Kaha Kahaun In Nainan Ki Baat

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
प्रियाशरण अग्रवाल
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
प्रियाशरण अग्रवाल
Language:
Hindi
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Hardback

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636

कहा कहौं इन नैनन की बात –
प्रस्तुत उपन्यास में श्रीमद्भागवत आदि पुराणों में ब्रह्म के दिव्य प्राकट्य एवं दिव्य कर्मों के समान विशुद्ध प्रेम अर्थात हित के दिव्य प्राकट्य तथा दिव्य कर्मों का विवरण दिया गया है। ग्रन्थ में आद्योपान्त ‘हित किंवा’ का उत्तरोत्तर विकास परिलक्षित होता है। श्री व्यास मिश्र एवं श्रीमती तारा रानी से उनके जन्म एवं छः मास की अवस्था में श्रीराधा-सुधा निधि स्तोत्र का अकस्मात् उच्चारण आदि दिव्य कर्म तथा श्रीराधा जी द्वारा स्वयं उन्हें दीक्षा देना, उनकी सेवाओं को प्रत्यक्ष या प्रधान रूप से स्वीकार करना आदि अनेक अलौकिक चरित्र हैं। बाल लीलाओं के सरस उपहार हैं तो हित का सहज, सरल, सुगम व्यवहार है।
प्रस्तुत उपन्यास में श्री हित हरिवंश महाप्रभु के परिकर रूप में सर्वश्री विठ्ठलदास, मोहनदास, नाहरमल, नवलदास, चतुर्भुजदास, श्री दामोदरदास जी ‘सेवक’ प्रभृति सन्तों के नाम इतिहास से लिए जाने के कारण इस उपन्यास की यथार्थवादिता को एवं उनके चरित्र इनकी आदर्शवादिता को प्रकट करते हैं। लेखक की कल्पना मणि-कांचन संयोग प्रस्तुत कर देती है। कल्पना इसीलिए सर्वथा प्रशंसनीय है क्योंकि वह कहीं भी यथार्थ एवं आदर्श का स्पर्श नहीं छोड़ती। वाणी ग्रन्थों की सूक्तियों अथवा उक्तियों का विस्तार करते हुए भी उनसे दूर नहीं हटती अपितु उनको सजाती ही है। एतदर्थ इसे ऐतिहासिक तथा धार्मिक चरित्र प्रधान उपन्यास कहने में कोई संकोच नहीं है। सर्वथा एक पठनीय व संग्रहणीय कृति।
अंतिम आवरण पृष्ठ –
सेवक जी का अनन्य प्रेम और समवेदना, सहानुभूति अन्ततः रंग ले आयी। स्वयं श्री हित हरिवंश महाप्रभु ने प्रकट होकर सेवक जी को अपने समस्त वैभव – श्री वृन्दावन, श्रीराधावल्लभ लाल, सखी परिकर के साथ अपनी वाणी और प्रिया प्रियतम की मधुर लीलाओं का विकास, श्री कालिन्दी सलिल की वीथियों का विलास आदि सभी रहस्य उनके समक्ष प्रकट कर दिए। इस श्री हरिवंश कृपा का वर्णन श्री सेवक जी ने ‘सेवक-वाणी’ के अनेक प्रकरणों में प्रकट किया है। उपन्यासकार ने इस अन्तःसाक्ष्य का परिपूर्ण लाभ उठाया है।

