Paalwa

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
भालचन्द्र जोशी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
भालचन्द्र जोशी
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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156

पालवा –
‘पालवा’ भालचन्द्र जोशी की सात कहानियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है। भालचन्द्र जोशी की कहानियाँ पाठकों के मन में एक ऐसे रचनाकार की छवि निर्मित करती हैं जिसे सरोकार, पठनीयता, विचार और शिल्प की सतर्क समझ है। भालचन्द्र अपनी रचनाओं के लिए सूक्तियों और युक्तियों से भरे किसी फ़ैशनेबल समुद्र का मन्थन नहीं करते। वे जीवन के निकटतम यथार्थ से कथा के सूत्र जुटाते हैं और उन्हें इस तरह बुनते हैं कि परम्परा और आधुनिकता के बीच तारतम्य बन सके। घर-परिवार इन कहानियों का ‘अनिवार्य अन्तरंग’ है।
संग्रह की शीर्षक कहानी ‘पालवा’ में एक बच्चे के मनोविज्ञान से उपजी कथा-स्थितियाँ हैं। ‘लौटा तो भय’ कहानी सामाजिक परिवर्तन के दबाव से टूटती जड़ता और नयी सामाजिकता का वर्णन करती है। ‘क़िला समय’ प्रेम, स्मृति और वर्तमान का ऊहापोह है। ‘बाहरी बाधा’ विखण्डित व्यक्तित्व की मार्मिक कथा-रचना है। इसमें वैश्विक विडम्बनाएँ भी अर्थपूर्ण ढंग से प्रकट हो सकी हैं। ‘जतरा’ प्रतीकात्मक तरीक़े से हँसी के गायब हो जाने और चीज़ों को भूल जाने का रोचक भाष्य है। ‘निरात’ परिवार, स्त्री और थकाऊ जीवन-स्थितियों के द्वारा कठोर वास्तविकता को व्यक्त करती है।
भालचन्द्र जोशी की कथा-भाषा सहज और सम्यक है, ‘…जैसे यह उदासी की सड़क है, उसी तरह हँसी की सड़क भी होगी। वहीं कहीं मेरी हँसी भी बिछी होगी।’ या, ‘…जैसे हम दोनों के भीतर इसी तरह का कोई कोना है, जिसका अँधेरापन बढ़ गया है। अब किसी भी आवाज़ की रोशनी वहाँ तक नहीं पहुँच सकती है। इन कहानियों के माध्यम से प्रकाश का एक घेरा बनता है जिसमें व्यक्तिगत और सामाजिक सच्चाइयाँ कुछ और स्पष्ट हो उठती हैं। —सुशील सिद्धार्थ

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पालवा –
‘पालवा’ भालचन्द्र जोशी की सात कहानियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है। भालचन्द्र जोशी की कहानियाँ पाठकों के मन में एक ऐसे रचनाकार की छवि निर्मित करती हैं जिसे सरोकार, पठनीयता, विचार और शिल्प की सतर्क समझ है। भालचन्द्र अपनी रचनाओं के लिए सूक्तियों और युक्तियों से भरे किसी फ़ैशनेबल समुद्र का मन्थन नहीं करते। वे जीवन के निकटतम यथार्थ से कथा के सूत्र जुटाते हैं और उन्हें इस तरह बुनते हैं कि परम्परा और आधुनिकता के बीच तारतम्य बन सके। घर-परिवार इन कहानियों का ‘अनिवार्य अन्तरंग’ है।
संग्रह की शीर्षक कहानी ‘पालवा’ में एक बच्चे के मनोविज्ञान से उपजी कथा-स्थितियाँ हैं। ‘लौटा तो भय’ कहानी सामाजिक परिवर्तन के दबाव से टूटती जड़ता और नयी सामाजिकता का वर्णन करती है। ‘क़िला समय’ प्रेम, स्मृति और वर्तमान का ऊहापोह है। ‘बाहरी बाधा’ विखण्डित व्यक्तित्व की मार्मिक कथा-रचना है। इसमें वैश्विक विडम्बनाएँ भी अर्थपूर्ण ढंग से प्रकट हो सकी हैं। ‘जतरा’ प्रतीकात्मक तरीक़े से हँसी के गायब हो जाने और चीज़ों को भूल जाने का रोचक भाष्य है। ‘निरात’ परिवार, स्त्री और थकाऊ जीवन-स्थितियों के द्वारा कठोर वास्तविकता को व्यक्त करती है।
भालचन्द्र जोशी की कथा-भाषा सहज और सम्यक है, ‘…जैसे यह उदासी की सड़क है, उसी तरह हँसी की सड़क भी होगी। वहीं कहीं मेरी हँसी भी बिछी होगी।’ या, ‘…जैसे हम दोनों के भीतर इसी तरह का कोई कोना है, जिसका अँधेरापन बढ़ गया है। अब किसी भी आवाज़ की रोशनी वहाँ तक नहीं पहुँच सकती है। इन कहानियों के माध्यम से प्रकाश का एक घेरा बनता है जिसमें व्यक्तिगत और सामाजिक सच्चाइयाँ कुछ और स्पष्ट हो उठती हैं। —सुशील सिद्धार्थ

About Author

भालचन्द्र जोशी - 17 अप्रैल, 1956 को जनमे भालचन्द्र जोशी पेशे से इंजीनियर हैं और अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया है। आठवें दशक के उत्तरार्ध में कहानी लेखन की शुरुआत। पहली कहानी 1976 में प्रकाशित। कई कहानियों का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद। आदिवासी जीवन पद्धति तथा कला का विशेष अध्ययन। निमाड़ की लोक-कलाओं और लोक-कथाओं पर काम। देश के प्रमुख समाचार पत्रों के लिए समसामयिक विषयों पर लेखन। लघुपत्रिका 'यथार्थ' का सम्पादन। 'कथादेश' के 'नवलेखन अंक' (जुलाई 2002) का सम्पादन। टेलीविज़न के लिए क्लासिक सीरीज़ में फ़िल्म लेखन। कहानी-संग्रह 'नींद के बाहर', 'पहाड़ों पर रात' और ‘चरसा' प्रकाशित। मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का 'वागीश्वरी पुरस्कार', 'अखिल भारतीय अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति पुरस्कार' प्राप्त।

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