Suraj Ka Satwan Ghoda 207

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Talab Mein Tairtee Lakadee

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
प्रदीप बिहारी अनुवाद अरुणाभ सौरभ
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
प्रदीप बिहारी अनुवाद अरुणाभ सौरभ
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9789390659036 Category
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Page Extent:
127

तालाब में तैरती लकड़ी –
प्रदीप बिहारी की कहानियाँ मिथिला के निम्न मध्यवर्गीय जीवन का जीवन्त दस्तावेज़ हैं। एक बार इन कहानियों की दुनिया में प्रवेश करने के बाद आप आसानी से बाहर नहीं निकल सकते। सहजता का सूत्र ग्रहण कर लेखक विविधता का सूत्र गढ़ता हुआ यहाँ दिखता है। इन कहानियों की दुनिया में कुछ भी दिव्य या भव्य जैसा नहीं है। मामूली जन और जीवन की मामूली चीज़ों से ये कहानियाँ हमें जोड़ती हैं। हमारी संवेदना को झकझोरती हैं। हमारे भीतर ख़ास तरह की तिलमिलाहट पैदा करती हैं। गहरी पीड़ा और टीस के धरातल पर इनकी रचना हुई है, जहाँ लेखक का दृष्टिकोण करुणा सम्पन्न मानवीयता से ओत-प्रोत है। मगर अवसाद और त्रासद स्थितियों से निकाल कर जीवन को हर साँस तक जीने की जद्दोजहद इन कहानियों की प्रेरणा है। यथार्थ के प्रति लेखक का नज़रिया एकदम साफ़ है। कथाकार पाठकों की अँगुली पकड़कर उसे सत्य की तरफ़ खींचकर ले जाना चाहता है।
मामूली लोगों के जीवन के बीच मनुष्य विरोधी व्यवस्था है, जो मुँह फाड़कर उसे कच्चा चबाना चाहती है। उस मनुष्यता को बचाने की कथाकार की निर्भीक कोशिश इन कहानियों में दर्ज होती है। ये कहानियाँ आकार में छोटी है, पर हमारे अन्तःकरण के आयतन का विस्तार करती है। यहाँ आप कोरी भावुकता में नहीं फँसते अपितु यथार्थ के त्रासद दृश्यों को देखकर आपकी भावना छलनी हो सकती है। आपके भीतर थोड़ी और मनुष्यता जाग्रत होती है। स्मृति की सम्पन्नता इस काथाकार को मानवीय मर्म से भरती है। आंचलिक सुगन्ध से भरपूर करती है। वह हमें उस अंचल में ले जाती है, जहाँ निम्न से निम्नतर गिनती से बाहर, भव्यता के विरुद्ध आजीवन की गहरी पड़ताल है। यहाँ उस वर्ग का श्रम गन्ध और स्वेद-बूँद लेखक की क़लम की स्याही में प्रवेश कर जाता है। वह क़लम मानुस की दुर्धर्ष जिजीविषा को अपराजित और अक्षुण्ण रखने में सक्षम है।—अरुणाभ सौरभ

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Description

तालाब में तैरती लकड़ी –
प्रदीप बिहारी की कहानियाँ मिथिला के निम्न मध्यवर्गीय जीवन का जीवन्त दस्तावेज़ हैं। एक बार इन कहानियों की दुनिया में प्रवेश करने के बाद आप आसानी से बाहर नहीं निकल सकते। सहजता का सूत्र ग्रहण कर लेखक विविधता का सूत्र गढ़ता हुआ यहाँ दिखता है। इन कहानियों की दुनिया में कुछ भी दिव्य या भव्य जैसा नहीं है। मामूली जन और जीवन की मामूली चीज़ों से ये कहानियाँ हमें जोड़ती हैं। हमारी संवेदना को झकझोरती हैं। हमारे भीतर ख़ास तरह की तिलमिलाहट पैदा करती हैं। गहरी पीड़ा और टीस के धरातल पर इनकी रचना हुई है, जहाँ लेखक का दृष्टिकोण करुणा सम्पन्न मानवीयता से ओत-प्रोत है। मगर अवसाद और त्रासद स्थितियों से निकाल कर जीवन को हर साँस तक जीने की जद्दोजहद इन कहानियों की प्रेरणा है। यथार्थ के प्रति लेखक का नज़रिया एकदम साफ़ है। कथाकार पाठकों की अँगुली पकड़कर उसे सत्य की तरफ़ खींचकर ले जाना चाहता है।
मामूली लोगों के जीवन के बीच मनुष्य विरोधी व्यवस्था है, जो मुँह फाड़कर उसे कच्चा चबाना चाहती है। उस मनुष्यता को बचाने की कथाकार की निर्भीक कोशिश इन कहानियों में दर्ज होती है। ये कहानियाँ आकार में छोटी है, पर हमारे अन्तःकरण के आयतन का विस्तार करती है। यहाँ आप कोरी भावुकता में नहीं फँसते अपितु यथार्थ के त्रासद दृश्यों को देखकर आपकी भावना छलनी हो सकती है। आपके भीतर थोड़ी और मनुष्यता जाग्रत होती है। स्मृति की सम्पन्नता इस काथाकार को मानवीय मर्म से भरती है। आंचलिक सुगन्ध से भरपूर करती है। वह हमें उस अंचल में ले जाती है, जहाँ निम्न से निम्नतर गिनती से बाहर, भव्यता के विरुद्ध आजीवन की गहरी पड़ताल है। यहाँ उस वर्ग का श्रम गन्ध और स्वेद-बूँद लेखक की क़लम की स्याही में प्रवेश कर जाता है। वह क़लम मानुस की दुर्धर्ष जिजीविषा को अपराजित और अक्षुण्ण रखने में सक्षम है।—अरुणाभ सौरभ

