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Jeevan Vritt, Vyas Richayein
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
ऋचा जैन
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
ऋचा जैन
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹325 ₹228
Save: 30%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789355184917
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
120
जीवन वृत्त, व्यास ऋचाएँ –
मैं बिखरी हुई थी—अलग-अलग क्षेत्रों में
भिन्न-भिन्न शब्दावलियाँ मारती रहती थीं
टक्कर सिर में—दर्द, मन बेचैन
हिन्दी ज़रूरत बन गयी, कविताएँ सुकून
यह किताब मेरी कोशिश है बुहारने की
अपने तिनके-तिनके फैले जीवन को
छिपकली की पूँछ और घोंघे के श्लेष्मा
की यान्त्रिकी ने सदा आकर्षित किया,
उन्हें समेटा ‘आतंकवाद’ और ‘प्रोपेगेंडा’ में
जीवन की गूढ़ता पर मनन समीकरणों से उभर
आये ‘जो जोड़ा वह जाता रहा, जो बाँटा
बस गया मुझमें’
सौंधी ‘यारियाँ’ हैं, वात्सल्य है, प्रेम है
कड़ी चेतावनी भी है—’तुम्हें तुमसे ही डराने के लिए तुम्हारे वीर्य में जाकर बस जाऊँगी
मैं भूत बनकर आऊँगी’
‘बिग डेटा’ अनावरण है सामान्य जीवन में
टेक्नॉलाजी के अदृश्य और विस्फोटक हस्तक्षेप का
रतन्त्रता की पीड़ा सालती है ‘वेल्स’, ‘ब्राउन पॉपी’
और ‘भाषा, मेरी भाषा’—में ‘गोरी सरकार के काले
कपट ने उन लाल चमकीले फूलों को मटमैला बना
दिया’, ‘और वो बूढ़ी रानी—भेड़, वो क्यों घूरती रहती
है? ‘
अस्पष्टता ढह गयी रिश्तों से—शनैः शनैः
दबे आक्रोश फटे, वह निकले
मतभेद नहीं अब विषयों में
एकीकार हैं
मन हल्का है
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Description
जीवन वृत्त, व्यास ऋचाएँ –
मैं बिखरी हुई थी—अलग-अलग क्षेत्रों में
भिन्न-भिन्न शब्दावलियाँ मारती रहती थीं
टक्कर सिर में—दर्द, मन बेचैन
हिन्दी ज़रूरत बन गयी, कविताएँ सुकून
यह किताब मेरी कोशिश है बुहारने की
अपने तिनके-तिनके फैले जीवन को
छिपकली की पूँछ और घोंघे के श्लेष्मा
की यान्त्रिकी ने सदा आकर्षित किया,
उन्हें समेटा ‘आतंकवाद’ और ‘प्रोपेगेंडा’ में
जीवन की गूढ़ता पर मनन समीकरणों से उभर
आये ‘जो जोड़ा वह जाता रहा, जो बाँटा
बस गया मुझमें’
सौंधी ‘यारियाँ’ हैं, वात्सल्य है, प्रेम है
कड़ी चेतावनी भी है—’तुम्हें तुमसे ही डराने के लिए तुम्हारे वीर्य में जाकर बस जाऊँगी
मैं भूत बनकर आऊँगी’
‘बिग डेटा’ अनावरण है सामान्य जीवन में
टेक्नॉलाजी के अदृश्य और विस्फोटक हस्तक्षेप का
रतन्त्रता की पीड़ा सालती है ‘वेल्स’, ‘ब्राउन पॉपी’
और ‘भाषा, मेरी भाषा’—में ‘गोरी सरकार के काले
कपट ने उन लाल चमकीले फूलों को मटमैला बना
दिया’, ‘और वो बूढ़ी रानी—भेड़, वो क्यों घूरती रहती
है? ‘
अस्पष्टता ढह गयी रिश्तों से—शनैः शनैः
दबे आक्रोश फटे, वह निकले
मतभेद नहीं अब विषयों में
एकीकार हैं
मन हल्का है
About Author
ऋचा जैन -
जन्म एवं शिक्षा : जबलपुर, मध्य प्रदेश।
इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद लगभग 10 वर्ष इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलोजी में बतौर सॉफ्टवेअर इंजिनियर एवं बिजनेस ऐनालिस्ट काम। तत्पश्चात् पुणे में जर्मन भाषा का अध्ययन एवं अध्यापन। एक इंटरनैशनल स्कूल में बतौर क्रिएटिव राइटर एंड ऐडवाइजर काम। 2016 में परिवार के साथ लन्दन प्रवास एवं साहित्य एवं लेखन के प्रति गम्भीरता।
वाणी संस्था, लन्दन द्वारा हिन्दी एवं अंग्रेज़ी कविता संग्रह की पाण्डुलिपि के लिए 'एशियन वुमन ऑथर ऑफ़ द ईयर (2018)' का सम्मान। लन्दन में भारत के उच्चायोग की ओर से डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी अनुदान योजना (2018) के अन्तर्गत प्रथम हिन्दी कविता संग्रह की पाण्डुलिपि को पुरस्कार एवं सम्मान।
जर्मन भाषा में लिखी गयी बच्चों की किताब 'इश्पास मिट एली उंड एजी' का दिल्ली से 2014 में प्रकाशन। हिन्दी एवं अंग्रेज़ी कविताओं का देश-विदेश की पत्रिकाओं में प्रकाशन — पहल (भारत), अहा ज़िन्दगी (भारत), बिन्दिया (भारत), क्रोयडॉन लाइब्रेरी ऐन्थॉलॉजी (लन्दन), वर्ड्स ऐंड वर्ल्ड द्विभाषीय ऑनलाइन पत्रिका (ऑस्ट्रिया)।
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