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Description

कहा कहौं इन नैनन की बात –
प्रस्तुत उपन्यास में श्रीमद्भागवत आदि पुराणों में ब्रह्म के दिव्य प्राकट्य एवं दिव्य कर्मों के समान विशुद्ध प्रेम अर्थात हित के दिव्य प्राकट्य तथा दिव्य कर्मों का विवरण दिया गया है। ग्रन्थ में आद्योपान्त ‘हित किंवा’ का उत्तरोत्तर विकास परिलक्षित होता है। श्री व्यास मिश्र एवं श्रीमती तारा रानी से उनके जन्म एवं छः मास की अवस्था में श्रीराधा-सुधा निधि स्तोत्र का अकस्मात् उच्चारण आदि दिव्य कर्म तथा श्रीराधा जी द्वारा स्वयं उन्हें दीक्षा देना, उनकी सेवाओं को प्रत्यक्ष या प्रधान रूप से स्वीकार करना आदि अनेक अलौकिक चरित्र हैं। बाल लीलाओं के सरस उपहार हैं तो हित का सहज, सरल, सुगम व्यवहार है।
प्रस्तुत उपन्यास में श्री हित हरिवंश महाप्रभु के परिकर रूप में सर्वश्री विठ्ठलदास, मोहनदास, नाहरमल, नवलदास, चतुर्भुजदास, श्री दामोदरदास जी ‘सेवक’ प्रभृति सन्तों के नाम इतिहास से लिए जाने के कारण इस उपन्यास की यथार्थवादिता को एवं उनके चरित्र इनकी आदर्शवादिता को प्रकट करते हैं। लेखक की कल्पना मणि-कांचन संयोग प्रस्तुत कर देती है। कल्पना इसीलिए सर्वथा प्रशंसनीय है क्योंकि वह कहीं भी यथार्थ एवं आदर्श का स्पर्श नहीं छोड़ती। वाणी ग्रन्थों की सूक्तियों अथवा उक्तियों का विस्तार करते हुए भी उनसे दूर नहीं हटती अपितु उनको सजाती ही है। एतदर्थ इसे ऐतिहासिक तथा धार्मिक चरित्र प्रधान उपन्यास कहने में कोई संकोच नहीं है। सर्वथा एक पठनीय व संग्रहणीय कृति।
अंतिम आवरण पृष्ठ –
सेवक जी का अनन्य प्रेम और समवेदना, सहानुभूति अन्ततः रंग ले आयी। स्वयं श्री हित हरिवंश महाप्रभु ने प्रकट होकर सेवक जी को अपने समस्त वैभव – श्री वृन्दावन, श्रीराधावल्लभ लाल, सखी परिकर के साथ अपनी वाणी और प्रिया प्रियतम की मधुर लीलाओं का विकास, श्री कालिन्दी सलिल की वीथियों का विलास आदि सभी रहस्य उनके समक्ष प्रकट कर दिए। इस श्री हरिवंश कृपा का वर्णन श्री सेवक जी ने ‘सेवक-वाणी’ के अनेक प्रकरणों में प्रकट किया है। उपन्यासकार ने इस अन्तःसाक्ष्य का परिपूर्ण लाभ उठाया है।

About Author

प्रियाशरण अग्रवाल - सन् 1932 में वृन्दावन के सेठ राधावल्लभ जी के परिवार में जन्म। श्री अग्रवाल बचपन से ही कुशाग्र व पठन-पाठन में में मेधावी रहे। वृन्दावन में ही 12वीं तक की शिक्षा-दीक्षा। तत्पश्चात् बम्बई में अपने व्यवसाय में सक्रिय हो गये। परन्तु पढ़ाई में रुचि होने के कारण व्यवसाय में संलग्न रहते हुए 'साहित्य रत्न' की उपाधि प्राप्त की। श्री अग्रवाल आजीवन शिक्षा के प्रति समर्पित रहे। विशेषकर बालिका शिक्षा पर अधिक ज़ोर देते थे। इसी परिप्रेक्ष्य में सन् 1971 में मथुरा में अपने पिता श्री राधावल्लभ जी एवं चाचा श्री चुन्नीलाल जी के नाम से 'राधावल्लभ चुन्नीलाल अग्रवाल बालिका महाविद्यालय' की स्थापना की। श्री अग्रवाल ने काव्य विधा पर प्रचुर मात्रा में रचनाएँ की हैं। काव्य संकलन 'निकुंजेश्वरी' प्रकाशनाधीन है। ब्रज भाषा में रचित नाट्य रचना 'हरिवंश चरित्र' का प्रथम संस्करण सन् 1980 में प्रकाशित हुआ। सन् 2000 में इस नाटक का नवीन संस्करण प्रकाशित हुआ। 'सेवक चरित्र', 'श्री हितरहस्यचन्द्रिका' आदि अन्य प्रकाशित कृतियाँ हैं। अब 'कहा कहाँ इन नैनन की बात' भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो कर आपके हाथों में है। देहावसान: 2009।

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