Shiksha Mein Shanti

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
डॉ. प्रमोद जैन
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
डॉ. प्रमोद जैन
Language:
Hindi
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Hardback

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120

शिक्षा में शांति

शिक्षण के प्रयाग में गंगा शिक्षक भी हैं, यमुना व्यवस्था भी है किन्तु शिक्षा सरस्वती की तरह विलुप्त हो गई है। आज जीवन के सभी प्रतिमान जैसे सेवा, दान, प्रेम, धर्म आदि के पाये व्यवसायीकरण की आँधी में हिल रहे हैं। इन सबको जो नींव सम्हाल सकती थी, हम उस शिक्षा को ही उखाड़ने में लगे हुए हैं। कानून, नीति, नियम आदि हमें रोकने में असफल हो गए हैं। लोक-लाज शर्म से कहीं चुल्लू भर पानी में डूब मर गई है। आत्मग्लानि से बचने के लिए हम आभासी आइना बना रहे हैं, सम्मान की नयी परिभाषा व मुखौटे गढ़ रहे हैं।

प्रस्तुत व्यंग्य आज के समाज का प्रतिबिम्ब हैं, सच्चाई हैं, आचरण हैं, व्यवहार हैं। शिक्षा तो बहाना है, यह सब किस्से, विद्रूप, विरोधाभास, व्यंग्य, हास्य एवं तथ्य जीवन के सभी आयामों में फिट बैठते हैं।

ये व्यंग्य किसी की बुराई के लिए नहीं लिखे हैं बल्कि ये मेरी बेचैनी के विकल सुर हैं कि हम एक ऐसा रास्ता खोजें जो शिक्षा के व्यवसायीकरण होने के बावजूद शिक्षा की अस्मिता व पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखे ।

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शिक्षा में शांति

शिक्षण के प्रयाग में गंगा शिक्षक भी हैं, यमुना व्यवस्था भी है किन्तु शिक्षा सरस्वती की तरह विलुप्त हो गई है। आज जीवन के सभी प्रतिमान जैसे सेवा, दान, प्रेम, धर्म आदि के पाये व्यवसायीकरण की आँधी में हिल रहे हैं। इन सबको जो नींव सम्हाल सकती थी, हम उस शिक्षा को ही उखाड़ने में लगे हुए हैं। कानून, नीति, नियम आदि हमें रोकने में असफल हो गए हैं। लोक-लाज शर्म से कहीं चुल्लू भर पानी में डूब मर गई है। आत्मग्लानि से बचने के लिए हम आभासी आइना बना रहे हैं, सम्मान की नयी परिभाषा व मुखौटे गढ़ रहे हैं।

प्रस्तुत व्यंग्य आज के समाज का प्रतिबिम्ब हैं, सच्चाई हैं, आचरण हैं, व्यवहार हैं। शिक्षा तो बहाना है, यह सब किस्से, विद्रूप, विरोधाभास, व्यंग्य, हास्य एवं तथ्य जीवन के सभी आयामों में फिट बैठते हैं।

ये व्यंग्य किसी की बुराई के लिए नहीं लिखे हैं बल्कि ये मेरी बेचैनी के विकल सुर हैं कि हम एक ऐसा रास्ता खोजें जो शिक्षा के व्यवसायीकरण होने के बावजूद शिक्षा की अस्मिता व पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखे ।

About Author

डॉ. प्रमोद जैन ओशो संन्यासी एवं गोल्ड मेडलिस्ट शिशु विशेषज्ञ हैं। वर्तमान में रीवा में इनका गुरुकृपा हास्पिटल एवं रिसर्च सेंटर है। कृतित्व : व्यंग्य - 'कुर्सीनामा'; गद्य-' -'यादें पिछले जन्मों की', 'क्रोध से करुणा की ओर', 'फ़ेसबुक फ्रेंड्स एवं छत्तीस अन्य कहानियाँ'; पद्य - 'गुलदस्ता', 'जिंदगी एक ग़ाल' एवं 'यात्रा' । ई-बुक : ' ओशो के इश्क़ में', 'ओशो तुम हो कितने प्यारे', 'ओशो की राहों में' एवं 'ओशो सहस्र अलंकार' । भाषान्तरण : ‘आत्माओं की यात्रा' व' आत्माओं की महायात्रा'; (Destiny of Souls and Journey of Souls by Michael Newton). उप संपादक : सुख़नवर (द्वैमासिक पत्रिका भोपाल से प्रकाशित) । लेख, कहानी एवं कवितायें अख़बार व पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित एवं रेडियो से प्रसारित । कई गीत संगीतबद्ध - वंदना के फूल, ओशो की आँखें आदि । सम्मान : विंध्य शीर्ष सम्मान 2017, भाषाभारती सम्मान 2019, अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद सम्मान 2019, विंध्य शिखर सम्मान 2020 आदि ।

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