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Hindustan Sabka Hai
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
उदय प्रताप सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
उदय प्रताप सिंह
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹299 ₹209
Save: 30%
In stock
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789355180186
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
152
हिन्दुस्तान सबका है –
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
सोच ग़ालिब की है लेकिन घराना मीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
सालहासाल अदब की शमा जलाये हुए,
हज़ारों मुफ़्लिसों का बारे ग़म उठाये हुए,
विचार ढलते हैं कविता में इस तरह उसके,
फूल बेला के हों ज्यों ओस में नहाये हुए।
‘रंग’ की मस्ती है तो ठाठ सब ‘नज़ीर’ का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
यारबाज़ी का वो आलम कि राज ढल जाये,
सुर्ख़ प्यालों में हिमाला की बर्फ़ गल जाये,
हो साथ में तो बात ही निराली है,
सुख़न की आँच से जज़्बात भी पिघल जाये।
दिल्ली के हल्क़े में क्या दबदबा अहीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
नज़्म में रूपमती का फ़साना ढाल दिया,
पड़ोसी मुल्क से जलता हुआ सवाल दिया,
चुपके से चाँदनी बिस्तर पे आके बैठ गयी,
बड़े सलीके से सिक्के-सा दिल उछाल दिया।
ये करिश्मा हमारे दौर के इस पीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
पुरानी क़श्ती से दरिया को जिसने पार किया,
सुलगते प्रश्नों पे निर्भीकता से वार किया,
समाजवाद की राहों में इतने काँटे हैं,
इसलिए हिन्दी की ग़ज़लों को नयी धार दिया।
कोरी लफ़्फ़ाज़ी नहीं फ़ैसला ज़मीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
दिल्ली में रहके अमीरी के ठाट देखे हैं,
बाहरी मुल्कों में जिस्मों के हाट देखे हैं,
वो ‘बुद्धिनाथ’ हो ‘नीरज’ हों या कि ‘निर्धन’ हों,
‘सोम’ के साथ जाने कितने घाट देखे हैं।
मगर उदय का वीतरागी मन कबीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
लोग कहते हैं सियासत में बेईमानी है,
उसको मालूम है ‘जमुना’ में कितना पानी है,
अक्ल से हट के जहाँ दिल की बात मानी है,
वहीं जनाब की नज़्मों का रंग धानी है।
ग़ौर से सुनिए ज़रा मर्सिया ‘दबीर’ का है
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
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Description
हिन्दुस्तान सबका है –
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
सोच ग़ालिब की है लेकिन घराना मीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
सालहासाल अदब की शमा जलाये हुए,
हज़ारों मुफ़्लिसों का बारे ग़म उठाये हुए,
विचार ढलते हैं कविता में इस तरह उसके,
फूल बेला के हों ज्यों ओस में नहाये हुए।
‘रंग’ की मस्ती है तो ठाठ सब ‘नज़ीर’ का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
यारबाज़ी का वो आलम कि राज ढल जाये,
सुर्ख़ प्यालों में हिमाला की बर्फ़ गल जाये,
हो साथ में तो बात ही निराली है,
सुख़न की आँच से जज़्बात भी पिघल जाये।
दिल्ली के हल्क़े में क्या दबदबा अहीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
नज़्म में रूपमती का फ़साना ढाल दिया,
पड़ोसी मुल्क से जलता हुआ सवाल दिया,
चुपके से चाँदनी बिस्तर पे आके बैठ गयी,
बड़े सलीके से सिक्के-सा दिल उछाल दिया।
ये करिश्मा हमारे दौर के इस पीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
पुरानी क़श्ती से दरिया को जिसने पार किया,
सुलगते प्रश्नों पे निर्भीकता से वार किया,
समाजवाद की राहों में इतने काँटे हैं,
इसलिए हिन्दी की ग़ज़लों को नयी धार दिया।
कोरी लफ़्फ़ाज़ी नहीं फ़ैसला ज़मीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
दिल्ली में रहके अमीरी के ठाट देखे हैं,
बाहरी मुल्कों में जिस्मों के हाट देखे हैं,
वो ‘बुद्धिनाथ’ हो ‘नीरज’ हों या कि ‘निर्धन’ हों,
‘सोम’ के साथ जाने कितने घाट देखे हैं।
मगर उदय का वीतरागी मन कबीर का है।
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
लोग कहते हैं सियासत में बेईमानी है,
उसको मालूम है ‘जमुना’ में कितना पानी है,
अक्ल से हट के जहाँ दिल की बात मानी है,
वहीं जनाब की नज़्मों का रंग धानी है।
ग़ौर से सुनिए ज़रा मर्सिया ‘दबीर’ का है
उदय प्रताप का किरदार इक फ़क़ीर का है।
About Author
उदय प्रताप सिंह -
जन्म : 18 मई, 1932।
शिक्षा: एम.ए. अंग्रेज़ी एवं हिन्दी (सेंट जॉन्स कॉलेज), आगरा विश्वविद्यालय, उ.प्र., अध्यक्ष छात्र संघ, अहिर कॉलेज, शिकोहाबाद (1955 ) |
सदस्य 1991, 9वीं और 10वीं लोकसभा 1989 से 1996, सदस्य राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, 1997 से 2000, सदस्य राज्यसभा 2002 से 2008। 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के अध्यक्ष। सदस्य मानव संसाधन विकास मन्त्रालय की स्थायी समिति, संयुक्त समिति, वेतन-भत्ता सलाहकार समिति रेलवे।
हिन्दी और उर्दू कवि के रूप में गत 70 वर्षों से देश व विदेश में सांस्कृतिक क्रियाकलाप आयोजित कवि-सम्मेलनों में सम्मिलित। 1993 में सूरीनाम में आयोजित तीसरे अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया। भारतीय भाषाओं की उन्नति में सक्रिय योगदान। सामाजिक संस्था ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग एवं फ्रेटरनिटी द्वारा स्लम एरिया में चलाये जा रहे मन्दबुद्धि बच्चों के स्कूल मासूम के वाइस प्रेसिडेंट के रूप में सक्रिय भागीदारी। कई विद्यालय और सामाजिक संस्थाओं से प्रतिबद्ध।
सम्मान : ब्रज गरिमा सम्मान, डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन सम्मान, पेरामारीवू विश्वविद्यालय, सूरीनाम द्वारा आचार्य की मानद उपाधि से सम्मानित, यश भारती सम्मान, डॉ.बृजेन्द्र अवस्थी सम्मान, गुरु चन्द्रिका प्रसाद सम्मान, शायरे-यक़ज़हती सम्मान, भोपाल, साहित्य शिरोमणि, उत्तर प्रदेश, विद्रोही स्मृति सम्मान आदि सम्मानों से सम्मानित।
प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह—देखता कौन है?, शब्द से संसद तक, तुम्हें सोचता रहा, कोहिनूर जहाँ भी रहा अनमोल रहा है — मनोरमा लाल द्वारा लिखित जीवनी ।
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