Sadachar Ka Taveez 174

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Sadiyon Ka Saransh

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
दिजेन्द्र 'दिज'
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
दिजेन्द्र 'दिज'
Language:
Hindi
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Hardback

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ISBN:
SKU 9789357750264 Category
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Page Extent:
128

सदियों का सारांश –
‘सदियों का सारांश’ की ग़ज़लों में संचित अपार ऊर्जा का अजस्र स्रोत सतत संघर्ष को प्रस्तुत शाइर की चेतना में है। इस ऊर्जा से सम्पन्न होने के कारण ‘द्विज’ जी निरन्तर अलग-अलग पहलू से अपने आसपास को देखते हैं, परखते हैं और प्रयास करते हैं कि जो सत्य और तथ्य, वर्तमान ग़ज़ल का कथ्य बन सकें, उन्हें अपनी विशिष्ट शैली में शास्त्रीय और कलात्मक पूर्णता के साथ इस तरह अभिव्यक्त करें कि वह पाठक की स्मृति का स्थायी हिस्सा बन जाये। ‘द्विज’ जी चुनौतियों को चिह्नित करके न केवल अपनी पक्षधरता को स्पष्ट करते हैं बल्कि अपनी नयी जीवन-दृष्टि से उन सम्भावित शक्तियों को भी चिह्नित करते हैं जो मनुष्य के संघर्ष को प्रभावी या अप्रभावी बना सकती हैं।
इन ग़ज़लों में गति का तत्त्व प्रबल है। इन ग़ज़लों में साहसिकता और निर्भीकता के आवेग के सन्तुलन को बरकरार रखते हुए अनुशासन और गम्भीरता के साथ सटीक और प्रवाहमयी अभिव्यक्ति हुई है। स्फूर्त शब्द समूह, चुस्त वाक्य-विन्यास और भाषा के मुहावरे के जादुई प्रयोग से समृद्ध ये अश’आर वास्तविकता के धरातल से जन्म लेकर भी हमें अनूठे बिम्बों और प्रतीकात्मकता के नये संसार में ले जाते हैं। तग़ज्जुल के तमाम तत्त्वों से लबरेज़ इन अशआर से रूबरू होना सुधी पाठक के लिए अविस्मरणीय अनुभव होगा।
‘द्विज’ जी की वर्षों की सतत ग़ज़ल-साधना के पश्चात उनका यह ग़ज़ल संग्रह हमारे हाथों में आया है। अपने पहले ग़ज़ल संग्रह ‘जन-गण-मन’ की धूम की अनुगूँज के पार्श्व संगीत में ‘सदियों का सारांश’ एक ऐसा सहगान है जिससे सम्मोहित और प्रेरित होकर पाठक भी इसमें अपना स्वर जोड़ने के लिए विवश हो जायेंगे।
‘सदियों का सारांश’ मनुष्य के मनुष्य और प्रकृति से परस्पर सम्बन्धों की वास्तविकताओं और उसके स्वप्नों का सारांश है। समय और समाज की खुरदुरी परतों में गुम संवेदनाओं की शक्ति और साहस को प्राणवान करती हुईं ये ग़ज़लें मनुष्य के चिन्तन और सौन्दर्यबोध को नये आलोक में देखने को उद्यत करती हैं। यह संग्रह अपने विशिष्ट कथ्य और तग़ज्जुल ताज़गी के कारण ग़ज़ल के सबसे महत्त्वपूर्ण और श्रेष्ठ संग्रहों में से एक है।

