SaleHardback
Asundar Sundar
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
जितेंद्र श्रीवास्तव
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
जितेंद्र श्रीवास्तव
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹220 ₹154
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ISBN:
SKU
9788119014729
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
114
असुन्दर सुन्दर –
‘असुन्दर सुन्दर’ युवा कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव का दूसरा कविता संग्रह है। इस संग्रह में कवि का कला बोध और काव्य-विवेक अधिक गझिन और परिष्कृत हुआ है। काव्य-निकष की खोज में कवि ग़ालिब तक जाता है और यह निष्कर्ष प्राप्त करता है कि कविता दुविधा के बीच जीवन की राह तलाशने का साधन है। आम आदमी से सजग संवाद करती हुई इस संग्रह की कविताओं में उपस्थित हमारा वर्तमान इतिहास और अतीत की स्मृतियों में संगमित होकर अपने समूचे विडम्बनात्मक यथार्थ के साथ उजागर हुआ है। स्मृतियों में बार-बार लौटना जितेन्द्र की कविता की एक ख़ास प्रविधि है। स्मृति के आत्मीय सन्दर्भों की पुनराविष्कृति से अपने समय के विभ्रमकारी यथार्थ को उजागर करने की यह प्रविधि जितेन्द्र को उनके समवयस्क कवियों में विशिष्ट बनाती है। उनकी कविता को एक कठिन आत्मसंघर्ष से गुज़रता हुआ लगातार महसूस किया जा सकता है। ‘असुन्दर सुन्दर’, ‘रामबचन भगत’, ‘सोते हुए आदमी को देखकर’, ‘किरायेदार की तरह’, ‘जो इनके घर भी’ आदि कर्मलीन मनुष्य के श्रम स्वेद में सौन्दर्य की खोज करती हुई अविस्मरणीय कविताएँ हैं। श्रमशील जीवन के प्रति भावुक प्रतिबद्धता प्रदर्शन से कहीं अधिक जितेन्द्र की कविता एक गहरी और संवेदनशील जिज्ञासा की कविता है। वहाँ सोये हुए आदमी के चेहरे के पीछे छिपे अथाह दुखों तक का पता लगा लेने की गहरी ललक है।
जितेन्द्र श्रीवास्तव भाषिक मितव्ययिता और शब्द चयन में अत्यन्त सजग कवि हैं। घर-परिवार और जीवन को ऊष्मा से भर देनेवाले तमाम तरह के आत्मीय सन्दर्भ उनकी कविता का केन्द्र बनाते हैं और कविता को एक विस्तृत सामाजिक परिधि प्रदान करते हैं। इन अर्थों में यह कविता-संग्रह हमारे समय की हिन्दी कविता की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है
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Description
असुन्दर सुन्दर –
‘असुन्दर सुन्दर’ युवा कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव का दूसरा कविता संग्रह है। इस संग्रह में कवि का कला बोध और काव्य-विवेक अधिक गझिन और परिष्कृत हुआ है। काव्य-निकष की खोज में कवि ग़ालिब तक जाता है और यह निष्कर्ष प्राप्त करता है कि कविता दुविधा के बीच जीवन की राह तलाशने का साधन है। आम आदमी से सजग संवाद करती हुई इस संग्रह की कविताओं में उपस्थित हमारा वर्तमान इतिहास और अतीत की स्मृतियों में संगमित होकर अपने समूचे विडम्बनात्मक यथार्थ के साथ उजागर हुआ है। स्मृतियों में बार-बार लौटना जितेन्द्र की कविता की एक ख़ास प्रविधि है। स्मृति के आत्मीय सन्दर्भों की पुनराविष्कृति से अपने समय के विभ्रमकारी यथार्थ को उजागर करने की यह प्रविधि जितेन्द्र को उनके समवयस्क कवियों में विशिष्ट बनाती है। उनकी कविता को एक कठिन आत्मसंघर्ष से गुज़रता हुआ लगातार महसूस किया जा सकता है। ‘असुन्दर सुन्दर’, ‘रामबचन भगत’, ‘सोते हुए आदमी को देखकर’, ‘किरायेदार की तरह’, ‘जो इनके घर भी’ आदि कर्मलीन मनुष्य के श्रम स्वेद में सौन्दर्य की खोज करती हुई अविस्मरणीय कविताएँ हैं। श्रमशील जीवन के प्रति भावुक प्रतिबद्धता प्रदर्शन से कहीं अधिक जितेन्द्र की कविता एक गहरी और संवेदनशील जिज्ञासा की कविता है। वहाँ सोये हुए आदमी के चेहरे के पीछे छिपे अथाह दुखों तक का पता लगा लेने की गहरी ललक है।
जितेन्द्र श्रीवास्तव भाषिक मितव्ययिता और शब्द चयन में अत्यन्त सजग कवि हैं। घर-परिवार और जीवन को ऊष्मा से भर देनेवाले तमाम तरह के आत्मीय सन्दर्भ उनकी कविता का केन्द्र बनाते हैं और कविता को एक विस्तृत सामाजिक परिधि प्रदान करते हैं। इन अर्थों में यह कविता-संग्रह हमारे समय की हिन्दी कविता की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है
About Author
जितेन्द्र श्रीवास्तव -
जन्म: 8 अप्रैल, 1974, सिलहटा, देवरिया (उ.प्र.)।
शिक्षा: बी.ए. तक की पढ़ाई गाँव और गोरखपुर में। जे.एन.यू., नयी दिल्ली से हिन्दी साहित्य में एम.ए., एम.फिल. और पीएच.डी.। एम.ए. और एम.फिल. में प्रथम स्थान।
प्रकाशन: 'इन दिनों हालचाल' (कथ्य-रूप पुस्तिका), 'अनभै कथा' और 'असुन्दर सुन्दर' (कविता संग्रह)। 'भारतीय समाज की समस्याएँ और प्रेमचन्द', 'भारतीय राष्ट्रवाद और प्रेमचन्द' और 'शब्दों में समय' (आलोचना)। हिन्दी के साथ-साथ भोजपुरी में भी लेखन प्रकाशन। कुछ कविताएँ, मराठी, ओड़िया और पंजाबी में अनूदित लम्बी कविता 'सोनचिरई' की कई नाट्य प्रस्तुतियाँ।
पुरस्कार-सम्मान: हिन्दी अकादमी, दिल्ली का 'कृति सम्मान' (2004-05), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का 'रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार' (2006), 'भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार' (2006), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का 'विजयदेव नारायण साही पुरस्कार' (2007), भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता का 'युवा पुरस्कार' (2007) और डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान' (2007)।
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