About Author

लेखक - प्रदीप बिहारी - जन्म: 5 मार्च, 1963 मधुबनी, बिहार। शिक्षा: एम.ए. (नाट्यशास्त्र)। लेखन: कहानियाँ हिन्दी, नेपाली, ओड़िया, मराठी, असमिया, मलयालम, तेलुगु, पंजाबी, गुजराती, डोगरी, उर्दू और अंग्रेज़ी में अनूदित और प्रकाशित। रंगमंच (लेखन, अभिनय और निर्देशन) से सम्बद्ध कुछ टेलीफ़िल्म में अभिनय मैथिली टेलीफ़िल्म का पटकथा लेखन और निर्देशन। प्रकाशित कृतियाँ: मैथिली में पाँच कहानी संग्रह, दो लघुकथा संग्रह, छह उपन्यास, एक नाटक और एक पत्रों का संकलन प्रकाशित। अनुवाद: मेथिली-हिन्दी-नेपाली में परस्पर अनुवाद कार्य। नेपाली से मैथिली में अनुवाद की पाँच पुस्तकें साहित्य अकादेमी और चतुरंग प्रकाशन से प्रकाशित। हिन्दी से मैथिली में रामवृक्ष बेनीपुरी की बाल कहानी का अनुवाद एवं एनबीटी, इंडिया से प्रकाशित। नेपाली से हिन्दी में एक पुस्तक अनूदित एवं साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित। सम्पादन: मैथिली में एक कहानी संग्रह और जीवकान्त के पाँचों उपन्यास का संकलन व सम्पादन। सम्पादित पत्रिकाएँ: मैथिली में दो साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन। वर्तमान में भारतीय भाषाओं की अनुवाद पत्रिका 'अंतरंग' का सम्पादन कर रहे हैं। पुरस्कार और सम्मान: साहित्य अकादेमी पुरस्कार, दिनकर जनपदीय सम्मान, बिहार सरकार द्वारा सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार, माहेश्वरी सिंह 'महेश' ग्रन्थ पुरस्कार, जगदीशचन्द्र माथुर सम्मान। (अनुवादक) - अरुणाभ सौरभ - जन्म: 9 फ़रवरी, 1985, चौनपुर, सहरसा (बिहार)। शिक्षा: बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से हिन्दी में एम.ए., जामिया मिलिया इस्लामिया से बी.एड., तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय से पीएच.डी.। हिन्दी की सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से कविताएँ प्रकाशित, साथ ही समीक्षाएँ और आलेख भी। हिन्दी के साथ-साथ मातृभाषा मैथिली में भी समान गति से लेखन। हिन्दी कविताओं के अनुवाद नेपाली, तेलुगु, पंजाबी, मराठी, गुजराती, असमिया, बांग्ला और अंग्रेज़ी भाषाओं में प्रकाशित। कई साझा संकलन में कविताएँ शामिल, कुछ कविताएँ पाठ्यक्रमों में शामिल। नाटकों में अभिनय एवं निर्देशन। प्रकाशित कृतियाँ: एतबे टा नहि, से किछु आर (मैथिली), दिन बनने के क्रम में, किसी और बहाने से (कविता (संग्रह), लम्बी कविता का वितान (आलोचना), आद्य नायिका (लम्बी कविता), भाषा शिक्षण : मैथिली, इतना ही नहीं (मैथिली कविताओं का हिन्दी अनुवाद), कन्नड़ के वचन साहित्य का अनुवाद, मैथिली और असमिया से हिन्दी अनुवाद। पुरस्कार व सम्मान: भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार, साहित्य अकादेमी का युवा पुरस्कार, माहेश्वरी सिंह महेश स्मृति ग्रन्थ पुरस्कार, महेश अंजुम स्मृति युवा कविता सम्मान आदि।

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