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Description

सदियों का सारांश –
‘सदियों का सारांश’ की ग़ज़लों में संचित अपार ऊर्जा का अजस्र स्रोत सतत संघर्ष को प्रस्तुत शाइर की चेतना में है। इस ऊर्जा से सम्पन्न होने के कारण ‘द्विज’ जी निरन्तर अलग-अलग पहलू से अपने आसपास को देखते हैं, परखते हैं और प्रयास करते हैं कि जो सत्य और तथ्य, वर्तमान ग़ज़ल का कथ्य बन सकें, उन्हें अपनी विशिष्ट शैली में शास्त्रीय और कलात्मक पूर्णता के साथ इस तरह अभिव्यक्त करें कि वह पाठक की स्मृति का स्थायी हिस्सा बन जाये। ‘द्विज’ जी चुनौतियों को चिह्नित करके न केवल अपनी पक्षधरता को स्पष्ट करते हैं बल्कि अपनी नयी जीवन-दृष्टि से उन सम्भावित शक्तियों को भी चिह्नित करते हैं जो मनुष्य के संघर्ष को प्रभावी या अप्रभावी बना सकती हैं।
इन ग़ज़लों में गति का तत्त्व प्रबल है। इन ग़ज़लों में साहसिकता और निर्भीकता के आवेग के सन्तुलन को बरकरार रखते हुए अनुशासन और गम्भीरता के साथ सटीक और प्रवाहमयी अभिव्यक्ति हुई है। स्फूर्त शब्द समूह, चुस्त वाक्य-विन्यास और भाषा के मुहावरे के जादुई प्रयोग से समृद्ध ये अश’आर वास्तविकता के धरातल से जन्म लेकर भी हमें अनूठे बिम्बों और प्रतीकात्मकता के नये संसार में ले जाते हैं। तग़ज्जुल के तमाम तत्त्वों से लबरेज़ इन अशआर से रूबरू होना सुधी पाठक के लिए अविस्मरणीय अनुभव होगा।
‘द्विज’ जी की वर्षों की सतत ग़ज़ल-साधना के पश्चात उनका यह ग़ज़ल संग्रह हमारे हाथों में आया है। अपने पहले ग़ज़ल संग्रह ‘जन-गण-मन’ की धूम की अनुगूँज के पार्श्व संगीत में ‘सदियों का सारांश’ एक ऐसा सहगान है जिससे सम्मोहित और प्रेरित होकर पाठक भी इसमें अपना स्वर जोड़ने के लिए विवश हो जायेंगे।
‘सदियों का सारांश’ मनुष्य के मनुष्य और प्रकृति से परस्पर सम्बन्धों की वास्तविकताओं और उसके स्वप्नों का सारांश है। समय और समाज की खुरदुरी परतों में गुम संवेदनाओं की शक्ति और साहस को प्राणवान करती हुईं ये ग़ज़लें मनुष्य के चिन्तन और सौन्दर्यबोध को नये आलोक में देखने को उद्यत करती हैं। यह संग्रह अपने विशिष्ट कथ्य और तग़ज्जुल ताज़गी के कारण ग़ज़ल के सबसे महत्त्वपूर्ण और श्रेष्ठ संग्रहों में से एक है।

About Author

द्विजेन्द्र 'द्विज' - जन्म: 10 अक्तूबर, 1962। शिक्षा: हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर पोस्टग्रेजुएट स्टडीज़, धर्मशाला से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर डिग्री (1983-1985)। प्रकाशित कृतियाँ: जन-गण-मन (ग़ज़ल संग्रह) 2003, ऐब पुराणा सीहस्से दा (हिमाचली ग़ज़ल संग्रह) 2021। संकलित: दर्जन से अधिक हिन्दी ग़ज़ल संकलनों में ग़ज़लें। सम्मान: 'नवल प्रयास शिमला' द्वारा धर्मप्रकाश साहित्य रत्न सम्मान-2019, हिमोत्कर्ष साहित्य संस्कृति एवं जनकल्याण परिषद ऊना हिमाचल प्रदेश से हिमोत्कर्ष श्री (उत्कृष्ट साहित्यकार) पुरस्कार 2009-2010, कविताकोश में सराहनीय योगदान के लिए 2011 में सम्मानित। वैश्विक समुदाय एवं रेडियो सबरंग द्वारा 2016 में सम्मानित, काँगड़ा लोक साहित्य परिषद् राजमन्दिर नेरटी द्वारा वर्ष 2017 का परम्परा उत्सव सम्मान।

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