयकान्तन , अनुवाद डॉ. के. ऐ. जमुना
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
SKU
9789357758031
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
183
अधूरे मनुष्य –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तमिल के मूर्धन्य कथाकार एवं अपनी पीढ़ी के अप्रतिम गद्यकार डी. जयकान्तन का ज्ञानपीठ से प्रकाशित पहला कहानी-संग्रह है—’अधूरे मनुष्य’। डी. जयकान्तन तमिल साहित्य के अधुनातन सव्यसाची कहे जाते हैं। ‘शिरुकदै मन्नन’ (कहानी सम्राट) की उपाधि से अलंकृत जयकान्तन को धारा के विरुद्ध चलनेवाले लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त है। सतत संघर्ष के बावजूद उनके लेखन की धार कभी कुन्द नहीं हुई बल्कि समय के साथ और प्रखर होती गयी है।
डी. जयकान्तन के लेखन का मुख्य स्वर समाज के तिरस्कृत, अपमानित और उपेक्षित लोगों के प्रति न केवल सहानुभूति दर्शाना है, बल्कि समस्याओं के तह में जाकर उनका समाधान ढूढ़ने के लिए उनसे जूझना भी है। दूसरे शब्दों में, उनकी ये कहानियाँ निराश्रितों के जीवन में आशा का संचार तो करती ही हैं, अमानवीय जीवन जी रहे लोगों में मानवीयता का रस घोलने की भी भरसक कोशिश करती हैं।
विषय-वैशिष्ट्य व शिल्प की विलक्षणता जयकान्तन के साहित्य को असाधारण बनाती है। साथ ही, हिन्दी के अपने स्वाभाविक मुहावरे में किया गया इन कहानियों का अनुवाद हिन्दी पाठक को मूल जैसा आस्वाद देता है।
डी. जयकान्तन का एक अन्य कहानी-संग्रह ‘अपना अपना अन्तरंग’ भी भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है।
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Description
अधूरे मनुष्य –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तमिल के मूर्धन्य कथाकार एवं अपनी पीढ़ी के अप्रतिम गद्यकार डी. जयकान्तन का ज्ञानपीठ से प्रकाशित पहला कहानी-संग्रह है—’अधूरे मनुष्य’। डी. जयकान्तन तमिल साहित्य के अधुनातन सव्यसाची कहे जाते हैं। ‘शिरुकदै मन्नन’ (कहानी सम्राट) की उपाधि से अलंकृत जयकान्तन को धारा के विरुद्ध चलनेवाले लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त है। सतत संघर्ष के बावजूद उनके लेखन की धार कभी कुन्द नहीं हुई बल्कि समय के साथ और प्रखर होती गयी है।
डी. जयकान्तन के लेखन का मुख्य स्वर समाज के तिरस्कृत, अपमानित और उपेक्षित लोगों के प्रति न केवल सहानुभूति दर्शाना है, बल्कि समस्याओं के तह में जाकर उनका समाधान ढूढ़ने के लिए उनसे जूझना भी है। दूसरे शब्दों में, उनकी ये कहानियाँ निराश्रितों के जीवन में आशा का संचार तो करती ही हैं, अमानवीय जीवन जी रहे लोगों में मानवीयता का रस घोलने की भी भरसक कोशिश करती हैं।
विषय-वैशिष्ट्य व शिल्प की विलक्षणता जयकान्तन के साहित्य को असाधारण बनाती है। साथ ही, हिन्दी के अपने स्वाभाविक मुहावरे में किया गया इन कहानियों का अनुवाद हिन्दी पाठक को मूल जैसा आस्वाद देता है।
डी. जयकान्तन का एक अन्य कहानी-संग्रह ‘अपना अपना अन्तरंग’ भी भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है।
About Author
डी. जयकान्तन -
जन्म: 2 मई, 1934, कडलूर (तमिलनाडु)।
डी. जयकान्तन की अब तक लगभग दौ सौ कहानियाँ, चालीस उपन्यास और पन्द्रह निबन्ध-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें मालै मयक्कम् (1962), युगसन्धि (1963), सुय दरिशनम् (1967), गुरुपीठम् (1971), अधूरे मनुष्य (1989), (कहानी-संग्रह); उन्नैप्पो आरुवन (1964), सिल नेरंगलिल चित मनिदर्गल (1970), ओरु मनिदम् ओरु वीडु ओरु उलगम (1973), सुन्दरकाण्डम् (1982), ईश्वर अल्ला तेरे नाम (1983) (उपन्यास); निनैलु पाक्किटेन (1973) भारती पाठम् (1974), नटपिल पून मलर्गल (1986) (निबन्ध संग्रह) आदि काफ़ी चर्चित रहे हैं। उनकी कई कृतियों पर फ़िल्में बन चुकी हैं और कई रचनाओं का अन्य भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, जापानी और युक्रेनी भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
सम्मान पुरस्कार: साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1972), सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार (1978), श्रेष्ठ उपन्यास के लिए तमिलनाडु सरकार पुरस्कार (1986), तमिल विश्वविद्यालय का 'राजराजन पुरस्कार' (1986), साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता (1996) आदि सम्मानों से विभूषित और भारतीय साहित्य में समग्र योगदान के लिए वर्ष 2002 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।
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