SalePaperback
Prarabdha
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
आशापूर्णा देवी अनुवाद ममता खरे
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
आशापूर्णा देवी अनुवाद ममता खरे
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹595 ₹417
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ISBN:
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9789355189448
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
354
प्रारब्ध –
पुरुष की बड़ी से बड़ी कमज़ोरी समाज पचा लता है लेकिन नारी को उसकी थोड़ी सी चूक के लिए भी पुरुष समाज उसे कठोर दण्ड देता है जबकि इसमें उसकी लिप्सा का अंश कहीं अधिक होता है। वास्तव में नारी अपने मूल अधिकारों से तो वंचित है, लेकिन सारे कर्तव्य और उसके हिस्से मढ़ दिये गये हैं। आशापूर्णा का मानना है कि नारी का जीवन अवरोधों और वंचना में ही कट जाता है, जिसे उसकी तपस्या कहकर हमारा समाज गौरवान्वित होता है। इस विडम्बना और नारी जाति की असहायता की ही वाणी मिली है यशस्वी बांग्ला कथाकार के इस अनुपम उपन्यास में।
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Description
प्रारब्ध –
पुरुष की बड़ी से बड़ी कमज़ोरी समाज पचा लता है लेकिन नारी को उसकी थोड़ी सी चूक के लिए भी पुरुष समाज उसे कठोर दण्ड देता है जबकि इसमें उसकी लिप्सा का अंश कहीं अधिक होता है। वास्तव में नारी अपने मूल अधिकारों से तो वंचित है, लेकिन सारे कर्तव्य और उसके हिस्से मढ़ दिये गये हैं। आशापूर्णा का मानना है कि नारी का जीवन अवरोधों और वंचना में ही कट जाता है, जिसे उसकी तपस्या कहकर हमारा समाज गौरवान्वित होता है। इस विडम्बना और नारी जाति की असहायता की ही वाणी मिली है यशस्वी बांग्ला कथाकार के इस अनुपम उपन्यास में।
About Author
आशापूर्णा देवी -
(1909-1996) -
'ज्ञानपीठ पुरस्कार', 'भुवन मोहिनी स्मृति पदक' और 'रवीन्द्र पुरस्कार' से सम्मानित तथा 'पद्मश्री' से विभूषित आशापूर्णा जी अपनी एक सौ सत्तर से भी अधिक कृतियों द्वारा सर्वभारतीय स्वरूप को गौरवान्वित करती हुई आजीवन संलग्न रहीं।
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