Sadachar Ka Taveez 207

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Sadachar Ka Taveez

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
हरिशंकर परसाई
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
हरिशंकर परसाई
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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1-4 Days

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SKU 9789355188564 Category
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136

सदाचार का तावीज़ –
सदाचार भला किसे प्रिय नहीं होता! सदाचार का तावीज़ बाँधते तो वे भी हैं जो सचमुच ‘लाचार’ होते हैं, और वे भी जो बाहर से ‘एक’ होकर भी भीतर से सदा ‘चार’ रहते हैं। यहाँ ध्यान देने की बात यही है कि आपके हाथों में प्रस्तुत सदाचार का तावीज़ किसी और का नहीं—हरिशंकर परसाई का है। परसाई यानी सिर्फ़ परसाई। और इसीलिए यह दावा करना ग़लत नहीं होगा कि सदाचार का तावीज़ भी हिन्दी के व्यंग्य-साहित्य में अपने प्रकार की अद्वितीय कृति है।
कुल इकतीस व्यंग्य-कथाओं का संग्रह है यह सदाचार का तावीज़। आकस्मिक नहीं होगा कि ये कहानियाँ आपको, आपके ‘समूह’ को एकबारगी बेतहाशा चोट दें, झकझोरें, और फिर आप तिलमिला उठें! साथ ही आकस्मिक यह भी नहीं होगा जब यही कहानियाँ आपको अपने ‘होने’ का अहसास तो दिलायें ही, विवश भी करें कि औरों के साथ मिलकर ख़ुद ही अपने ऊपर क़हक़हे भी आप लगायें!… एक बात यह और कि इन ‘तीरमार’ कहानियों का स्वर ‘सुधार’ का हरगिज़ नहीं, बदलने का है; यानी सिर्फ़ इतना कि आपकी चेतना में एक हलचल मच जाये, आपको एक सही ‘संज्ञा’ मिल सके!
प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण।

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Description

सदाचार का तावीज़ –
सदाचार भला किसे प्रिय नहीं होता! सदाचार का तावीज़ बाँधते तो वे भी हैं जो सचमुच ‘लाचार’ होते हैं, और वे भी जो बाहर से ‘एक’ होकर भी भीतर से सदा ‘चार’ रहते हैं। यहाँ ध्यान देने की बात यही है कि आपके हाथों में प्रस्तुत सदाचार का तावीज़ किसी और का नहीं—हरिशंकर परसाई का है। परसाई यानी सिर्फ़ परसाई। और इसीलिए यह दावा करना ग़लत नहीं होगा कि सदाचार का तावीज़ भी हिन्दी के व्यंग्य-साहित्य में अपने प्रकार की अद्वितीय कृति है।
कुल इकतीस व्यंग्य-कथाओं का संग्रह है यह सदाचार का तावीज़। आकस्मिक नहीं होगा कि ये कहानियाँ आपको, आपके ‘समूह’ को एकबारगी बेतहाशा चोट दें, झकझोरें, और फिर आप तिलमिला उठें! साथ ही आकस्मिक यह भी नहीं होगा जब यही कहानियाँ आपको अपने ‘होने’ का अहसास तो दिलायें ही, विवश भी करें कि औरों के साथ मिलकर ख़ुद ही अपने ऊपर क़हक़हे भी आप लगायें!… एक बात यह और कि इन ‘तीरमार’ कहानियों का स्वर ‘सुधार’ का हरगिज़ नहीं, बदलने का है; यानी सिर्फ़ इतना कि आपकी चेतना में एक हलचल मच जाये, आपको एक सही ‘संज्ञा’ मिल सके!
प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण।

About Author

हरिशंकर परसाई - (सन् 1924-1995) हिन्दी जगत के प्रख्यात व्यंग्यकार-कथाकार। शिक्षा: एम.ए. तक। कुछ वर्ष अध्यापन कार्य किया मगर 'मुदर्रिसी' में मन रमा नहीं। और तब लम्बे समय तक अनवरत स्वतन्त्र लेखन। लेखन: जैसे उनके दिन फिरे, हँसते हैं रोते हैं, तब की बात (कथा-संग्रह); तट की खोज, ज्वाला और जल (लघु उपन्यास); रानी नागफनी की कहानी (व्यंग्य उपन्यास); भूत के पाँव पीछे (निबन्ध संग्रह); सदाचार का तावीज़ (व्यंग्य कथाएँ) इत्यादि।

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